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- कोरोना से महंगाई तक,...
नमस्कार मैं रवीश कुमार, याद कीजिए जब लोग क्वारंटीन सेंटर से लौट कर घर आया करते थे, तब उनका स्वागत ऐसे होता था जैसे दिवाली मन रही हो, कोई युद्ध से जीत कर लौट रहा हो. अब जब दिवाली आ गई है तो इस मौके पर उन्हें भी याद करना चाहिए जिनके अपने कभी नहीं लौट सकेंगे. कोरोना की दूसरी लहर के बाद की इस दिवाली में उनकी याद भी शामिल होनी चाहिए. जिन्हें भुला देने की कोशिश में उस पूरे दौर पर ही अंधेरी चादर ओढ़ा दी गई है. जिन्हें हटा कर रोशनी में लाने की ज़रूरत है. वैसे भी प्रथा है कि जिसके घर मातम हो, उसके घर पड़ोसी दिया रख जाते हैं ताकि कोई घर अंधेरा न छूटे. किसी का मकान ख़ाली हो तो वहां भी कोई मोमबत्ती जला आता है. त्योहार इसी से बड़ा और अच्छा होता है जब वह अपने भीतर उन सभी को समेट लेता है जो किसी वजह से छूट जाते हैं। और इस वजह से बहुत रुलाता भी है क्योंकि इन मौकों पर अपनों की याद बहुत आती है।