सम्पादकीय

सरकारी नौकरी सीधी नहीं

Rani Sahu
18 Jun 2023 6:59 PM GMT
सरकारी नौकरी सीधी नहीं
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वह रोजगार के पहियों से बार-बार कुचला गया, फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी। वह हर ठोकर के बावजूद यह प्रण नहीं छोड़ता कि एक दिन सरकारी नौकरी की काबिलीयत में दर्ज हो जाएगा। वैसे जिस सरकारी स्कूल में वह पढ़ा, वहां पढ़ाई खुद सिखा रही थी कि उसकी काबिलीयत अब हर तरह की ठोकर खाने की तो है ही। दरअसल उसको पढ़ाने वाले भी दर-दर की ठोकरें खाने के बाद पढ़ाने की नौकरी के काबिल हो पाए थे। सरकारी नौकरी के काबिल होना भी अब अनेक तरह की ठोकरों की गिनती है। हर दफ्तर में जो लोग सरकारी नौकरी में हैं, उन्होंने अपनी-अपनी तरह की ठोकरें देखी हैं, भले ही वे इसे राज ही बना रहने दें। खैर उसकी किस्मत में डिग्रियां रही होंगी, इसलिए वह पढ़ कर इन्हें इकट्ठा करता गया और हालत यह हो गई कि उसे यह ज्ञान भी नहीं रहा कि आखिर किस उपाधि के बूते वह उत्तम रोजगार पा लेगा। वह हर दिन डिग्रियों को निहारता और रोजगार के मुहाने तलाश करता। उसे यह अनुभव तो हो गया कि उसकी एमबीए की डिग्री किसी दिन क्लर्क बना देगी या इंजीनियरिंग का सर्टिफिकेट उसे किसी निजी संस्थान में आज्ञाकारी नौकर बना देगा। हुआ भी ऐसा ही और अब वह निजी कार्यालय के स्वागत कक्ष से मालिक के हर आदेश को पूरी तरह अमल में लाने की मशीनरी बन गया है। वह अपने स्वामी के आदेशों-निर्णयों से सीख-सीख कर एक कुशल नौकर बन चुका था, लेकिन वह डिग्री के हिसाब से सरकारी खजाने से पगार पाने की ख्वाहिश नहीं छोड़ पाया।
वह सरकारी नौकरी की भेड़ बन गया और पूरी भेड़चाल सीख गया। आश्चर्य यह कि सरकारी नौकरी पाने की प्रतिज्ञा ने उसके देवता तक बदल दिए। सरकारी नौकरी के दर्शन के लिए उसने ऐसे नेता देवता बना लिए, जिन्हें देखने मात्र से कोई भी शर्मिंदा हो सकता था। अंतत: नेता ने उसे समझाया कि ठोकरें खाने के बजाय सरकारी नौकरी की ठोकरों की कीमत जान ले। वह इस काबिल हो चुका था कि पढ़ाई की ठोकरों से कहीं बेहतर सरकारी नौकरी की ठोकरों को पाकर, उनका मोल-तोल कर ले। वह अब सरकारी कार्यालय का नौकर बन गया है। उसके लिए अब सारी सृष्टि और दृष्टि पूरी तरह घूम रही है। वह एक घुमावदार पद है, जो देश के लिए पहेलियां बना देता है। जिस नेता के कारण वह सरकारी नौकरी का रहस्य जान सका, अब वह उसी नेता के लिए भी रहस्यमय है। दफ्तर की हर कुर्सी पर ऐसे रहस्यों की इबारत शासन कर रही है। सरकारी नौकरी भी दरअसल किसी फिल्म की लांचिंग की तरह है। यहां भी ‘फस्र्ट लुक’ ही किसी सरकारी नौकर की सफलता और समृद्धि लिख देता है। सरकारी नौकरी का फस्र्ट लुक अगर सौहार्दपूर्ण नजर आ गया, तो फाइलें घूमेंगी और चुटकी बजाकर लोग काम कराएंगे। हर सरकारी दफ्तर में कोई न कोई कर्मचारी जरूर ‘हिट’ होता है और इसी अंदाज में उसका जीवन ‘फिट’ होता है। जिस सरकारी नौकर में घुमाव नहीं, वह कार्य संस्कृति के लिए खतरा है और इसीलिए ट्रांसफरें उन्हीं की ज्यादा होती हैं जो यह सोच लेते हैं कि सरकारी नौकरी भी उन्हीं की तरह सीधी है।
वह भी सीधी नौकरी की उम्मीद में सरकारी दफ्तर में था, लेकिन उसे रोज कुर्सी डराती थी। कुर्सी पर बैठते ही उसके हाथ शिथिल हो जाते थे, लेकिन जुबान कैंची की तरह चलने लगी। उसके हाथ टनों के हिसाब से मोटे हो गए। वह महीनों तक कोई एक फाइल भी नहीं उठा पाता। दफ्तर में घुसते ही उसके पांव व्यवस्था के गड्ढों में फंस जाते। वह कोशिश करता है कि देश और समाज के लिए ढेर सारा काम करे, लेकिन देश की चर्चाएं उसका समय लूट लेतीं। उसने भी सीख लिया है कि जीवन में अगर कुछ भी स्थायी नहीं, तो वह व्यवस्था को स्थायी बनाकर क्यों किसी दोष का भागीदार बने। वह दफ्तर में ‘केरल स्टोरी’ पर चर्चा करता रहा है और अब ‘कर्नाटक चुनाव’ पर करता रहेगा। उसके लिए समय गुजारना इसलिए भी मुश्किल नहीं क्योंकि उसे अपने वेतन-भत्तों का ही चौकसी से हिसाब करना है। वह वर्षों से उस सरकार को ढूंढने में लगा है, जो उसकी पगार को ही जीवन पर्यंत पेंशन में बदल दे। देश पूरी मेहनत से लगा है और एक दिन देश का खजाना सिर्फ सरकारी नौकरी के लिए सौ फीसदी काम आएगा।
निर्मल असो
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal
Rani Sahu

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