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ब्लूमबर्ग का आर्थिक सर्वेक्षण कहता है कि आर्थिक मंदी एशियाई देशों को बेहद प्रभावित करेगी
by Lagatar News
Deepak Ambastha
ब्लूमबर्ग का आर्थिक सर्वेक्षण कहता है कि आर्थिक मंदी एशियाई देशों को बेहद प्रभावित करेगी. लेकिन भारत पर इसका असर नहीं के बराबर होगा. आर्थिक विचारों का एक वर्ग इससे इत्तेफाक नहीं रखता. उसका कहना है कि रूस यूक्रेन युद्ध, नरेंद्र मोदी सरकार की आर्थिक नीतियां, रुपया का डॉलर के मुकाबले सर्वकालीन कमजोर प्रदर्शन ऐसे कारक हैं, जिन्हें देखते हुए यह साफ है कि भारत की अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आने वाली है या कहें कि मंदी का असर दिखने भी लगा है. इससे अलग भारतीय रिजर्व बैंक का कहना है कि डॉलर के मुकाबले रुपए की गिरावट को बहुत चिंता की नजरों से देखना उचित नहीं है, क्योंकि रुपया विश्व की अन्य करेंसी के साथ अच्छा व्यापार कर रहा है रुपया मजबूत है. बहुत चिंतित होने जैसी कोई बात नहीं नजर आती है.
केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी का एक बयान बेहद चर्चा में है कि राजनीति विकास का वाहक न बनकर सामाजिक परिवर्तन का जरिया बन कर सत्ता में बने रहने का साधन मात्र बन गई है. गडकरी यहीं नहीं रुकते. वह आगे कहते हैं कि मन में आता है कि राजनीति छोड़ दूं. कुछ आर्थिक विशेषज्ञ नितिन गडकरी के बयान को देश में आने वाले संभावित राजनीतिक और आर्थिक भूचाल से जोड़कर देखना चाहते हैं. इस विचारधारा के विशेषज्ञों का मानना है कि देश की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई है. सरकार की जो नीतियां हैं, वे इसे और बर्बाद करेंगी. यही कारण है कि गडकरी पहले ही राजनीति छोड़ने की बात कह रहे हैं. लेकिन ध्यान देना होगा कि नितिन गडकरी ऐसे राजनेता हैं, जो कुछ बोलने से बचते नहीं हैं. उन्हें जो दिखता है या फिर कहें, जिसे वह ठीक या गलत जैसा भी समझते-देखते हैं, बहुत स्पष्ट रूप से कह डालते हैं. इसके कई उदाहरण हैं. उन्होंने योगी आदित्यनाथ के संदर्भ में कहा था कि हमारी पार्टी में कुछ ऐसे नेता हैं, जिन्हें वैसे ही कपड़ों की जरूरत है, जैसा फिल्म बांबे टू गोवा के एक सीन में दिखाया गया है, जिसमें एक बच्चे को खाने से रोकने के लिए उसके मां-बाप उसके मुंह में कपड़ा डाल कर रखते हैं, गडकरी ने कहा था कि हमारे कुछ नेताओं के लिए भी ऐसा करना जरूरी है.
यह बात कहीं से छिपी नहीं है कि भाजपा में नितिन गडकरी की जो भी हैसियत हो, वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लाड़ले हैं. यही कारण है कि जब महाराष्ट्र में प्रमोद महाजन की अथक कोशिशों से पहली बार भाजपा शिवसेना की सरकार बनी थी, तब सिर्फ और सिर्फ नितिन गडकरी को ऊपर उठाने के लिए संघ ने प्रमोद महाजन के पर कतर दिए थे और यह बगैर सोचे कि सरकार बनाने में महाजन की क्या भूमिका थी. नितिन गडकरी को बढ़त दी गई थी. ऐसे कई उदाहरण हैं, जिससे साबित होता है कि संघ के लिए गडकरी क्या है और भाजपा के लिए संघ क्या है. फिर भी यदि गडकरी कुछ संकेत देकर राजनीति से किनारा चाहते हैं तो क्या यह संकेत देश के आर्थिक मोर्चे की ओर है. समय इसका जवाब देगा, लेकिन आज की तारीख में तो ब्लूमबर्ग की सर्वे रिपोर्ट यही कहती है कि एशियाई देशों की तुलना में भारत मंदी की मार से बच निकलेगा.
लगातार बढ़ती महंगाई और उससे पैदा हो रही चुनौतियों ने विश्व के ज्यादातर देशों को चिंतित कर दिया है. हालांकि इन परिस्थितियों के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का दावा है कि अमेरिका में मंदी का दौर नहीं आने जा रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति कहते हैं, मेरे विचार में हम अभी मंदी के दौर में नहीं जा रहे हैं. बाइडन कहते हैं, अमेरिका में बेरोजगारी दर अभी भी इतिहास में सबसे कम है. यह मात्र 3 पॉइंट 6 प्रतिशत है. बाइडन कहते हैं, अमेरिका दिव्य विकास से स्थिर विकास की ओर बढ़ेगा. इस वजह से अमेरिकी अर्थव्यवस्था कुछ नीचे आती हुई दिख सकती है, बावजूद इसके यह मानना उचित नहीं होगा कि अमेरिका मंदी का दौर देखने जा रहा है. ब्लूमबर्ग ने दुनिया भर के अर्थशास्त्रियों के बीच कराए गए सर्वे में दावा किया है कि पहले से ही आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहे कई एशियाई देश भी मंदी की चपेट में आ सकते हैं. सर्वे के हिसाब से चीन के मंदी में फंसने की आशंका 20 फीसदी है. अमेरिका की 40 फीसदी और यूरोप के देशों की 55 फीसदी. अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि महंगाई पर काबू पाने के लिए दुनिया के केंद्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं इससे मंदी की आशंका बढ़ गई है.
मूडीज एनालिटिक्स इंक में एशिया पेसिफिक के चीफ आर्थिक विशेषज्ञ स्टीवन को चरण का कहना है कि ऊर्जा की बढ़ती कीमतों ने जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है, जिससे उस क्षेत्र के बाकी हिस्सों पर प्रभाव पड़ता है. सामान्य तौर पर एशिया में मंदी का जोखिम लगभग 20 से 25% है. लेकिन यही बात अमेरिका और यूरोप के लिए लागू नहीं होती है . वहां पर इसकी आशंका अधिक है.
Rani Sahu
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