- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- स्वच्छता में गंदगी
x
मित्रो…! मैं आज तक नहीं समझ पाया कि स्वच्छता में गंदगी होती है या गंदगी में स्वच्छता। कमल कीचड़ में ही क्यों खिलता है, जबकि कीचड़ गंदगी का पर्याय माना जाता है। क्या गंदगी फैलाने से कोई पुण्य मिलता है? अगर मिलता है तो कैसे? अगर नहीं तो लोग पूजा की उपयोगी सामग्री बहते पानी में क्यों बहाते हैं? कहां तो सफाई नीयत की होनी चाहिए और कहां लोग नीयत का सफाया कर रहे हैं। पर, मैं स्वच्छता में ही गंदगी ढूंढ़ता हूं और स्वच्छता के बिछोने पर बैठ कर गंदगी पूर्वजों के सिर मल देता हूं। मित्रो…! मैं आज तक नहीं समझ पाया कि मोहल्ले, गाँव और शहर की गंदी गलियों और सडक़ों से स्कूल जाने वाले बच्चे कक्षा में बैठ कर सफाई पर निबन्ध कैसे लिख पाते हैं।
घरों के सामने और पिछवाड़े गन्दगी के ढेर पर बैठे होने के बावजूद लोग आश्रमों में जा कर, धर्म गुरुओं की सम्पत्ति की सफाई-सेवा तो करते हैं, पर मन की गन्दगी दैनिक जीवन में बिखरी क्यों नजऱ आती है। नए बने स्मार्ट सिटी का तो पता नहीं लेकिन कूबड़ वाले पुराने शहरों को स्मार्ट घोषित किए जाने के बावजूद आज भी आँखों के सामने घूरे के ढेर कैबरे करते क्यों दिखाई देते हैं। धर्म और अध्यात्म की तरह स्वच्छता को अपने जीवन का अनिवार्य अंग मानने वाले भारतीयों के जीवन में इन तीनों के घुले-मिले होने के साक्षात दर्शन स्वच्छता पखवाड़े के दौरान नेताओं सहित बगुला भगत बने आम भारतीयों के व्यवहार से सहज क्यों हो जाते हैं। मित्रो…! पिछले कई सालों से देश में मई के महीने में स्वच्छता अभियान के नाम पर दो सप्ताह की स्वच्छता रासलीला का सफल मंचन किया जा रहा है। इस दौरान महंगे परिधानों में सजे-संवरे, स्वच्छता रासलीला के कान्हाओं और गोपियों के दस्ताने पहने हाथों में नए-नवेले झाड़ू को पकडऩे का अन्दाज़ बयाँ कर जाता है कि ख़ास फ़ोटो खिंचवाने के लिए पधारे अभिनेताओं ने अपने जीवन में कभी झाड़ू नहीं पकड़ा होगा। आम जीवन में कभी मक्खी न उड़ाने वाले ये अभिनेता, जिस पूर्ण ईमानदारी और निष्ठा से साल भर देश की सेवा करते हैं, उसी ईमानदारी और निष्ठा से स्वच्छता रासलीला के दौरान सफ़ाई करते नजऱ आते हैं।
नरसिंह के जिस कलयुगी अवतार को प्रसन्न करने के लिए संवैधानिक, न्यायपालिक और कार्यपालिक पदों पर सुशोभित विभिन्न देवों और गणों के ये अवतार फ़ोटो खिंचवाते हैं, स्वच्छता पखवाड़े के पहले दिन यह नरसिंह भी कुछ इसी अन्दाज़ में एक कोण विशेष पर अपना फोटो शूट करवाते हैं। नरसिंह के यह कलयुगी अवतार साल में एक दो-बार भारी सुरक्षा के मध्य आयोजित समारोहों या अवकाश के दौरान ख़ास उन्हीं के लिए खाली की गईं पानी की बोतलों या गिराए गए कागज़़ के टुकड़ों को ख़बरों या सोशल मीडिया पर अकेले उठाते हुए भी देखे जा सकते हैं। ये अवतार भले साल भर आम आदमी के हक़ों पर झाड़ू फेरते रहें, लेकिन स्वच्छता पखवाड़े के दौरान किसी झोंपड़-पट्टी, वाल्मीकि मोहल्ले या सुलभ शौचालय में सफ़ाई करने नहीं जाते। पर, साफ-सुथरी सडक़ों पर ख़ास उन्हीं के लिए गिराए गए पत्तों पर झाड़ू फेरते अवश्य नजऱ आ जाते हैं। यूँ तो वीवीपीआई झाड़ू का जलवा स्वच्छता पखवाड़े के दौरान ही नजऱ आता है, पर भला हो खाँसी वाले मफलर भाई का, जिसने झाड़ू पर ही हाथ फेर कर उसे सडक़ों की बजाय राजपथ, क्षमा करें, कर्तव्यपथ के क़ाबिल बना दिया। मुझे पूरी उम्मीद है कि फि़लहाल दो छोटे कर्तव्यपथों पर क़ाबिज यह झाड़ू एक दिन पूरे देश पर झाड़ू फेरने में सक्षम हो जाएगा। देश में फैली गन्दगी तो पता नहीं कितनी साफ हुई, पर दिलो-दिमाग़ में फैल रही वैमनस्यता का कर्कट आए दिन घना होता जा रहा है। कहते हैं कमल कीचड़ में खिलता है तो क्या कीचड़ गन्दगी का पर्याय है। क्या कीचड़ को साफ करने से कमल मुरझा जाएगा? पर देश में सफ़ाई अभियान की सफलता का आकलन स्वच्छता पखवाड़े के दौरान किए जाने वाले पौधारोपण की सफलता दर से आसानी से लगाया जा सकता है।
पी. ए. सिद्धार्थ
लेखक ऋषिकेश से हैं
By: divyahimachal
Rani Sahu
Next Story