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हिमाचल में चुनाव की आहट से पंजाब की आप सरकार अपने करतब दिखा रही है
By: divyahimachal
हिमाचल में चुनाव की आहट से पंजाब की आप सरकार अपने करतब दिखा रही है। कुछ फैसले ऐसे भी अमल में आए हैं, जो हिमाचल को तुलनात्मक दृष्टि से देख रहे हैं। विधायकों को एक टर्म की पेंशन का ही लाभ देना हो या विभागीय मशीनरी को फील्ड के अंतिम छोर तक भेजना रहा हो, पंजाब सरकार ने कुछ प्रशंसनीय कार्य जरूर किए हैं और इसी शृंखला को आगे बढ़ाते हुए मुख्यमंत्री भगवंत मान ने हर जिले के लिए एक-एक मंत्री प्रभारी बना दिया। ये तमाम मंत्री अपने जिला के बाहर किसी अन्य जिला के कामों का जायजा लेंगे और इसकी रिपोर्टिंग से पूरे पंजाब का प्रशासन चलेगा। कमोबेश यही परंपरा वर्षों से महाराष्ट्र में भी चल रही है, जहां दूसरे जिला से संबंध रखने वाले मंत्री को पालक मंत्री बनाया जाता है। हिमाचल की स्थिति भिन्न है और जिसका अभी हाल ही में भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सौदान सिंह ने भी जिक्र किया है। सौदान सिंह ने मुख्यमंत्री के साथ-साथ हिमाचल के मंत्रियों को भी कदम लंबे करके पूरे प्रदेश में सक्रियता दिखाने का सबक पढ़ाया है। आश्चर्य तो यह कि हिमाचल के अधिकांश मंत्री अपने विधानसभा क्षेत्र से बाहर ही नहीं आते और कई मामलों में तो यह सुनिश्चित हो रहा है कि मंत्रियों के विभाग केवल उनके हलके में ही कार्य कर रहे हैं। प्रदेश की राजनीति ने कमोबेश हर सरकार में इसीलिए क्षेत्रवाद पैदा किया, क्योंकि सरकारों की रूह ने क्षेत्र बांट लिए। मसलन बागबानी मंत्री का इलाका फलोत्पादन करने लगता है, तो पशुधन की सारी योजनाएं-परियोजनाएं पशुपालन मंत्री के गृह क्षेत्र की बपौती हो जाती हैं।
हर परिवहन मंत्री ने अपने क्षेत्र को ही बस डिपो और बस स्टैंड दिए। शहरी विकास की परिकल्पना हो या औद्योगिक विकास का परिचय, संबंधित मंत्रियों ने अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों को ही प्राथमिक माना। हिमाचल में तमाम सरकारों के कामकाज पर शोध किया जाए, तो इनके प्रदर्शन ने केवल क्षेत्रवाद ही फैलाया। इतना ही नहीं, पुरानी सरकारों की परियोजनाओं के कई ताबूत हिमाचल में मिल जाएंगे। उदाहरण के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल हमीरपुर में नए बस स्टैंड की जो रूपरेखा बनाकर छोड़ गए थे, वह आने वाली दो सरकारों ने ताबूत में बंद कर दी। धर्मशाला में प्रदेश का पहला ट्यूलिप गार्डन बनकर तैयार है, लेकिन पांच साल से इसे न तो खोलने की फुर्सत मिली और न ही इसके अस्तित्व पर किसी ने सोचा। आश्चर्य यह कि सरकार बदलते ही विभाग की आंख बदल जाती है और मंत्री की प्राथमिकता। कम से कम हर जिला को यह तो ज्ञात हो कि वहां हर विभाग किन परियोजनाओं पर काम कर रहा है। इसके लिए पालक मंत्री की जरूरत है। भाजपा के उपाध्यक्ष सौदान सिंह अगर चाहें, तो हिमाचल के मंत्रियों से यह सूचना मांग कर अंदाजा लगा सकते हैं कि उनके अधीन चल रहे विभागों ने पूरे प्रदेश में दायित्व निर्वहन की परिपाटी कैसे विकसित की है। हर विभाग से पूरे प्रदेश की कार्यप्रणाली पर गौर करेंगे, तो मालूम हो जाएगा कि हिमाचल के बीच कितने मरुस्थल हैं। यह वर्षों से चल रहा है, लेकिन इस आधार पर जिस तरह राजनीतिक बंटवारा होता है, उससे सरकारों के मिशन रिपीट होते-होते रह जाते हैं। बहुत हो गए शैक्षणिक संस्थान और बहुत हो गए अस्पताल व दफ्तर।
अब हर जिला के परिप्रेक्ष्य में इनकी कार्यप्रणाली को सुदृढ़ करने की प्रणाली चाहिए। पंजाब के मंत्री अगर हर जिला को निष्पक्षता से देखेंगे तो सुशासन की दृष्टि से यह एक बहुत बड़ा सुधार होगा। पूर्व मुख्यमंत्री स्व. वीरभद्र सिंह ने हिमाचल में शीतकालीन प्रवास की प्रथा डालकर शिमला से सरकार का दरबार मूव करवा कर निचले इलाकों को एहसास दिलाया, लेकिन ऐसी प्रथाएं अब आंख में किरकिरी पैदा कर रही हैं। सुशासन और सरकार के एहसास को अगर जीवंत रखना है, तो हर जिला को हर मंत्री से न्याय की दरकार है और इसकी जवाबदेही तय होनी चाहिए। भगवंत मान ने यह फैसला लेकर विकास और सौहार्द की चाबी अपने पास रख ली है। हिमाचल सरकार को अपने बचे हुए समय में मंत्रियों को न केवल दौड़ाना होगा, बल्कि यह भी देखना होगा कि मंत्रियों ने न्यायपूर्ण ढंग से प्रदेश भर के लिए क्या किया। सरकार की ढांचागत दुरुस्ती का एक इशारा सौदान सिंह ने किया और अगर इसी संदर्भ में बोर्ड व निगमों के उपाध्यक्षों से भी रिपोर्ट मांग ली जाए, तो पता चल जाएगा कि कहां 'क्षेत्रवाद' रह गया। ये छोटे-छोटे 'क्षेत्रवाद' मिटाकर ही सुशासन का डंका बज सकता है।
Rani Sahu
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