सम्पादकीय

एग्ज़िट पोल के दिन एग्ज़िट खोल, जानिए क्या है माजरा...

Rani Sahu
8 March 2022 10:54 AM GMT
एग्ज़िट पोल के दिन एग्ज़िट खोल, जानिए क्या है माजरा...
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आज दो तरह के एग्ज़िट पोल आए हैं

रवीश कुमार,

आज दो तरह के एग्ज़िट पोल आए हैं. एक तो पांच राज्यों के चुनावों में क्या हुआ उसका एग्ज़िट पोल आ चुका है. आप जानते हैं कि कुछ एग्ज़िट पोल ग़लत होते हैं और कुछ आधे सही होते हैं. एकाध बार सही भी हो जाते हैं, इसके बाद भी न तो आपका विश्वास एग्ज़िट पोल को लेकर कम हुआ है और न ही इसे लेकर मीडिया माहौल का बनना बंद हुआ है. लेकिन हम एग्ज़िट पोल की जगह एग्ज़िट खोल लेकर आए हैं. एग्ज़िट खोल की खोज मैंने की है लेकिन आप अपने नाम से पेटेंट करा सकते हैं. एग्ज़िट खोल के तहत आपको अपनी जेबों की सिलाई अपने आप खुल जाएगी और जगह जगह से आपकी बचत का पैसा निकलने लगेगा.
यह कुर्ता छत से लटक रहा है. आज के बाद इसकी जेब से कितना पैसा निकलेगा, इसका भी एग्ज़िट पोल होना चाहिए. बल्कि इसका नाम हमने एग्ज़िट खोल रखा है. महंगाई के दबाव में जेब की सिलाई खुलती जाएगी, जेब फट जाएगी और आपकी बचत का पैसा दनादन एग्ज़िट करने लगेगा, इसी नई वैज्ञानिक विधि का नाम है एग्ज़िट खोल. अभी तक जेब से निकासी का एक ही मुख्य द्वार हुआ करता है लेकिन विमान की तरह इस जेब में दो छेद दाईं तरफ होंगे और दो छेद बाई तरफ होंगे. निकासी का एक द्वार पीछे होगा और एक द्वार सामने होगा. मंत्री जी फोन पर विमान में बैठे सिक्कों और नोटों को बताएंगे कि यात्रीगण सीट बेल्ट खुल चुका है. चुनाव हो चुका है. जहां जहां से दरवाज़ा खुला है वहां वहां से बाहर कूद जाइये. विमान ख़ाली कर दीजिए. आपका पॉकेट विमान बन गयाहै . चारों तरफ से एग्ज़िट खोल दें अन्यथा महंगाई के दबाव से पाकेट के चिथड़े उड़ जाएंगे. आपने जो भी कमाया है वो पिछले साल ही निकल गया था और जो भी बचा रह गया है, इस साल निकल जाएगा. आप देख रहे हैं दुनिया का पहला एग्ज़िट खोल.
एग्ज़िट पोल बनाम एग्ज़िट खोल. मैं अकेला इस मीडिया माहौल को नहीं बदल सकता और लोगों की जिज्ञासा होती ही है कि कौन जीतेगा. बस दुआ कीजिए कि सारी सरकारें जल्दी जल्दी पुरानी पेंशन व्यवस्था लागूं करें और मुझे भी कोई सरकार पेंशन दे दे. पुरानी पेंशन व्यवस्था से आर्थिक तरक्की आती है. महंगाई और घटती कमाई के कारण कौन इस दौर में अपनी आर्थिक असुरक्षा को लेकर चिन्तित नहीं है. लोग अपना इंतज़ाम नहीं कर पा रहे हैं. सोचते हैं कि दूसरा बंदोबस्त कर दे.इस
महंगाई के कारण जब आपकी जेब को दस्त लगी हो कोई दूसरा आपका बंदोबस्त नहीं कर सकता है. सरकार को एक विज्ञापन निकालना चाहिए.आवश्यकता है महंगाई के सपोर्टरों की. महंगाई के इन सपोर्टरों ने पिछले साल लोगों को समझाने में अच्छा काम किया था कि 110 रुपया लीटर पेट्रल खरीद कर देश के विकास में सीधा हिस्सा ले रहे हैं. अगर ऐसे ही महंगाई के सपोर्टर पेट्रोल पंप और बस स्टैंड में बिठा दिए जाएं तो पेट्रोल की मार से परेशान लोगों का हौसला बढ़ा सकेंगे. महंगाई की मार से जिनका भी मनोबल टूट गया हो उन्हें तुरंत महंगाई के इन सपोर्टरों के पास भेजा जाना चाहिए ताकि वे 110 की जगह 150 रुपया लीटर पेट्रोल खरीदते समय सीना चौड़ा कर सकें.