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हाल के समय में भारत सहित अनेक देशों में नए सिरे से विवाद आरंभ हो गया है कि जीन एडिटिंग तकनीक के माध्यम से पिछले दरवाजे से जीएम (जेनेटिकली मोडिफाइड या जेनेटिक रूप से संवर्धित) फसलों को प्रवेश दिलाने का प्रयास किया जा रहा है
भारत डोगरा
सोर्स- अमर उजाला
हाल के समय में भारत सहित अनेक देशों में नए सिरे से विवाद आरंभ हो गया है कि जीन एडिटिंग तकनीक के माध्यम से पिछले दरवाजे से जीएम (जेनेटिकली मोडिफाइड या जेनेटिक रूप से संवर्धित) फसलों को प्रवेश दिलाने का प्रयास किया जा रहा है। यूरोपीय संघ में अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि जीन एडिटिंग की तकनीक को भी जीएम फसलों की श्रेणी में ही रखा जाएगा। इसके बाद जीएम फसलों के प्रसार वाली कंपनियों का ध्यान भारत की ओर गया है, इस कारण हमारे देश में जीएम खाद्य फसलों व खाद्यों के प्रसार की आशंका बढ़ गई है।
ध्यान रहे कि अभी तक केवल कपास की गैर-खाद्य फसल के मामले में ही जीएम फसल बीटी कॉटन की अनुमति दी गई थी। किसी जीएम खाद्य फसल की अनुमति नहीं दी गई है। दो बार जीएम बैंगन की फसल व फिर जीएम सरसों को फैलाने के लिए बहुत जोर लगाया गया, पर व्यापक विरोध के कारण यह प्रवेश नहीं मिल सका। जीएम फसलों के विरोध का एक मुख्य आधार यह रहा है कि ये फसलें स्वास्थ्य व पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित नहीं हैं तथा यह असर जेनेटिक प्रदूषण के माध्यम से अन्य सामान्य फसलों व पौधों में फैल सकता है।
इस विचार को इंडिपेंडेंट साइंस पैनल (स्वतंत्र विज्ञान मंच) ने बहुत सारगर्भित ढंग से व्यक्त किया है। इस पैनल में एकत्र हुए विश्व के अनेक देशों के प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों ने जीएम फसलों पर एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज तैयार किया, जिसके निष्कर्ष में उन्होंने कहा है - 'जीएम फसलों के बारे में जिन लाभों का वादा किया गया था, वे प्राप्त नहीं हुए हैं और ये फसलें खेतों में बढ़ती समस्याएं उपस्थित कर रहीं हैं। अब इस बारे में व्यापक सहमति है कि इन फसलों का प्रसार होने पर ट्रांसजेनिक प्रदूषण से बचा नहीं जा सकता है।
इन फसलों की सुरक्षा संबंधी गंभीर चिंताएं उत्पन्न होती हैं। यदि इनकी उपेक्षा की गई, तो स्वास्थ्य व पर्यावरण की क्षति होगी जिसकी पूर्ति नहीं हो सकती है, जिसे फिर ठीक नहीं किया जा सकता है। जीएम फसलों को अब दृढ़ता से खारिज कर देना चाहिए, अस्वीकृत कर देना चाहिए।' 2009-10 में भारत में बीटी बैंगन के संदर्भ में जीएम के विवाद ने जोर पकड़ा, तो विश्व के 17 विख्यात वैज्ञानिकों ने भारत के प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इस बारे में नवीनतम जानकारी उपलब्ध करवाई।
पत्र में कहा गया कि जीएम प्रक्रिया से गुजरने वाले पौधे का जैव-रसायन बुरी तरह अस्त-व्यस्त हो जाता है, जिससे उसमें नए विषैले या एलर्जी उत्पन्न करने वाले तत्त्वों का प्रवेश हो सकता है। उसके पोषक गुण कम हो सकते हैं या बदल सकते हैं। जीव-जंतुओं को जीएम खाद्य खिलाने पर आधारित अनेक अध्ययनों से जीएम खाद्य के गुर्दे (किडनी), यकृत (लिवर) पेट व निकट के अंगों (गट), रक्त कोशिका, रक्त जैव रसायन व प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी सिस्टम) पर नकारात्मक स्वास्थ्य असर सामने आ चुके हैं।
कृषि व खाद्य क्षेत्र में जेनेटिक इंजीनियरिंग की प्रौद्योगिकी मात्र लगभग छह-सात बहुराष्ट्रीय कंपनियों (व उनकी सहयोगी या उप-कंपनियों) के हाथ में केंद्रित हैं। इन कंपनियों का मूल आधार पश्चिमी देशों व विशेषकर अमेरिका में है। इनका उद्देश्य जेनेटिक इंजीनियरिंग के माध्यम से विश्व कृषि व खाद्य व्यवस्था पर ऐसा नियंत्रण स्थापित करना है, जैसा विश्व इतिहास में आज तक संभव नहीं हुआ है। इन सब तथ्यों व जानकारियों को ध्यान में रखते हुए सभी जीएम फसलों का विरोध जरूरी है। कुछ समय पहले देश के महान वैज्ञानिक प्रोफेसर पुष्प भार्गव का निधन हुआ है।
वह सेंटर फॉर सेल्यूलर ऐंड मॉलीक्यूलर बायोलॉजी, हैदराबाद के संस्थापक निदेशक रहे व नैशनल नॉलेज कमीशन के उपाध्यक्ष रहे। सुप्रीम कोर्ट ने प्रो पुष्प भार्गव को जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी (जीईएसी) के कार्य की निगरानी करने के लिए नियुक्त किया था। जिस तरह जीईएसी ने बीटी बैंगन को जल्दबाजी में स्वीकृति दी थी, पुष्प भार्गव ने उसे अनैतिक व एक बहुत गंभीर गलती बताया था। उन्हें श्रद्धांजलि देने के साथ यह भी जरूरी है कि जिन बहुत गंभीर खतरों के प्रति उन्होंने बार-बार चेतावनियां दीं, उन खतरों के प्रति हम बहुत सावधान बने रहें।
Rani Sahu
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