सम्पादकीय

कोरोना में नैतिकता

Rani Sahu
29 Aug 2021 6:45 PM GMT
कोरोना में नैतिकता
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कोरोना से जुड़े नैतिक सवालों की सूची बढ़ती चली जा रही है। दुनिया में कोरोना टीके के बूस्टर डोज को लेकर बहस तेज हो गई है

कोरोना से जुड़े नैतिक सवालों की सूची बढ़ती चली जा रही है। दुनिया में कोरोना टीके के बूस्टर डोज को लेकर बहस तेज हो गई है। कुछ देश दुनिया में ऐसे हैं, जहां टीका ठीक से पहुंचा भी नहीं, लेकिन कुछ ऐसे विकसित देश भी हैं, जिन्होंने अपने नागरिकों को बूस्टर डोज देने की तैयारी पूरी कर ली है। जहां विकसित देशों की नैतिकता पर प्रश्न उठ रहे हैं, वहीं टीकों की तीसरी डोज या बूस्टर डोज की उपयोगिता पर भी सवाल उठ रहे हैं। संकेत हैं कि वैक्सीन-प्रेरित प्रतिरक्षा कम हो रही है। नीति-निर्माता भी इस बात पर बहस कर रहे हैं कि क्या बूस्टर शॉट्स मदद कर सकते हैं? क्या बिना टीकाकरण वाले लोगों को टीका लगाना सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं होनी चाहिए? कुल मिलाकर, बूस्टर डोज की कारगरता को लेकर वैज्ञानिक भी सुनिश्चित नहीं हैं, लेकिन अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों में बूस्टर डोज की तैयारी आगे बढ़ चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के एक वरिष्ठ सलाहकार, चिकित्सक-महामारी विज्ञानी ब्रूस आयलवर्ड कहते हैं, 'हम यह नहीं समझते हैं कि बूस्टर की आवश्यकता किसे होगी?'

इस नैतिक बहस के बावजूद इजरायल बूस्टर डोज के लिए अभियान चला रहा है। वैसे भी यह देश टीका लगाने के मामले में सबसे आगे रहा है और 30 जुलाई को उसने 60 और उससे अधिक उम्र के अपने नागरिकों को वैक्सीन की तीसरी खुराक की पेशकश करना शुरू कर दिया था। इसके बाद 20 अगस्त को इजरायल ने यह भी साफ कर दिया कि वह 40 और उससे अधिक उम्र के सभी नागरिकों को बूस्टर डोज देगा। इजरायल की अपने नागरिकों के स्वास्थ्य की चिंता गलत नहीं है, लेकिन नैतिक आधार पर इसे चुनौती दी जा सकती है। डब्ल्यूएचओ और अन्य संगठनों ने इस तरह के व्यापक बूस्टर अभियान के खिलाफ कड़ी चेतावनी दी है। उसकी मुख्य चिंता यही है कि दुनिया भर में कई उच्च जोखिम वाले लोगों को पहली खुराक भी नहीं मिली है। विशेष रूप से चिकित्सकों और कोरोना योद्धाओं को बूस्टर डोज देने की बात समझ में आती है, जो इच्छुक कोरोना योद्धा हैं, उन्हें बूस्टर डोज देने से मना नहीं किया जा सकता, क्योंकि उन्हें मना करने से कोरोना के खिलाफ लड़ाई कमजोर पड़ सकती है। एक अनुमान के अनुसार, विकसित देश अगर अपने नागरिकों को बूस्टर डोज दें, तो एक अरब से ज्यादा खुराक की जरूरत पडे़गी। जाहिर है, यह उन गरीब देशों के साथ अन्याय होगा, जो अभी भी इंतजार में हैं। एक सवाल यह भी है कि विकसित देश बूस्टर डोज के पक्ष में जिस मुस्तैदी से बढ़ रहे हैं, क्या वैसी ही मुस्तैदी इस सवाल का जवाब खोजने में भी है कि आखिर कोरोना का जन्म कैसे हुआ? अमेरिकी खुफिया एजेंसी भी लगी है, उसने एक रिपोर्ट भी सौंपी है, लेकिन उस रिपोर्ट में कोरोना की कहानी स्पष्ट नहीं है। कोरोना से लड़ाई में यह खोज बहुत जरूरी है कि कोरोना के जन्म को समझा जाए और उसके उपचार पर उसी के अनुरूप काम किया जाए। आज दुनिया में नैतिकता से जुड़ा यह सबसे बड़ा सवाल है, लेकिन अगर विकसित देश नहीं चाहेंगे, तो यह सवाल हमेशा के लिए अनुत्तरित रह जाएगा। हम गरीब देशों और बडे़ सवालों से मुंह चुराकर चलेंगे, तो कैसी अन्यायपूर्ण व अनुशासनहीन दुनिया की रचना करेंगे, सोच लेना चाहिए।

क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान

Rani Sahu

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