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जवाहरलाल दर्डा का नाम मैंने सुन रखा था, प्रत्यक्ष मुलाकात नहीं हुई थी
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
जवाहरलाल दर्डा का नाम मैंने सुन रखा था, प्रत्यक्ष मुलाकात नहीं हुई थी। लेकिन, जब इंदिराजी ने कहा, 'आपको महाराष्ट्र से लोकसभा का चुनाव लड़ना है और उसके लिए वाशिम निर्वाचन क्षेत्र का चयन किया गया है' उस चुनाव के संदर्भ में मैं दर्डाजी के संपर्क में आया। मुझे जिस वाशिम निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ना था वहां के सांसद स्वर्गीय वसंतराव नाईक थे। उनके निधन के कारण यह सीट खाली हुई थी। इंदिराजी ने श्री अंतुले से कहा, 'दर्डाजी को फोन करो और उन्हें बताओ कि वाशिम के लिए गुलाम नबी को भेज रही हूं। उनकी पूरी मदद कीजिए।' दर्डाजी पर इंदिराजी को पूरा भरोसा था।
दर्डाजी जब भी दिल्ली आते, समय निकालकर इंदिराजी उनसे अवश्य मिलती थीं। इंदिराजी ने मुझसे कहा, 'दर्डाजी पर बात छोड़ दो, सब ठीक हो जाएगा।' उस समय के कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी बैएआर अंतुले ने दर्डाजी को फोन लगाया। चुनाव का फॉर्म भरने के लिए तीन दिन शेष थे। मैं तुरंत नागपुर होते हुए यवतमाल पहुंचा। नौजवान था। दर्डाजी से मिलते ही मेरी चिंता दूर हो गई। दर्डाजी ने मुझे बड़ा संबल दिया। पहली ही मुलाकात में बोले, 'किसी भी बात की फिक्र न करें। आप कश्मीर से यहां चुनाव लड़ने आए हैं, आगे का मैं देखता हूं।'
इसके बाद चुनाव प्रचार की शुरुआत हुई। इस दौरान दर्डा परिवार के साथ मेरे संबंध और मजबूत हो गए। दर्डाजी की पत्नी वीणाताई...उनके बारे में क्या कहूं? मैं जब-जब यवतमाल गया, तब-तब बिना भोजन करवाए उन्होंने भेजा नहीं। पूरे दर्डा परिवार ने मुझे बहुत स्नेह दिया। जवाहलालजी, विजयबाबू, राजेंद्रबाबू सभी से मुझे प्रेम मिला। आज 'लोकमत' का जो साम्राज्य खड़ा है, उसके पीछे बाबूजी की दूरदृष्टि है। कोई भी काम ईमानदारी से किया जाए-यह उनका ध्येय वाक्य था।
वे सेक्युलर थे। उनका पूरा परिवार सेक्युलर है। उनके परिवार की दूसरी, तीसरी पीढ़ी में भी हिंदू-मुस्लिम या जात-पांत का भेदभाव नहीं है। मुझे इस बात पर गर्व है। इंदिराजी और बाबूजी के संबंध यदि मजबूत थे तो इसका कारण था कि 'सेक्युलरिज्म' का धागा उन्हें बांधे हुए था। बाबूजी के निधन के बाद भी उनके परिवार से मेरे संबंध उतने ही मजबूत हैं।
Rani Sahu
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