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शहर की हर दीवार पर पोस्टर लगे थे, ‘सरकारी बस की नीलामी’, मुख्य चौक पर होगी
सोर्स- Divyahimachal
शहर की हर दीवार पर पोस्टर लगे थे, 'सरकारी बस की नीलामी', मुख्य चौक पर होगी। पोस्टर देखकर ही कुछ लोग प्रसन्न हो जाते हैं, 'चलो अच्छा हुआ। अब निजात मिलेगी ऐसी खटारा बस से।' यह सरकारी व्यवस्था के खिलाफ का पक्ष था जो इस नीलामी के बावजूद सरकार को कोस रहा था। दूसरी ओर सरकारी बस के पक्ष में जो थे, वे बता रहे थे कि कितनी सेवा के बाद भी यह बिकेगी और सरकारी खजाने में धन लाएगी। ये लोग जानते हैं कि सरकारी धन अब सरकारी संपत्तियां बेचकर ही आएगा। जिस तरह हिंदुस्तान पेट्रोलियम समेत आठ सार्वजनिक उपक्रमों को नीलाम करके सरकार अमीर हुई है, उसी तरह इस बस को बेचकर भी होगी। हो सकता है कल दफ्तरों का फर्नीचर बेचकर सरकार अमीर हो जाए या आगे चलकर सरकारी खजाना भरने के लिए कभी कोई स्कूल या कभी कोई अस्पताल भी बिक्री के लिए इसी चौक पर आ जाए। दरअसल सरकारी पक्षधर यह समझाने में कामयाब हो रहे थे कि सरकारी संपत्तियों की बिक्री एक तरह की फसल कटाई है और अगर इसे समय रहते नहीं काटा तो कमाई चौपट हो जाएगी।
आजादी के 75 वर्ष बाद भी अगर सरकारी संपत्तियों की फसल नहीं काटी, तो फिर इसके बोने यानी निर्माण करने का फायदा क्या। जनता के इसी समर्थन के कारण सरकार अपनी बस की नीलामी मुख्य चौराहे पर करने को प्रोत्साहित हुई। नीलामी को एक इवेंट के तौर पर मनाने का फैसला हुआ ताकि जनता देख सके कि बेचना भी मनोरंजन पैदा करता है। आखिर नीलामी का दिन आ ही गया। उस दिन चौराहे पर सारा ट्रैफिक रोक कर मुख्य अतिथि का इंतजार हो रहा था। बीच सड़क पर पंडाल लगा था और बारी-बारी नेता इस नीलामी की जरूरत से उपजे लाभ को गिनवा रहे थे। मुख्य मंच के करीब थकी-हारी बस खड़ी थी। बस ने कई राजनीतिक रैलियां बिना पैसे के ढोई थीं या टिकट तो यात्रियों के कटते रहे, लेकिन यह बेचारी अपनी मेहनत का पैसा वसूल नहीं कर पाई। बस ने वह शुभ मुहूर्त भी देखा था जब नेता ने नारियल फोड़कर उसे बिना पैमाइश की आधी-अधूरी सड़क पर रवाना किया था और आज बिकने के लिए वह अभी हाल ही में बने फोरलेन पर खड़ी थी, जहां वह आज तक नहीं चली। बस को याद है कि उसके हर हिस्से को इससे पहले भी तो नीलाम किया जाता रहा है। उसके शृंगार में तमाम नकली कलपुर्जे जोड़े गए, फिर भी उसे कहा गया कि प्रदेश को खुश रखे।
वह यात्रियों के कारण मुस्कराती रही। एक यात्री ही तो थे जो सरकारी बस को हिम्मत देते थे कि 'तू भी चल सकती है।' बस को मालूम है कि उसने कितने लोगों को पगार, कितनों को रोजगार और कितनों को पदोन्नति दी। वह हर बार हैरान हुई कि उसे किस बात के लिए अवार्ड मिल रहे हैं, जबकि उसने फटे टायरों पर ही जिंदगी गुजार दी। फिर भी बस प्रसन्न है कि आज भी उसे कोई खरीददार मिलेगा। बस को विश्वास हो चला है कि वह पहली बार सही हाथों में भी जा सकती है। इतने में शोर मचता है। राज्य के परिवहन मंत्री के साथ मुख्यमंत्री भी आ चुके थे। उनका स्वागत हो रहा था, फूलमालाएं, शाल-टोपी और स्मृति चिन्ह भेंट किए जा चुके थे। नीलामी के औचित्य को समझाते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, 'जो आजादी के बाद आज तक नहीं हुआ, हम कर रहे हैं। खरीदने और बनाने में ही आज तक खजाना खाली होता रहा, इसलिए पहली बार बेच-बेच कर धन उगाएंगे।' पंडाल तालियों से गूंज रहा था और सरकार के पक्ष में नारे लग रहे थे। आखिर बस नीलाम हो गई और खरीददार ने उसी रूट पर चला भी दी। दूसरी ओर नीलामी में मिले पैसे का हिसाब हुआ, तो पता चला कि बस बिकने से जितनी कमाई हुई उससे एक शानदार समारोह का आयोजन हो गया। अब सरकार को जब कभी ऐसा समारोह करना होता है, एक और बस नीलाम हो जाती है।
Rani Sahu
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