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नहीं, इसे नरेन्द्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट कहना उचित नहीं, यह तो 135 करोड़ भारतीयों की चाहत साकार हुई है। जो काम गुलामी की जंजीरों से मुक्त होते ही हमारे जन-नायकों को कर देना था वह अब नरेन्द्र भाई दामोदर मोदी ने आजादी के 75वें वर्ष में कर दिखाया। इस ऐतिहासिक कार्य का श्रेय मोदी को देने में जो कृपणता दिखा रहे हैं, उन पर क्या कहा जाए?
इन्होंने रायसीना हिल्स क्षेत्र में बनी ब्रिटिशकालीन इमारतों का स्वरूप और गुलामी की छवि बदलने के श्रेष्ठ प्रयासो पर सवाल उठाये। जिस संसद भवन को 40 वर्ष पूर्व अप्रयोजनीय घोषित कर दिया गया था, स्वतंत्र भारत के शासकों ने इंजीनियरों की उस रिपोर्ट को भी उठा कर ताख पर रख दिया और सेन्ट्रल विस्टा की कल्पना को साकार करने में जुटे नरेंद्र मोदी को कोसने इस लिए जुट गए कि वे इंडिया गेट से भारत पर 250 वर्षों तक ब्रिटिश राजशाही के प्रतीक जॉर्ज पंचम की मूर्ति के स्थान पर भारत के हर दिल अजीज नेता सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा स्थापित करना चाहते थे।
बरहाल इंडिया गेट पर नेता जी की 28 फ़ीट की प्रतिमा स्थापित हो चुकी है और राज्यसभा, लोकसभा का लोकतंत्र का नया मन्दिर बृहस्पतिवार, 8 सितम्बर को राष्ट्र को समर्पित हो चुका है। राजपथ, जिससे राजसी घमंड की बू आती थी, उसका नाम भी 'कर्तव्यपथ' हो गया है जो यह प्रतिध्वनित करता है कि लोकतंत्र में लोक प्रतिनिधि एवं लोकसेवक दोनों ही जनता की सेवा के प्रति कर्त्तव्य निष्ठ होने चाहियें।
गोविंद वर्मा
संपादक 'देहात'
Rani Sahu
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