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- आग से निकले सवाल
Written by जनसत्ता: मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर के एक निजी अस्पताल में सोमवार को लगी आग की घटना ने अस्पतालों में अग्नि सुरक्षा से जुड़े इंतजामों की पोल खोल दी है। इस हादसे में आठ लोगों की मौत बता रही है कि अगर अस्पताल में सुरक्षा संबंधी मानकों का पालन किया गया होता तो इतना बड़ा हादसा होने से बच जाता। हालांकि सरकार ने इस मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं और मारे गए लोगों के परिजनों को मुआवजा देने का एलान भी कर दिया है।
पर इतने भर से तो उसकी जिम्मेदारी पूरी नहीं हो जाती! यह हादसा अस्पताल प्रशासन की लापरवाही का नतीजा तो है ही, उससे भी ज्यादा इसके लिए दोषी वे सरकारी महकमे हैं जिन पर अस्पतालों को मंजूरी देने से लेकर वहां हर तरह की सुरक्षा सुनिश्चित करवाने की जिम्मेदारी है। ऐसा नहीं कि अस्पताल में आग की यह कोई पहली घटना है।
पिछले साल नवंबर में भी भोपाल के कमला नेहरू अस्पताल में आग लगने से चार लोगों की मौत हो गई थी। अस्पतालों में आग लगने की घटनाएं बताती हैं कि पिछली घटनाओं से कोई सबक नहीं लिया जाता और हर हादसे के बाद जल्दी ही सब कुछ पुराने ढर्रे पर लौट आता है। जबलपुर के इस अस्पताल में जिस तरह की सुरक्षा संबंधी खामियां सामने आई हैं, उससे लगता है कि राज्य में न जाने कितने अस्पताल ऐसे हादसे का इंतजार कर रहे होंगे।
जैसा कि शुरुआती जांच में पता चला है कि आग अस्पताल को बिजली आपूर्ति करने वाले पैनल और जनरेटर को जोड़ने वाले तार में चिंगारी पैदा होने से लगी। यदि ऐसा है तो पहली नजर में यह हादसा बिजली संबंधी रखरखाव में खामियों से जुड़ा है। लगता है बिजली का कामकाज देखने वाले विभाग ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया और हादसा हो गया। वैसे यह अस्पताल कोरोना काल में ही शुरू हुआ था।
ऐसे में यह भी संभव है कि आनन-फानन में अस्पताल शुरू करवा दिया गया और सुरक्षा मानकों को नजरअंदाज कर दिया गया। मध्यप्रदेश के गृह मंत्री के मुताबिक इस अस्पताल के पास अग्निशमन विभाग का अनापत्ति प्रमाणपत्र भी नहीं था। गौरतलब है कि किसी भी इमारत या अस्पताल आदि के निर्माण के बाद दमकल विभाग अग्नि सुरक्षा संबंधी अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी करता है।
इसमें यह सुनिश्चित किया जाता है कि अस्पताल के पास आग जैसी घटना से निपटने के लिए सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम हों। लेकिन जबलपुर के इस अस्पताल को मिले अनापत्ति प्रमाणपत्र की अवधि खत्म हो चुकी थी। इसके अलावा वहां आग से बचाव का कोई इंतजाम भी नहीं था। न अग्निशमन के उपकरण थे, न रेत आदि। आखिर क्यों नहीं दमकल विभाग को इसका जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए?
पिछले कुछ सालों में अस्पतालों में आग की जितनी भी घटनाएं सामने आई हैं, उनके पीछे बड़ा कारण किसी न किसी स्तर पर घोर लापरवाही रहा है। लगता है कि जबलपुर के इस तीन मंजिला अस्पताल को मंजूरी देते वक्त जिम्मेदार महकमों ने यह देखने की जहमत भी नहीं उठाई कि हादसे की सूरत में लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए आपात निकास द्वार भी है या नहीं। अस्पताल में आने-जाने के लिए सिर्फ चार फुट चौड़ा दरवाजा है।
इस वजह से लोग बाहर भी नहीं निकल पाए। पहली मंजिल से बच कर निकलने की कोशिश में ज्यादातर लोग सीढ़ियों में फंस गए थे। अस्पतालों की इमारतों के लिए मानक निर्धारित होते हैं। लेकिन इस अस्पताल में ऐसा कुछ नहीं था। अग्निकांड की ऐसी घटनाएं सरकारी महकमों में मची अंधेरगंर्दी को तो उजागर करती ही हैं, साथ ही यह भी पता चलता है कि भ्रष्ट तंत्र के लिए लोगों की जान कितनी सस्ती होती है!