सम्पादकीय

खतरनाक रूप लेता अतिवाद, कुछ पार्टियों की तुष्टिकरण की राजनीति मुस्लिम समाज में बढ़ा रही उन्‍माद

Rani Sahu
10 July 2022 2:45 PM GMT
खतरनाक रूप लेता अतिवाद, कुछ पार्टियों की तुष्टिकरण की राजनीति मुस्लिम समाज में बढ़ा रही उन्‍माद
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एक टीवी चैनल पर बहस के दौरान भाजपा की प्रवक्ता रहीं नुपुर शर्मा ने पैगंबर मोहम्मद साहब को लेकर जो कुछ कहा, उसे लेकर देश में जैसा उन्माद और अतिवाद देखने को मिल रहा है


सोर्स- जागरण
संजय गुप्त
एक टीवी चैनल पर बहस के दौरान भाजपा की प्रवक्ता रहीं नुपुर शर्मा ने पैगंबर मोहम्मद साहब को लेकर जो कुछ कहा, उसे लेकर देश में जैसा उन्माद और अतिवाद देखने को मिल रहा है, वह न केवल चिंताजनक है, बल्कि कानून एवं व्यवस्था का उपहास उड़ाने वाला भी। हालांकि नुपुर शर्मा अपनी टिप्पणी के लिए माफी मांग चुकी हैं और भाजपा ने उन्हें निलंबित भी कर दिया है, लेकिन जो लोग उनके सिर पर इनाम रखने की घोषणाएं कर रहे हैं, उन पर कोई फर्क पड़ता नहीं दिख रहा। इससे भी खतरनाक बात यह है कि नुपुर शर्मा का समर्थन करने के कारण दो लोगों की हत्या की जा चुकी है। अमरावती के उमेश कोल्हे और उदयपुर के कन्हैयालाल को सिर्फ इसलिए निर्ममता से मार दिया दिया गया, क्योंकि उन्होंने नुपुर का समर्थन किया था। कन्हैयालाल के हत्यारों ने तो उनकी बर्बर हत्या का वीडियो भी बनाया। उन्होंने जिस तरह एक अन्य वीडियो बनाकर प्रधानमंत्री को भी धमकाया, उससे उनके दुस्साहस का ही पता चलता है।
हालांकि उमेश और कन्हैयालाल के हत्यारे गिरफ्तार हो चुके हैं, लेकिन अतिवादी और जिहादी तत्व बाज नहीं आ रहे हैं। वे नुपुर शर्मा का समर्थन करने वालों को मारने की धमकियां देने में लगे हुए हैं। क्या यह विचित्र नहीं कि जब एक ओर मुस्लिम नेता और मौलाना-मौलवी इस्लाम को शांति का मजहब बताने में लगे हुए हैं, तब उनके ही बीच के कुछ लोग सिर तन से जुदा के नारे लगाने में लगे हुए हैं? मुस्लिम समुदाय को इस पर विचार करना होगा कि सिर तन से जुदा के नारे लगा रहे लोग इस्लाम के बारे में देश-दुनिया को क्या संदेश दे रहे हैं?
नुपुर शर्मा प्रकरण पर राजनीति भी हो रही है, क्योंकि अपने देश में हिंदुओं और मुसलमानों को लेकर राजनीति न जाने कब से होती चली आ रही है। जो विपक्षी नेता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पाठ पढ़ाने में लगे हुए हैं, वही नुपुर की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं। इस राजनीति के बीच जब नुपुर सुप्रीम कोर्ट यह मांग लेकर गईं कि उनके खिलाफ दर्ज तमाम एफआइआर को दिल्ली स्थानांतरित कर दिया जाए, क्योंकि उनकी जान को खतरा है, तो वहां से उन्हें फटकार तो मिली ही, उन्हें कन्हैयालाल की हत्या का जिम्मेदार भी बता दिया गया। यदि सुप्रीम कोर्ट की नजर में कन्हैयालाल की हत्या के लिए नुपुर शर्मा जिम्मेदार हैं तो टीवी डिबेट में शिवलिंग पर कटाक्ष कर उन्हें उकसाने वाले तस्लीम रहमानी जिम्मेदार क्यों नहीं हैं?
नि:संदेह सुप्रीम कोर्ट की अनपेक्षित टिप्पणियों ने देश को सही संदेश नहीं दिया। यही कारण रहा कि 15 पूर्व जजों समेत करीब सौ गणमान्य लोगों ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों को लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन करार दिया। दिल्ली उच्च न्यायालय के रिटायर्ड जज एसएन ढींगरा ने तो इन टिप्पणियों को गैरकानूनी तक बता दिया। पता नहीं इस तरह की प्रतिक्रियाओं पर सुप्रीम कोर्ट का क्या रुख होगा, लेकिन यह समझना कठिन है कि नुपुर को वैसी राहत क्यों नहीं मिली, जैसी आम तौर पर ऐसे मामलों में अन्य लोगों को मिल जाती है?
