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उस दुर्भाग्यपूर्ण घड़ी की कल्पना कीजिए, जब एक अमेरिकी डॉलर के बदले 100 रुपए खर्च करने पड़ें
Soumitra Roy
उस दुर्भाग्यपूर्ण घड़ी की कल्पना कीजिए, जब एक अमेरिकी डॉलर के बदले 100 रुपए खर्च करने पड़ें? दुआ करें कि ऐसा न हो. अगर हुआ तो फिर इस सरकार की साख का क्या होगा. जिसे लेकर मौजूदा सरकार के मुखिया ने ही पीएम बनने से पहले सवाल उठाया था? यह बार-बार कहा जा रहा है कि देश की माली हालत ढलान पर श्रीलंका की ओर जा रही है, जहां एक परिवारवादी सत्ता ने अवाम की आंखों में नफ़रत की पट्टी बांधकर देश को कंगाल कर दिया. सवाल यह कि क्या बीजेपी भारत में आरएसएस के परिवारवाद की उपज नहीं है?
ख़ैर, बीते 8 हफ़्तों में भारत ने जितनी विदेशी मुद्रा गंवाई है, उसकी भरपाई एक साल में भी नहीं हो सकती. बीते 29 अप्रैल तक का RBI का डेटा कहता है कि देश ने 45 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार गंवाया है. अब यह 600 बिलियन डॉलर से भी कम 597 बिलियन डॉलर पर है. आने वाले आंकड़े और भी कम हो सकते हैं. 2008 की मंदी में देश के विदेशी मुद्रा भंडार से 70 बिलियन डॉलर कम हुए थे. आज देश के बेशकीमती ख़ज़ाने का 8% हिस्सा लुट चुका है.
देश का आयात बिल अभी भी निर्यात से ज़्यादा है और दोनों के बीच का अंतर अप्रैल में 200 बिलियन डॉलर को पार कर चुका है. देश का पेट्रोलियम इंपोर्ट (आयात) बिल ही 172 बिलियन डॉलर पर है. ऊपर से मोदी सरकार ने अक्लमंदी दिखाते हुए राज्यों से 10% कोयला विदेशों से मंगवाने को कह दिया, जिसकी कीमत डॉलर में चुकाया जाएगा. RBI ने बीते दिनों ब्याज़ दरें बढ़ाईं तो अमेरिकी फेडरल बैंक ने भी दरें बढ़ा दीं. फिर RBI की अनुमति से हमारे बैंकों ने डॉलर बेचे, ताकि रुपया न गिरे. रूपया फिर भी गिरता जा रहा है.
सारे उपाय नाकाम हो रहे हैं, क्योंकि इकॉनमी की बुनियाद ढ़ह रही है. 9 मई को रुपया 77.40 प्रति डॉलर पर खुला और बीच में 77.52 तक गिरने के बाद 77.50 प्रति डॉलर पर बंद हुआ. अब विश्लेषकों का अनुमान है कि यह गिरावट 80 रुपये तक जाएगी.
पूरी दुनिया 70 और 80 के दशक की ऊंची महंगाई और कम ग्रोथ के इतिहास को दोहरा रही है. लेकिन, हमारी-आपकी सरकार बुलडोज़र पर सवार है. आरएसएस का परिवारवाद मस्जिदों के सामने हनुमान चालीसा पढ़ रहा है. सब-कुछ देखकर भी आप "आइटम सांग" में खोए हैं. इतिहास तो आपको भी उतना ही कसूरवार मानेगा, जितना गोदी मीडिया को.
Rani Sahu
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