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चमचागिरी का गुण आज की आवश्यकता बन गया है। मैं खुद इस गुण को मुफीद मानता हूं, लेकिन पता नहीं क्यों अभी तक चमचा बन नहीं पा रहा हूं। दफ्तर में पूरा काम समय पर करने के बावजूद मुझे अफसर व्हाइट एलीफैंट मानता है। जबकि सच यह है कि सफेद हाथी वह स्वयं है। सारे दिन स्टेनो से बतियाना और उसके साथ कॉफी-चाय पीने के अलावा वह करता ही क्या है? हमेशा गोपनीय रिपोर्ट खराब जाने से मेरे प्रमोशंस भी ठण्ड में लगा दिये गये हैं। जबकि जो काम के अलावा और सब कुछ करते हैं, उनके धड़ाधड़ प्रमोशन हो रहे हैं। हालांकि वह भली प्रकार से जानता है कि मैं काम का आदमी हूूं, इसीलिए तो वह मेरा ट्रांसफर नहीं करवाता। परन्तु मेरी आदत चमचागिरी की नहीं होने के कारण मैं निरंतर पिछड़ रहा हूं। दरअसल वो चापलूसों और चापलूसी को पसंद करता है। वो हमेशा सर आप कितने काइंड नेचर के हैं, आप सबका ध्यान रखते हैं, आपके बच्चे की फीस जमा करा आऊं, आप कहें तो घर सब्जी-फल रख आऊं, सर आपका जैसा इनसान आज के जमाने में मिलना कठिन है, सर आपने कभी किसी का बुरा नहीं किया जैसे जुमले रात-दिन सुनना चाहता है।
मुफीद मानने के बावजूद मैं चमचागिरी को नहीं अपना सका, इसका मुझे खेद तो है लेकिन खुद्दारी के अपने मजे हैं, जिसके मद में चूर मैं अपने आपको सबसे अलग कर लेता हूं। मोहल्ले की विकास समिति के अध्यक्ष कई बार मुझसे कह चुके हैं कि मैं उनसे मिला करूं। एक बार तो उन्होंने साफ तौर पर मुझसे कहा भी कि यार पता नहीं तुम किस मिट्टी के बने हो। अपने आपको अफलातून समझते हो। इसका प्रचार उन्होंने पूरे मोहल्ले में कर दिया है, जिससे मैं वहां भी अलोकप्रिय हो गया हूं। मोहल्ले वाले मुझे घमण्डी कहते हैं। जबकि मैं न किसी को अदाता हूं, न सताता हूं, लेकिन मेरी जान के दुश्मन बन गये हैं लोग। चमचागिरी में एक तरह अपने आपको गिराना होता है, जो मैं नहीं कर पाता हूं। पत्नी भी मेरे स्वभाव को लेकर कहती रहती है कि मोहल्ले में बनाकर रखो। सभी से मिलो-जुलो, हमारे काम कैसे होंगे। मेरी पत्नी से मोहल्ले की औरतें कहती रहती हैं कि आपके ‘वो’ तो अलग ही हैं, पता नहीं आपकी (पत्नी की) उनसे कैसे पटती होगी।
थोड़ा लिखने-पढऩे का शौक है तो लेखक भी खिंचे-खिंचे रहते हैं। वे एक-दूसरे से मेरे गर्वोन्मत्त होने की बात करते हैं। किसी सभा-संगोष्ठी, लोकार्पण, सम्मान समारोह में न जाने से अब लोगों ने आमंत्रण देना ही बंद कर दिया है। राज्य अकादमी मुझसे जूनियर्स का सम्मान इसी चापलूसी निपुणता गुण के कारण कर चुकी है, लेकिन मेरा हमेशा अपमान ही होता है। सम्पादकों में भी मैं आलोकप्रिय हूं। उनका कहना है कि न मिलना न जुलना, फिर रचनाओं का प्रकाशन किस आधार पर करें। सच कहूं तो चमचागिरी के गुण के अभाव के कारण मेरा हर क्षेत्र में नुकसान हो रहा है, लेकिन मैं कोशिशों के बावजूद भी अपना मूल स्वभाव नहीं बदल पा रहा हूं। इसके अभाव में यों कहा जा सकता है कि मैं असामाजिक प्राणि होकर रह गया हूं। मुझे कोई घास नहीं डालता, लेकिन मैंने पता नहीं कौनसे जीवन मूल्यों को चुन लिया है, जिससे नुकसान ही नुकसान हो रहा है। मेरे घर कोई आता नहीं और मैं किसी के घर जाता नहीं, अब आप ही बताइये इससे गुजारा होगा कैसे? काश, मैं भी चापलूस बन पाता, कई बार सोचता हूं। आज के युग में बिना चमचागिरी के कहीं दाल नहीं गलती। इसलिए ज्यादातर लोगों ने अपने तमाम स्वार्थ पूरे करने का साधन बना लिया है। चापलूसी की माया अद्भुत और अपरम्पार है। इसलिए इसे तत्काल अपनाइये और अपना जीवन सुखी बनाइये। आजकल चापलूसी गुणीजनों का गुण है।
पूरन सरमा
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal
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