सम्पादकीय

संवेदनहीनता की हद

Subhi
1 Aug 2022 5:43 AM GMT
संवेदनहीनता की हद
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इससे ज्यादा अफसोसनाक और क्या हो सकता है कि जिस पुलिस की यह जिम्मेदारी होती है कि मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए वह हर संभव प्रयास करे, अपनी ड्यूटी के तहत सौंपी गई जिम्मेदारियों को ठीक से निभाए, वही संवेदनहीनता और कर्तव्यों के प्रति लापरवाही की सारी हदें पार कर दे।

Written by जनसत्ता: इससे ज्यादा अफसोसनाक और क्या हो सकता है कि जिस पुलिस की यह जिम्मेदारी होती है कि मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए वह हर संभव प्रयास करे, अपनी ड्यूटी के तहत सौंपी गई जिम्मेदारियों को ठीक से निभाए, वही संवेदनहीनता और कर्तव्यों के प्रति लापरवाही की सारी हदें पार कर दे। बिहार में बेगूसराय जिले के निपनिया गांव में एक अज्ञात व्यक्ति का शव मिला था।

सूचना मिलने पर जब पुलिस पहुंची तो उसकी पहली जिम्मेदारी क्या थी? कायदे से व्यक्ति के शव को उचित प्राथमिक कार्रवाई के बाद पोस्टमार्टम के लिए भिजवाना चाहिए था। लेकिन वहां पुलिस की मौजूदगी में सफाईकर्मियों के जरिए शव को पैर में रस्सी बांध कर घसीटते हुए पहले ट्रैक्टर तक, फिर अस्पताल के पोस्टमार्टम हाउस तक भी उसी तरह पहुंचाया गया। किसी अनजान व्यक्ति का भी शव इस तरह देखने पर आमतौर पर कोई इंसान करुणा से भर जा सकता है। पराए कहे जाने वाले लोग भी किसी शव को लेकर अपनी ओर से पर्याप्त संवेदनशीलता बरतते हैं। लेकिन वहां पुलिस का जैसा रवैया रहा, उससे एक बार फिर कई सवाल उठे हैं।

अव्वल तो शव मिलने की सूचना मिलने के बाद वहां पहुंची पुलिस और उसके अधिकारी को क्या अपनी ड्यूटी और उसके तहत तय जिम्मेदारियों का एहसास नहीं था? क्या पुलिस में भर्ती होने के बाद उन्हें मिले प्रशिक्षण के तहत इस तरह के बर्ताव से बचने और उचित प्रक्रिया का पालन करने के बारे में नहीं बताया गया था? इसके अलावा, क्या एक आम इंसान होने के नाते उन्हें एक शव के साथ सम्मान से नहीं पेश आना चाहिए था?

किसी अपराधी की भी मौत के बाद उसके शव के साथ इस तरह का बर्ताव आमतौर पर नहीं किया जाता, लेकिन इस घटना में तो पोस्टमार्टम होने तक शव की शिनाख्त भी नहीं हो सकी थी। फिर सिर्फ शव की स्थिति की वजह से उसे रस्सी बांध कर घसीट कर ले जाने का भी बचाव नहीं किया जा सकता, क्योंकि ऐसी स्थितियों में भी शवों के निपटान के लिए आज तमाम उपाय मौजूद हैं। मामले का वीडियो जब सार्वजनिक हो गया और इससे लोगों के बीच आक्रोश फैलने लगा तब वहां मौजूद पुलिसकर्मियों में से उपनिरीक्षक को निलंबित कर दिया गया, लेकिन यह घटना इस बात का उदाहरण है कि ऐसे मौके पर पुलिस भी किस तरह अपना विवेक कई बार खो देती है।

यह छिपा नहीं है कि आम लोगों के साथ किस तरह के बर्ताव की वजह से कई बार पुलिस के बारे में नकारात्मक छवि बनती है। हालांकि सुरक्षा में तत्पर रहने के कई तरह नारों से लैस पुलिस की पहली जिम्मेदारी यह थी कि वह अपने व्यवहार से सबका विश्वास जीते और जरूरी कानूनी कार्रवाई के वक्त लोगों का सहज सहयोग हासिल करे। लेकिन इसके समांतर हकीकत क्या है, यह हर जगह दिख जा सकती है। पहले ही ऐसी तमाम खबरें आती रहती हैं कि किसी की मौत के बाद शव को घर ले जाने के लिए अस्पताल की ओर से एंबुलेंस या अन्य वाहन मुहैया नहीं कराया गया।

इसकी वजह से किसी को अपने किसी संबंधी का शव कंधे पर लाद कर तो कभी साइकिल पर लेकर जाना पड़ा। इस तरह के मौकों पर भी सवाल उठने का सिरा यही होता है कि किसी की मौत के बाद उसके शव के साथ व्यक्ति, समाज और सरकार को सम्मान के साथ पेश आना चाहिए। यही मानवीयता का भी तकाजा है। लेकिन बेगूसराय की घटना में जैसी अमानवीयता सामने आई, वह हैरान करती है। यह पुलिस महकमे के लिए सबक लेने का वक्त है कि वह अपनी आम छवि को किस रूप में देखना चाहती है।


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