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- चुनौती का सामना
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। देश के कुछ राज्यों में कोरोना संक्रमण की रफ्तार जिस तेजी से बढ़ रही है, उससे साफ हैो कि हालात अब बेकाबू हो चुके हैं। यह चिंताजनक इसलिए भी है क्योंकि पूर्णबंदी के दौरान लोगों ने जिस तरह से बचाव के उपाय किए और जोखिम से अपने को बचाया, अब वही लोग घोर लापरवाही बरत रहे हैं और संक्रमण को फैलाने में भागीदार बन रहे हैं। इसमें राज्य सरकारों की लापरवाही भी कम नहीं रही है। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक कर स्थिति की समीक्षा करते हुए साफ कहा कि अब किसी भी स्तर पर लापरवाही बर्दाश्त न की जाए, न ही किसी भी तरह की ढील दी जाए। हालात पर काबू पाने के लिए यह जरूरी भी है कि बचाव के उपायों का सख्ती से पालन हो।
राज्यों को प्रधानमंत्री की यह हिदायत भी काफी महत्त्वपूर्ण है कि महामारी का मुकाबला करने के लिए सभी राज्य मिल कर काम करें। इसमें कोई संदेह भी नहीं कि इस संकट से पार पाने के लिए सबको मिल कर ही काम करना होगा। संक्रमण फैलने के लिए राज्य एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराएं या केंद्र और राज्यों के बीच तालमेल का अभाव दिखे, या राज्य सरकारें केंद्र पर मदद नहीं करने के आरोप लगाएं, इन सबसे काम नहीं चलने वाला।
देश में कोरोना के मामले भले घट रहे हों, लेकिन दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश में तो अब संक्रमण विस्फोटक स्थिति में पहुंच गया है। हालात इतने विकट हैं कि सर्वोच्च अदालत ने भी चिंता व्यक्त करते हुए राज्य सरकारों से पूछा है कि आखिर वे कारगर कदम क्यों नहीं उठा पा रही हैं। आज जो हालात हैं, उसमें इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि सरकारों और आमजन की लापरवाही ने ही इस समस्या को अचानक से बढ़ाया है।
त्योहारी मौसम के कारण जिस तरह बाजारों में भीड़ बढ़ी, वह संक्रमण फैलने की बड़ी वजह रही है। जबकि बेहतर यह होता कि बाजारों को खोलने के लिए व्यावहारिक नियम बनाए जाते, ताकि अचानक से भीड़ नहीं बढ़ती। इससे सुरक्षित दूरी के नियम की जम कर धज्जियां उड़ी। दिल्ली सहित देश के तमाम शहरों में बाजारों में भीड़ तो बढ़ी ही, लोगों ने मास्क का उपयोग करने में भी लापरवाही बरती। हालांकि अब मास्क नहीं लगाने पर दिल्ली सहित कई राज्यों में जुर्माना वसूला जा रहा है। लेकिन जुर्माना वसूल पाना भी पुलिस और इस काम में लगाए गए लोगों के लिए संभव नहीं हो पा रहा है।
कोरोना से निपटने के लिए प्रभावी कदम उठाने की दिशा में प्रधानमंत्री ने सबसे ज्यादा जोर आरटी-पीसीआर जांच बढ़ाने पर दिया है। सच्चाई तो यह है कि ज्यादातर राज्यों में जांच का काम उम्मीदों के मुताबिक गति नहीं पकड़ पाया है। जब तक सही जांच नहीं होगी, तब तक संक्रमितों का इलाज नहीं हो सकेगा। आरटी-पीसीआर जांच महंगी पड़ती है, इसलिए कई राज्यों ने इससे पहले ही पल्ला झाड़ लिया।
इसका नतीजा यह हुआ कि संक्रमण तेजी से फैलता गया। जब जांच ही नहीं होगी और लोग संक्रमण से मरेंगे तो कैसे हम कोरोना मृत्युदर को एक फीसद से नीचे रख पाएंगे, यह बड़ा सवाल है। केंद्र और राज्यों के समक्ष अब बड़ी चुनौती आने वाले टीके को लेकर है कि कैसे उसे सुरक्षित देश के करोड़ों लोगों तक पहुंचाया जाएगा। राज्य सरकारों ने अभी से इस दिशा में पुख्ता प्रबंधन नहीं किया तो टीकाकरण के अभियान को भी धक्का लग सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि कोरोना जैसे संकट से न तो जनता अकेली लड़ सकती है, न सिर्फ सरकारें। दोनों को एक दूसरे का सहयोग करना होगा।