सरकार ने पहले भी कई प्रकार के वोलेंटियर बनाए हैं. स्वच्छता मित्र, गंगा प्रहरी, जन औषधी मित्र. महंगाई मित्र भी एक नया वोलेंटियर हो सकता है. पिछले साल युद्ध नहीं था लेकिन टैक्स था. टैक्स की ऐसी बमबारी हुई आपको समझ नहीं आया कि क्या हुआ. मई महीने में मुंबई में पेट्रोल 100 रुपया लीटर हो गया था. इसके पहले मार्च और अप्रैल के दौरान लोग 90 से 100 रुपया लीटर पेट्रोल भरा रहे थे. अक्तूबर तक जाते जाते पेट्रोल 110 रुपया लीटर हो गया. टैक्स का ऐसा हमला था कि लोग उबर ही नहीं सके.
जुलाई 2008 में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल का भाव 132 डॉलर प्रति बैरल हो गया था तब पेट्रोल का भाव 50 रुपया लीटर और डीज़ल 34 रुपया लीटर था. मनमोहन सिंह की सरकार थी. अक्तूबर 2021 में जब अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल का भाव 82 डॉलर प्रति बैरल हुआ तब पेट्रोल 110 रुपया लीटर हुआ. नरेंद्र मोदी की सरकार है.
अक्तूबर 2021 की तुलना में देखें तो फरवरी 2022 में कच्चे तेल का औसत भाव 94 डॉलर प्रति बैरल रहा. 14 प्रतिशत अधिक होने के बाद भी फरवरी में एक पैसा दाम नहीं बढ़ा. अब तो 125 डॉलर प्रति बैरल हो गया है. चुनाव न होता तो फरवरी से ही हाहाकार मच गया होता. अब सारे लोग झुंड बनाकर आएंगे और आपसे कहेंगे कि युद्ध के कारण दाम बढ़ रहे हैं, जो कि बढ़ भी रहे हैं लेकिन क्या केवल युद्ध के कारण ही दाम बढ़ते हैं या तभी बढ़ते हैं जब युद्ध होता है. फिर चुनाव के दौरान चार चार महीने दाम क्यों नहीं बढ़ते हैं? उत्पाद शुल्क पर कम बात होगी. 22 मार्च 2021 को लोकसभा में वित्त मंत्रालय का जवाब है. इसमें पेट्रोल डीज़ल और प्राकृतिक गैस के आंकड़े हैं.
2017-18 में पेट्रोल और डीज़ल पर उत्पाद शुल्क से वसूली 2, 04, 910 करोड़ हो गई. 2018-19 में यानी चुनाव के पहले वाले साल में घट कर 1, 54, 178 करोड़ हो गई. 2019-20 यानी चुनाव खत्म होते ही सबसे अधिक वसूली 2, 03, 010 करोड़ हो गई. 2020-21 के केवल दस महीनों में में उत्पाद शुल्क से वसूली बढ़कर 2, 95, 401 करोड़ हो गई.यहां यह स्पष्ट करना ज़रूरी है कि करीब तीन लाख करोड़ की वसूली में प्राकृतिक गैस से टैक्स का हिस्सा केवल 919 करोड़ ही है.
तो आपने देखा कि उत्पाद शुल्क की वसूली किस रफ्तार से बढ़ने लगती है. फिर जब चुनाव आने होते हैं तो उस साल कम हो जाती है और जब चुनाव खत्म हो जाते हैं तो उत्पाद शुल्क की वसूली पहले से भी कई गुना बढ़ जाती है.तो यह खेल अर्थव्यवस्था का कम है, चुनाव का ज्यादा है. यही खेल डीज़ल के साथ भी होता है. यह सब हम वित्त मंत्रालय के जवाब के आधार पर बता रहे हैं. 22 मार्च 2021 के जवाब से आपकी आंखें खुल जानी चाहिए. वित्त मंत्रालय ने इसी जवाब में बताया है कि कैसे उसकी कमाई में उत्पाद शुल्क से होने वाली कमाई का हिस्सा डबल ट्रिपल होता जाता है बस जब चुनाव आता है तो उसके पहले घट जाता है.
