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- भरोसा बनाना होगा
नवभारत टाइम्स; पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने कहा है कि वह भारत के साथ स्थायी शांति चाहते हैं। उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स के एक डेलीगेशन से बातचीत के दौरान कहा कि युद्ध कोई विकल्प नहीं है और इसलिए वह बातचीत के जरिए सारे मसलों को हल करने के पक्ष में हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का यह बयान निश्चित रूप से स्वागत करने लायक है। लेकिन ऐसा बयान पहली बार नहीं आया है। असल सवाल यह है कि इस बयान को कितनी गंभीरता से लिया जा सकता है। आम तौर पर किसी भी बयान की गंभीरता इस बात पर निर्भर करती है कि उसे संबंधित व्यक्ति के व्यवहार का कितना समर्थन हासिल है। दूसरे शब्दों में, उसका आचरण उसके बयानों से मेल खाता है या नहीं।
चूंकि शाहबाज शरीफ हाल ही में प्रधानमंत्री पद पर आए हैं इसलिए उन्हें अभी संदेह का लाभ मिल सकता है, लेकिन आने वाले दिनों में इस पर नजर रहेगी कि उनके कार्य और फैसले इस बयान में दिखाई गई इच्छा से मेल खाते हैं या नहीं। फिलहाल उनके ताजा बयान तक सीमित रहा जाए तो भी कुछ ऐसे सवाल हैं जिनसे नहीं बचा जा सकता। मिसाल के लिए, उन्होंने उसी प्रतिनिधिमंडल से बातचीत में भारत के साथ टिकाऊ शांति को कश्मीर समस्या के हल से जोड़ दिया। उनका कहना था कि दोनों देशों के बीच स्थायी शांति के लिए जरूरी है कि कश्मीर समस्या को संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के अनुरूप हल किया जाए।
वह शायद भूल गए कि संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव के बहुत दिनों बाद दोनों देशों ने शिमला समझौता किया था, जिसमें कहा गया कि कश्मीर एक द्विपक्षीय मुद्दा है और दोनों देश आपसी बातचीत से इसे हल करेंगे। और, द्विपक्षीय बातचीत में जो बात सबसे ज्यादा मायने रखती है वह है आपसी विश्वास। यही सवाल भारत उठाता रहा है कि अगर आपकी कथनी और करनी में अंतर बना रहेगा, अगर आप दोस्ती की बातें करते हुए आतंकी गतिविधियों को परोक्ष समर्थन देते रहेंगे तो फिर आपसे सार्थक बातचीत कैसे हो सकती है। और जब सार्थक बातचीत नहीं होगी, तो फिर उसके जरिए आपसी मसले सुलझने का सवाल ही कैसे उठेगा।
जरूरी है कि पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ इन पहलुओं पर भी विचार करें। यह भी याद रखने की बात है कि कश्मीर एक जटिल मसला है। उसे सुलझाने के लिए वक्त चाहिए। इन सबके बावजूद शाहबाज शरीफ का बयान दोनों देशों के रिश्तों के संदर्भ में एक नई संभावना की ओर संकेत करता है। इस संभावना को मजबूती मिलेगी आपसी विश्वास के माहौल से। अगर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बयान में व्यक्त अपनी भावना को मजबूती देते हुए भारत के अविश्वास को कम करने वाले एकाध कदम भी उठाते हैं तो आश्चर्य नहीं कि दोनों देशों के रिश्तों पर जमी बर्फ सचमुच पिघलनी शुरू हो जाए।