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सीडीएस के बनने से इन तीनों प्रमुख सैन्य अधिकारियों के ऊपर भी एक अधिकारी पदस्थ हो गए
सी उदय भास्कर,निदेशक, सोसाइटी ऑफ पॉलिसी स्टडीज।
अब यह इतिहास है। हमारे पूर्व सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत को 1 जनवरी, 2020 को तीन साल के कार्यकाल के लिए देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) के रूप में तैनात किया गया था। एक चार सितारा सैन्य जनरल के लिए सीडीएस का पद बिल्कुल मुफीद था। सीडीएस का पद सृजित होने से पहले हमारे तीनों सशस्त्र बलों- थल सेना, नौसेना और वायु सेना में से प्रत्येक के पास अलग-अलग चार सितारा रैंक के सैन्य अधिकारी सर्वोच्च पद पर विराजमान रहते थे। सीडीएस के बनने से इन तीनों प्रमुख सैन्य अधिकारियों के ऊपर भी एक अधिकारी पदस्थ हो गए।
हमारे नए सीडीएस तीन टोपियां पहनते थे, जो उन्हें सैन्य और नौकरशाही, दोनों तरह के कार्यों या जिम्मेदारियों से जोड़ती थीं। रक्षा मामलों के विभाग में सचिव के रूप में उनके पास सबसे महत्वपूर्ण भूमिका थी, इसके लिए पहली बार एक सेवारत सैन्य अधिकारी को वित्तीय शक्तियों और संसदीय जिम्मेदारियों के साथ सचिव स्तर के अधिकारी का दर्जा दिया गया था।
सीडीएस को भी एक चार सितारा अधिकारी का दर्जा हासिल था और वह रक्षा सेवा प्रमुखों में पहले स्थान पर थे, हालांकि, सेनाओं में उनकी कोई परिचालन भूमिका या सक्रिय जिम्मेदारी नहीं थी। सीडीएस को चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी (सीओएससी) के स्थायी अध्यक्ष के रूप में भी काम करना था। हालांकि, उनके कार्यालय के पास किसी कमान की जिम्मेदारी नहीं थी। उपरोक्त दो टोपियों या जिम्मेदारियों के अलावा सीडीएस को रक्षा मंत्री के प्रमुख सलाहकार के रूप में भी देखा गया। वह एक तरह से राजनीतिक नेतृत्व से जुडे़ अकेले सैन्य अधिकारी थे।
वैसे सीडीएस के कुछ प्रावधान उलझे हुए से लगते हैं। उदाहरण के लिए, सीडीएस सरकार के सचिव थे, जबकि मौजूदा रक्षा सचिव मंत्रालय में प्राथमिक नागरिक सेवक बने रहे। मौजूदा नियमों के अनुसार, एक रक्षा सेवा प्रमुख (चार सितारा सैन्य अधिकारी) रक्षा सचिव से वरिष्ठ होता है। जाहिर है, यहां सीडीएस पद को लेकर विसंगतियां हैं। सीडीएस तीनों सेनाओं के प्रमुखों के समकक्ष भी थे और ऊपर भी, रक्षा सचिव से वरिष्ठ भी थे, लेकिन उनके पास अलग से कोई विशेष परिचालन जिम्मेदारी भी नहीं थी। आज भी व्यावहारिक रूप से रक्षा सचिव ही ज्यादा महत्वपूर्ण लगते हैं। हालांकि, नई व्यवस्था शुरू करते हुए यह माना गया था कि पहले सीडीएस के पदभार ग्रहण करने के बाद कुछ वर्षों में पद व अधिकार संबंधी विसंगतियां दूर कर ली जाएंगी।
गौर करने की बात है, 1999 के कारगिल युद्ध के बाद सशस्त्र बलों के बीच तालमेल बढ़ाने की जरूरत को समझा गया था। संसाधनों का अनुकूलन करते हुए रक्षा क्षमताओं को जुटाने के औचित्य को अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने स्वीकार किया था। कई कारणों से सेनाओं में समन्वय के वास्तविक क्रियान्वयन को लगभग दो दशक के लिए स्थगित कर दिया गया था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में ही यह फैसला लिया जा सका कि भारत एक सीडीएस का पद सृजित करेगा, और तब इस फैसले को मील के पत्थर के रूप में प्रचारित भी किया गया था।
