सम्पादकीय

रास्ते भर रास्ता ढूंढते हैं : मानसून का देश में आना, उत्तराखंड के पहाड़ों में कठिनाइयों से सामना

Neha Dani
30 July 2022 1:38 AM GMT
रास्ते भर रास्ता ढूंढते हैं : मानसून का देश में आना, उत्तराखंड के पहाड़ों में कठिनाइयों से सामना
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एक दिन उनके गांव तक भी सड़क जैसी बुनियादी सुविधा जरूर पहुंचाएगी।

मानसून का आना देश में सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। लेकिन अति वर्षा से कई इलाकों में बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण स्थानीय नागरिकों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों के लिए आर्थिक रूप से मानसून अहम तो है, लेकिन इससे उनकी दैनिक दिनचर्या सबसे अधिक प्रभावित होती है। अत्यधिक वर्षा से ग्रामीण क्षेत्र अन्य इलाकों से कट कर रह जाते हैं।



इसकी मुख्य वजह सड़क का नहीं होना है। कच्चे और फिसलन भरे रास्तों पर चलना दूभर हो जाता है। वैसे तो पहाड़ी क्षेत्र का नाम सुनते ही न जाने कितनी कल्पनाएं हमारे दिमाग में बन जाती हैं। पहाड़ी क्षेत्र है, तो ठंडी हवाएं चलती होंगी, शुद्ध वातावरण होगा, गर्मी का नामों-निशान नहीं होगा, प्रतिदिन बारिश से मौसम सुहावना रहता होगा इत्यादि। परंतु कल्पनाओं से हकीकत बिल्कुल विपरीत है। जब यहां लगातार बारिश होती है, तो लोगों की जान मुसीबत में आ जाती है।


कई बार बादल फटने अथवा जमीन धंसने की घटनाओं से जान-माल का काफी नुकसान होता है। इस समय भी पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में अत्यधिक बारिश तबाही मचा रही है। दूर-दराज के कई गांव ऐसे हैं, जो अन्य इलाकों से कट गए हैं, क्योंकि पक्की सड़क नहीं होने के कारण वहां पहुंचना मुश्किल हो गया है। बिजली और संचार की व्यवस्था भी लगभग ठप हो गई है। ऐसे में कल्पना करना मुश्किल नहीं है कि वहां का सामाजिक जीवन किस प्रकार कष्टकर होता होगा?

बच्चों की पढ़ाई कितनी प्रभावित होती होगी? उत्तराखंड के बागेश्वर जिला स्थित कपकोट ब्लॉक का बघर गांव, जो पहाड़ की चोटी पर बसा है। यह पहाड़ पर बसा आखिरी इंसानी गांव है। यहां पर आकर सीमा समाप्त हो जाती है। इसके आगे कोई गांव नहीं है और यहां तक सड़क की कोई सुविधा नहीं है। इससे ग्रामीणों, विशेषकर स्कूल जाने वाले छात्र-छात्राओं को सबसे अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

गांव की किशोरियां- नेहा और बबली कहती हैं, हमारा स्कूल गांव से चार किलोमीटर दूर है, जहां सड़क की सुविधा भी नहीं है, जिस कारण हमें जंगल के रास्ते से स्कूल जाना पड़ता है। इन्हीं परेशानियों के कारण न तो हम समय से स्कूल पहुंच पाते हैं और न ही घर, जिससे हमारी पढ़ाई पर भी काफी बुरा प्रभाव पड़ता है। स्कूल जाते समय जब हमें जंगलों से गुजरना पड़ता है, तो जानवरों का भी भय बना रहता है। अगर ऐसे में कोई जंगली जानवर आ जाए, तो हम कहीं भाग भी नहीं सकते हैं।

वह बताती हैं कि जब बारिश होती है, तो जंगल के कच्चे रास्ते कीचड़ से भर जाते हैं, ऐसे में हमें डर भी लगता है कि कहीं हम फिसल कर खाई में गिर न जाएं। उन्होंने कहा कि यदि स्कूल आने-जाने के लिए सड़क मिल जाए, तो हमें एक सुरक्षित रास्ता मिल जाएगा, जिससे हम स्कूल और घर समय पर पहुंच सकते हैं। सड़क न होने से परेशान गांव वासी लाल सिंह और पवन सिंह का कहना है कि हम मजदूरी करने वाले लोग हैं, हमें रोज काम करने के लिए गांव से बाहर जाना पड़ता है।

गांव में, जहां थोड़ी-बहुत सड़क ठीक है, वह भी बारिश के दिनों में खराब हो जाती है। रास्ता सही न होने के कारण हमें राशन और खाने-पीने की सामग्री आदि लाने में भी मुश्किल आती है। वहीं बुजुर्ग महिला जसुली देवी का कहना है कि हम भी अपने बच्चों का उज्ज्वल भविष्य चाहते हैं, लेकिन गांव में बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं। टूटी-फूटी सड़कों के कारण स्कूल जाने वाले बच्चों और गांव के बुजुर्गों को बहुत-सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

सड़क न होने के कारण गांव तक एम्बुलेंस नहीं पहुंच पाती है, जिससे मरीजों को चारपाई पर लिटाकर मुख्य सड़क तक लाना पड़ता है, जो वर्षा के दिनों में सबसे खतरनाक परिस्थिति होती है। राजकीय इंटर कॉलेज, बघर के शिक्षक प्रताप सिंह का कहना है कि यह कॉलेज गांव से चार किलोमीटर दूर है। यहां बहुत दूर-दूर से बच्चे आते हैं। बरसात में अधिक बारिश होती है, तो बच्चे आना बंद कर देते हैं। यह वह गांव है, जहां लोग सड़कों पर चलने के लिए सड़क ढूंढते हैं। हालांकि गांव वालों का विश्वास है कि गांव-गांव तक सड़कों का जाल बिछाने वाली सरकार एक दिन उनके गांव तक भी सड़क जैसी बुनियादी सुविधा जरूर पहुंचाएगी।

सोर्स: अमर उजाला

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