सम्पादकीय

सवालों के भूत

Rani Sahu
2 Sep 2021 7:02 PM GMT
सवालों के भूत
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सवालों के भूत हिमाचल सरकार के सामने खड़े हो रहे हैं और इनकी इबारत में क्षेत्रवाद का हौआ मुखातिब है

सवालों के भूत हिमाचल सरकार के सामने खड़े हो रहे हैं और इनकी इबारत में क्षेत्रवाद का हौआ मुखातिब है। कोविड काल की परेशानियों से आजिज लोगों का धंधा पूरी तरह लौटे या न लौटे या रोजगार खो चुके युवाओं को आजीविका का नया सहारा मिले या न मिले, हिमाचल की राजनीति अपने हित में सोच रही है। आश्चर्य यह कि प्रदेश ने यह सोचना बंद कर दिया है कि कोविड से मौत के आंकड़ों में, अस्पताल व्यवस्था क्यों सरकारी क्षेत्र को अपराधी बना रही है। क्यों फोरलेन निर्माण की परिधि में ऊना का मुआवजा नूरपुर में लागू नहीं हो पा रहा या एक केंद्रीय विश्वविद्यालय आगे की कितनी चुनावी पारियां खेलकर भी अपनी हैसियत के दर्शन देने में नाकाम दिखाई दे रहा है। क्या किसी ने गौर किया कि धड़ल्ले से खोले गए निजी विश्वविद्यालय, इंजीनियरिंग या बीएड कालेज आज बंद क्यों हो गए। एक सौ चालीस के करीब सरकारी कालेजों में से 66 संस्थानों में प्रिंसीपल क्यों नियुक्त नहीं हुए। मानव भारती जैसे विश्वविद्यालय की डिग्रियों से बने अध्यापकों का रिकार्ड खंगालने की नौबत क्यों आई। आवाजें फिर से सुनी जाएंगी और जनप्रतिनिधि या तो छोटे मंच पर बड़ी घोषणाएं तराशते हुए नजर आएंगे या छोटे से उद्घाटन के लिए बड़े मंच सजाएंगे। उपचुनावों के गले में टंगा रेशमी रूमाल देखा जा सकता है और यह करोड़ों के वादों का परिचायक भी है।

आईने घूम रहे हैं और इसीलिए जनमंच का पुनरागमन बारह सितंबर के दिन बारह मंच सजाएगा। इसी बीच किसी मेधावी योजना की तरह नए जिलों के गठन की तरफदारी में बुद्धिजीवी समाज, अपने तर्कों के समायोजन में सरकारी तरकारी की तरह नई प्लेट सजा रहा है। यह हिमाचल का बौद्धिक विकास है जो विकास में सरकारी कार्यालय देखता है, सुशासन नहीं। चिलगोजे की तरह राजनीति को लाभकारी पदार्थ बनाने की कोशिश में हिमाचल का समाज कितना सभ्य है, यह हर गांव, कस्बे से शहर तक की गंदगी में दिखाई देता है।
अब शहरी जिम्मेदारियों का हस्तांतरण नगर निगमों का गठन जरूर करने लगा है, लेकिन शहरीकरण के यथार्थ में हमारी परिकल्पनाएं क्या हैं। ग्रामीण परिवेश तक कालेज खोलकर या हर कालेज को स्नातकोत्तर बना कर आखिर प्राप्त क्या किया। नए कालेज खोलने के बजाय हर कालेज में प्रिंसीपल, फैकल्टी तथा फैसिलिटी उपलब्ध कराएं, तो कहीं ज्यादा बेहतर होगा। कुछ इसी तरह नए जिलों के बजाय जिलों का पुनर्गठन करें, तो आर्थिक संसाधनों का सदुपयोग होगा। एक अतिरिक्त जिला का व्यय कम से कम पांच सौ करोड़ की लागत मांगता है। इसी औचित्य को आधा दर्जन नए उपग्रह नगरों, निवेश केंद्रों, ट्रांसपोर्ट नगरों, खेल स्टेडियमों, मनोरंजन व साइंस पार्कों, आईटी, जैव प्रौद्योगिकी तथा ज्ञान पार्कों की स्थापना में लगाएं तो ज्यादा बेहतर होगा। सुनिश्चित यह करें कि प्रदेश में पर्यटन व औद्योगिक विकास का नक्शा और सुदृढ़ हो ताकि कोविड से उजड़े बेरोजगारों को आसरा मिले। हिमाचल में पर्यटन के ढांचागत विकास के तहत नए एयरपोर्ट, फोरलेन व पर्यटन सडक़ें, ट्रांसपोर्ट कोरिडोर, रज्जु मार्ग व स्काई बस जैसी परियोजनाएं स्थापित की जाएं। हिमाचल की चुनौतियों का हल न नए कार्यालयों, स्कूल-कालेजों, चिकित्सालयों की स्थापना से होगा और न ही नए जिलों की गिनती बढ़ाने से होगा, बल्कि हर गांव को बस स्टॉप, 24 घंटे बिजली-पानी, पार्किंग, कूड़ा-कचरा प्रबंधन तथा परिवेश संरक्षण की जरूरत है। प्रदेश को नए प्रयोगों की जमीन, नवाचार की कल्पना, सुशासन की नई पद्धति, आर्थिक संसाधनों की हिफाजत, अनावश्यक खर्च में कटौती और वित्तीय क्षमता की चादर देखते हुए, पांव पसारने की कहीं अधिक जरूरत है।


Rani Sahu

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