यह सही है कि नुपुर शर्मा ने जो टिप्पणी की, उससे उन्हें बचना चाहिए था, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि उनकी टिप्पणी उस कटाक्ष के जवाब में थी, जो कथित तौर पर ज्ञानवापी परिसर में मिले शिवलिंग को लेकर किया गया। इस शिवलिंग को न केवल फौव्वारा कहा जा रहा था, बल्कि उसकी तुलना सड़क किनारे लगे गोल पत्थरों और परमाणु संयंत्रों से भी की जा रही थी। क्या इस तरह की अनर्गल बातें नुपुर के साथ-साथ शेष हिंदू समाज को आहत करने वाली नहीं थीं?
यह सही है कि ज्ञानवापी प्रकरण पर अभी अदालतों का निर्णय आना शेष है, लेकिन क्या यह किसी से छिपा है कि काशी में मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई। यह तो एक ऐसा तथ्य है, जो औरंगजेब के शासनकाल पर लिखी गई किताबों में भी दर्ज है। किसी भी मत-मजहब का कोई भी भारतीय यदि इतिहास के पन्ने पलटेगा तो उसे यही मिलेगा कि मुस्लिम शासकों ने किस तरह हिंदुओं को जबरन मुसलमान बनाया और उनके तमाम मंदिरों को तोड़ा। इनमें मथुरा का कृष्ण जन्मभूमि मंदिर भी है। इतिहास में यह भी मिलेगा कि अंग्रेजों ने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच खाई को बढ़ाया। यह खाई इतनी बढ़ी कि आज मुसलमान यह भी नहीं याद रखना चाहते कि एक समय उनके पूर्वज हिंदू ही थे।
वास्तव में इसी सोच और अंग्रेजों की ओर से पैदा की गई खाई ने भारत का विभाजन कराया। इस दौरान लाखों लोग मारे गए। विभाजन के बाद भी देश में हिंदू-मुस्लिम दंगों का सिलसिला कायम रहा। इसमें कोई संदेह नहीं कि पाकिस्तान न केवल भारत से नफरत करता है, बल्कि हिंदुओं से भी। इसका प्रमाण यह है कि पाकिस्तान के हिंदू दोयम दर्जे के नागरिक बनकर रह गए हैं। यह पाकिस्तान की हिंदू विरोध की मानसिकता ही है, जिसके चलते वह कश्मीर में दखल देने के साथ भारत के मुसलमानों को भड़काने का काम करता रहता है। विडंबना यह है कि कुछ राजनीतिक दल इस सच को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं। इसका कारण उनकी अल्पसंख्यकों और विशेष रूप से मुस्लिम समाज के तुष्टीकरण की राजनीति है। यह राजनीति भी मुस्लिम समाज में अतिवाद को बढ़ाने का काम कर रही है।
कुछ राजनीतिक दलों के साथ तथाकथित सेक्युलर यह जो अभियान छेड़े हुए हैं कि भारत में मुसलमानों को सताया और दबाया जा रहा है, उसके चलते भी मुस्लिम समाज में कट्टरता बढ़ रही है। उसके दिमाग में यह काल्पनिक बात घर कर रही है कि उसे वाकई सताया जा रहा है। यह कट्टरपंथ को बढ़ावा देने वाली राजनीति कितना खतरनाक रूप ले चुकी है, इसका प्रमाण कन्हैयालाल की हत्या उसी तरह से किया जाना है, जैसे इस्लामिक स्टेट के आतंकी करते रहे हैं।
जो राजनीतिक दल मुस्लिम समाज का तुष्टीकरण करने में लगे हुए हैं, वे यह चाहते हैं कि हिंदू समाज यह भूल जाए कि मुगलों के शासनकाल में उस पर भयंकर अत्याचार हुए। यह संभव नहीं। सच तो यह है कि 1991 के धर्मस्थल कानून ने हिंदू समाज की वेदना को बढ़ाने का ही काम किया, क्योंकि इसके जरिये उसे एक तरह से यही संदेश दिया गया कि वह अपने पर हुए अत्याचारों को भूल जाए। इससे भी खराब बात यह हुई कि इन अत्याचारों को झूठा साबित करने की कोशिश की गई। यह कोशिश आज भी जारी है। इससे हिंदू समाज में आक्रोश बढ़ रहा है। यह आक्रोश अतिवाद का भी रूप ले सकता है और यदि ऐसा होता है तो इसके नतीजे अच्छे नहीं होंगे। उचित यह होगा कि हर किस्म के अतिवाद को रोकने के प्रयास हों और इसमें सभी भागीदार बनें।
Rani Sahu

Rani Sahu

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