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जम्मू कश्मीर में लगभग एक महीने में तीन हिंदू कर्मचारियों सहित चार हिंदुओं की हत्या बताती है
जम्मू कश्मीर में लगभग एक महीने में तीन हिंदू कर्मचारियों सहित चार हिंदुओं की हत्या बताती है कि आतंकवादियों की मंशा क्या है। 12 मई को बडगाम में सरकारी कर्मचारी राहुल भट को आतंकवादियों ने गोली मारी तो महीने के अंतिम दिन अनुसूचित जाति की अध्यापिका रजनी बाला को बडगाम के एक विद्यालय में तथा 2 जून को उसी जिले के बैंक मैनेजर की बैंक में घुसकर हत्या कर दी। कश्मीरी हिंदू निश्चित रूप से इन स्थितियों से भयभीत होंगे. घाटी से खबर भी आ रही है कि वहां कार्यरत कश्मीरी हिंदू अपना स्थानांतरण कश्मीर से बाहर करने की मांग कर रहे हैं। रजनी बाला की हत्या के बाद कश्मीर में कार्यरत जम्मू संभाग के हिंदू कर्मियों ने भी अपने स्थानांतरण की मांग शुरू कर दी। इन्होंने चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगें पूरी न हुईं तो वे घाटी से पलायन कर जाएंगे।
हालांकि रजनी बाला की हत्या के बाद उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने विशेष बैठक लेकर ऐसे कई निर्णय किए जिनसे इनके अंदर सुरक्षा के साथ-साथ यह भाव भी पैदा होगा कि सरकार उन्हें लेकर चिंतित है और उनको पूरी तरह संरक्षित करना चाहती है। उदाहरण के लिए सरकार ने प्रधानमंत्री रोजगार पैकेज के तहत नियुक्त हिंदू कर्मियों और जम्मू संभाग के हिंदू कर्मचारियों के स्थानांतरण की प्रक्रिया शुरू कर दी है। उपराज्यपाल सिन्हा ने घाटी में तैनात हिंदू कर्मचारियों को 6 जून तक सुरक्षित स्थानों पर नियुक्त करने का निर्देश भी जारी कर दिया। सरकार की कोशिश है कि इनको अलग-अलग और दूरस्थ इलाकों में तैनात करने के बजाय जितना संभव हो एक ही शहर या कस्बे में तैनात किया जाए तथा उन्हें एक साथ आवासीय सुविधाएं भी प्रदान की जाएं। यही नहीं, इनकी समस्याओं और जो मुद्दे ये उठा रहे हैं उनके समाधान के लिए उपराज्यपाल सचिवालय और महाप्रशासनिक विभाग में एक विशेष प्रकोष्ठ भी बनाया जा रहा है। इस प्रकोष्ठ में शिकायतें दर्ज कराने के लिए एक विशेष ईमेल आईडी उपलब्ध कराई जा रही है। सरकार की ओर से स्पष्ट कहा गया है कि अगर कोई वरिष्ठ अधिकारी इन कर्मचारियों को प्रताड़ित करता पाया गया तो इसके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।
इन कदमों से हिंदू सरकारी कर्मचारी परिवारों में अच्छा संकेत जाएगा। सच है कि लगभग 100 विस्थापित कश्मीरी हिंदू परिवार पिछले कुछ दिनों में घाटी छोड़ जम्मू चले आए हैं। मनुष्य होने के नाते अपने जान-माल और परिवार की सुरक्षा की चिंता बिल्कुल स्वाभाविक है। वैसे भी कश्मीर में आतंकवाद का इतिहास भयावह है और स्वयं कश्मीरी हिंदुओं ने जो कुछ झेला है उसको देखते हुए आसानी से कोई भी जोखिम नहीं उठा सकता।
जैसा हम जानते हैं, घाटी में प्रधानमंत्री रोजगार पैकेज के तहत करीब 4000 विस्थापित कश्मीरी हिंदू सरकारी नौकरियां पा चुके हैं। जम्मू संभाग से अनुसूचित जाति के डेढ़ से दो हजार सरकारी कर्मचारी घाटी में सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा कुछ लोग व्यवसाय भी कर रहे हैं। विस्थापित कश्मीरी हिंदुओं में से कई परिवार उनके लिए बनाई ट्रांजिट आवासीय कॉलोनियों में रहते हैं। सरकार इनके लिए हरसंभव ऐसी व्यवस्था करे ताकि भयभीत होकर इन्हें पलायन न करना पड़े। उपराज्यपाल प्रशासन ने साफ किया है कि प्रधानमंत्री रोजगार पैकेज के तहत नियुक्त सभी विस्थापित कश्मीरी हिंदू कर्मियों को 2023 के अंत तक सरकारी आवास उपलब्ध हो जाएगा। लगभग 6000 कर्मचारियों के लिए सुरक्षित कॉलोनियों में फ्लैट बनाए जा रहे हैं। 12 सौ कर्मचारियों को पहले से स्थापित कॉलोनियों में फ्लैट दिए जा चुके हैं। 1324 फ्लैट इस साल के अंत तक तैयार हो जाएंगे और अगले वर्ष दिसंबर माह तक अधिकांश कर्मचारियों को मिल जाएंगे। इतनी सारी व्यवस्थाओं के बावजूद अगर कोई सोचता है कि हम पलायन करके ही सुरक्षित रह सकते हैं तो इसे उचित नहीं ठहराया जा सकता। अगर सुरक्षित कॉलोनियां बनाई गई हैं, सरकार उन्हें उनमें एक साथ रखकर सुरक्षा प्रदान कर रही है और आगे भी जो आएंगे उसी तरह सुरक्षित रहेंगे तो साहस दिखाना चाहिए। 1990 के पलायन ने आतंकवादियों, पाकिस्तानपरस्तों का हौसला कितना बढ़ा दिया यह बताने की आवश्यकता नहीं है। जम्मू-कश्मीर उनके हाथों का खिलौना बन गया।
सोर्स- lokmatnews
Rani Sahu
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