सीडीएस के लिए सोची गई या परिकल्पित जिम्मेदारियों का खाका वास्तविक है। संयुक्त योजना बनाना, योजना के अनुरूप आवश्यकताओं के एकीकरण के माध्यम से सेवाओं के लिए खरीद करना, प्रशिक्षण और साझा नियुक्तियों को बढ़ावा देना; संचालन में साझापन लाकर संसाधनों के अधिकतम उपयोग के लिए सैन्य कमानों का पुनर्गठन करना, जिसमें संयुक्त/थिएटर कमांड की स्थापना भी शामिल है। इसके अलावा, रक्षा सेवाओं में स्वदेशी उपकरणों के उपयोग को बढ़ावा देना भी सीडीएस व्यवस्था का प्रमुख लक्ष्य है।
आज सीडीएस व्यवस्था को पूरी तरह से पटरी पर लाना एक दुष्कर कार्य है। विशालकाय, असमान, बहुस्तरीय रक्षा संस्थान का पुनर्गठन आसान काम नहीं है, जिसमें वर्दीधारी सैन्य कर्मियों, नागरिक कर्मचारियों, रक्षा उत्पादन इकाइयों के साथ-साथ अनुसंधान और विकास (आर ऐंड डी) संगठन भी शामिल हैं। इनमें कुछ संस्थाएं या परंपराएं ऐसी भी हैं, जो औपनिवेशिक काल से चली आ रही हैं।
ऐसे में, कोई शक नहीं कि जनरल बिपिन रावत के सामने एक बहुत बड़ा काम था। इस काम को पूरा कर दिखाने के लिए वह दृढ़ संकल्पित भी थे। इतना ही नहीं, इस कठिन काम को साकार करने की प्रक्रिया में वह पूरी मुस्तैदी व तेजी के साथ पूरी तरह उतर चुके थे।
यह तो जाहिर है कि विशाल व शक्तिशाली भारतीय सेना में कुछ असंतुलन भी है। थल सेना अपने सर्वाधिक 12 लाख जवानों के साथ सबसे आगे है। उसके बाद यदि जवानों का अनुपात देखें, तो थल, वायु और नौसेना में जवानों का अनुपात क्रमश: 20-2-1 है। मतलब थल सेना के प्रति 20 सैनिकों पर महज एक नौसैनिक है। सेना को 17 अलग-अलग कमांड में विभाजित किया गया है। जनरल बिपिन रावत से उम्मीद की जा रही थी कि वह इस विशाल सेना को कुछ कारगर संयुक्त कमांड में पुनर्गठित करेंगे, जिसका मकसद भौगोलिक रूप से खूब फैली हुई रक्षा संस्थाओं को एक मुकम्मल थिएटर कमांड के तहत लाना है। उदाहरण के लिए, भारतीय सेना के पास तीन पूर्वी कमांड हैं- थल सेना, जिसका मुख्यालय कोलकाता में है, शिलांग में वायु सेना का मुख्यालय है और विशाखापत्तनम में नौसेना का मुख्यालय है।
नए ढांचे में नौसेना को एक समुद्री कमांड के तहत लाया जाना है और वायु सेना को एक छतरी तले जुटाना है। जमीनी सीमाओं पर चीन और पाकिस्तान की चुनौती को दो अन्य थिएटर कमांड द्वारा प्रबंधित किया जाना है, और सैन्य पुनर्गठन का यह कार्य प्रगति पर है।
जनरल रावत ने तीनों सेनाओं में जुड़ाव या साझापन पैदा करने के लिए अपने जुनून के साथ कई कदम उठाए थे। इस प्रक्रिया में वायु सेना, विशेष रूप से, वायु योद्धा के लिए 'सहायक भूमिका' के उल्लेख से नाखुश भी थी। यह आंतरिक सुरक्षा के संदर्र्भ में महत्वपूर्ण था कि थल सेना के प्रमुख और सीडीएस के रूप में जनरल बिपिन रावत ने एक हद तक विवाद को भी आमंत्रित किया था।
लेकिन इतिहास जनरल बिपिन रावत को हमेशा एक ऐसे पेशेवर सैन्य अधिकारी के रूप में स्वीकार करेगा, जिन्हें राष्ट्रीय सैन्य तैयारियों में सुधार के लिए भारत के पहले सीडीएस के रूप में एक कठिन काम सौंपा गया था। अब यह सुनिश्चित करना संस्थागत चुनौती है कि उनके द्वारा शुरू किए गए कार्यों को उनकी वाजिब मंजिल तक पहुंचाया जाए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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