2013-14 में केंद्र की कमाई में उत्पाद शुक्ल का हिस्सा 4.3% था. 2016-17 में तीन गुना यानी 13.3 प्रतिशत हो गया.
2018-19 में घट कर 6.8 प्रतिशत हो गया. 2020-21 में चुनाव नहीं था तो 12.2 प्रतिशत हो जाता है. इस बार जब तक पांच राज्यों में चुनाव चला है पेट्रोल और डीज़ल का दाम नहीं बढ़ा है. 4 नवंबर को सरकार ने उत्पाद शुल्क में कटौती नहीं की थी.उस दौरान केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर लगने वाले road and infra cess को 18 रुपये से घटा कर 13 रुपए और डीज़ल पर लगने वाले road and infra cess को 18 रुपये से घटा कर 8 रुपये किया था. इस मेहरबानी के बाद भी आज तक मुंबई में 109 रुपया लीटर पेट्रोल मिल रहा था और कई शहरों में 95 रुपये लीटर लोग भरा ही रहे थे. पेट्रोल का दाम कभी भी अप्रैल 2020 के 70 रुपये प्रति लीटर के भाव पर नहीं पहुंचा. केवल road and infra उप करों की वसूली का डेटा देखेंगे तो पता चलेगा कि आप कितना टैक्स दे रहे हैं.
2019-20 में 67,371 करोड़ की वसूली हुई. 2020-21 में 1,23,596 करोड़ की वसूली हुई. 2021-22 में 2,03,235 करोड़ की वसूली हुई. 2022-23 में 1,38,450 करोड़ की वसूली प्रस्तावित है. इसमें उत्पाद शुल्क का आंकड़ा नहीं है. इसके अलावा इन सड़कों पर चलने के लिए आप अच्छा खासा टोल टैक्स भी देते हैं. कार से एक किलोमीटर का टोल टैक्स औसतन सवा रुपया पड़ता है.यही कारण है कि लंबे समय से आप पेट्रोल और डीज़ल के बढ़े हुए दाम दिए जा रहे हैं. अब सवाल है कि बहुत महंगा से यह कितना बहुत बहुत महंगा होगा. इससे बढ़ने वाली महंगाई का हिसाब करेंगे तब पता चलेगा कि आपकी कमाई हर तरफ से घटती जा रही है. तब आपको पता चलेगा कि क्यों इस देश में विकास के तमाम दावों के बाद भी 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज की ज़रूरत पड़ी थी. जुलाई 2008 में जब 132 डॉलर प्रति बैरल था तब आपसे पेट्रोल 50 रुपया और डीज़ल 34 रुपया लीटर था. मार्च 2013 में कच्चे तेल का भाव 123 डॉलर प्रति बैरल हो गया तब पेट्रोल का दाम 70 रुपया लीटर हुआ था. देश भर में प्रदर्शन होने लगे और विपक्ष में जान आ गई थी.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तब मुख्यमंत्री थे, उस समय के उनके बयान इस समय भी दोहराए जाते रहते हैं लेकिन उससे दामों के बढ़ने पर कोई असर नहीं पड़ता है.
अप्रैल 2007 में कच्चे तेल का भाव 65 डॉलर प्रति बैरल था. पेट्रोल 42 रुपया लीटर और डीज़ल 30 रुपया लीटर था.
मार्च 2021 कच्चे तेल का भाव 64 डॉलर प्रति बैरल था यानी अप्रैल 2007 की तुलना में 1 डॉलर कम था. तब पेट्रोल 91 रुपये और डीज़ल 81 रुपये लीटर था.जनवरी 2016 में कच्चे तेल का भाव 28 डॉलर प्रति बैरल था .तब पेट्रोल 59 और डीज़ल 44 रुपया लीटर मिल रहा था. 2020 के अप्रैल में कच्चे तेल का भाव करीब 20 डॉलर प्रति बैरल था. तब पेट्रोल 70 रुपया और डीज़ल 62 रुयया लीटर मिल रहा था.


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