- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- पढ़ाई और रोजगार पर हो...
x
आप अपने बच्चों को स्कूल क्यों भेजते हैं
अनुराग बेहर,
आप अपने बच्चों को स्कूल क्यों भेजते हैं? उनको पढ़ाना क्यों चाहते हैं? कर्णप्रयाग और रुद्रप्रयाग से गुजरते हुए जब मैं पूर्वी छत्तीसगढ़ के सरगुजा और जशपुर नगर, और दक्षिणी कर्नाटक के चामराजनगर तक गया और आम लोगों से ये सवाल पूछे, तब तमाम गांवों व छोटे नगरों में इसके एक समान जवाब मिले। और ये जवाब वर्षों से इसी तरह दिए जा रहे हैं, जिसके तीन हिस्से हैं। पहला, आज बिना शिक्षा के प्रतिष्ठा नहीं मिल सकती। दूसरा, आधुनिक दुनिया में जीने के लिए शिक्षा अनिवार्य है और तीसरा, अच्छे रोजगार के लिए शिक्षा आवश्यक है। आम आदमी की ये अपेक्षाएं शिक्षा के उद्देश्यों और पाठ्यक्रम संबंधी हमारे लक्ष्यों से सीधे-सीधे जुड़ी हुई भी हैं। हालांकि, सच यही है कि हमारा शिक्षा तंत्र बच्चों में बुनियादी समझ विकसित करने के मामले में जितना विफल साबित हो रहा है, उतना ही अक्षम अपने अन्य लक्ष्यों को पूरा करने में भी रहा है।
शिक्षा प्रणाली की यह कमजोरी युवाओं में अल्प-रोजगार या बेरोजगारी की दर बढ़ा रही है। बेशक इसकी एक वजह पर्याप्त संख्या में नौकरियों व आजीविका के नए अवसरों का पैदा न होना है, लेकिन हमारी स्कूली व उच्च शिक्षा प्रणाली इसमें अपनी सहभागिता से मुंह नहीं मोड़ सकती।
शिक्षा तंत्र में गुणवत्ता और समानता की बुनियादी विफलताओं का गहरा व व्यापक प्रभाव तमाम चीजों पर पड़ता है, जिसमें नौकरियों और रोजगार तक पहुंच भी शामिल है। मगर इससे जुड़े दो पहलू तो रोजगार व आजीविका के मुद्दों पर सीधे-सीधे असरंदाज होते हैं। इनमें पहला है, हमारे समाज के ज्यादातर हिस्सों की तरह, शिक्षा भी इस सोच से नत्थी है कि हमारी सर्वोच्च क्षमता 'दिमाग चलाना' है। इसमें 'हाथ चलाने' (काम करने) जैसी भावना को बहुत ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता है। इसकी पुष्टि न सिर्फ इस बात से होती है कि व्यावसायिक शिक्षा को अकादमिक शिक्षा की तुलना में कमतर माना जाता है, बल्कि अकादमिक शिक्षा में भी 'काम करने' को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता। मूल्यांकन-कार्यों में तो हास्यास्पद रूप से 'प्रैक्टिकल' को कम वजन दिया जाता है। यहां तक कि इंजीनियरिंग कॉलेजों में भी अभ्यास कराने के बजाय लिखने और बैठने पर जोर दिया जाता है।
दूसरा पहलू है, उस क्षमता के विकास पर नाममात्र या बिल्कुल ध्यान न दिया जाना, जिसे आमतौर पर 'कौशल' कहा जाता है। कौशल असल में अपने हाथों से विभिन्न तरह के काम (जो लोग, संचार और अन्य तमाम चीजों से जुड़े हैं) करने का शऊर है। इनके कई निहितार्थ हैं। सबसे पहला तो यही है कि यह ज्ञान और कौशल के बीच एक कृत्रिम अलगाव पैदा करता है। जबकि वास्तव में 'क्या जानें' और 'कैसे जानें' का आपस में अटूट संबंध है। प्रभावशाली बनने के लिए दिमाग (और दिल भी) और हाथ को मिलकर काम करना पड़ता है। इसका दूसरा निहितार्थ है, व्यावसायिक और अकादमिक शिक्षा की एक-दूसरे से दूरी। पिछले कुछ दशकों में दोनों के बीच खाई कहीं ज्यादा गहरी हुई है, क्योंकि एक संपूर्ण 'कौशल प्रशिक्षण' तंत्र का उदय हुआ है। स्पष्ट है, हमने दो अविकसित और अपर्याप्त तंत्र बनाए हैं। एक, हमारा वह अकादमिक शिक्षा तंत्र है, जो 'कैसे जानें' की अनदेखी करता है। और दूसरा, कौशल प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा तंत्र है, जो 'क्या जानें' के अभाव में छिछला बना हुआ है। इस प्रक्रिया में हमने सामाजिक कलंक को भी खासा मजबूत कर दिया है और अकादमिक शिक्षा तक पहुंच रखने वाले लोगों और व्यावसायिक शिक्षा व कौशल प्रशिक्षण में जबरन धकेल दिए गए लोगों के बीच की असमानताएं बढ़ा दी हैं।
हालांकि, उम्मीद की कुछ किरणें अब भी मौजूद हैं। हम ऐसे कई मुद्दों का हल निकाल सकेंगे, जब राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लागू करेंगे। सबसे पहले तो यह नीति शैक्षणिक मूल्यों में 'दिमाग चलाने' व 'हाथ चलाने' को एक बराबर महत्व देती है और यह समझती है कि 'कैसे जानें' और 'क्या जानें' को अलग-अलग नहीं किया जा सकता। दूसरी बात, नई शिक्षा नीति अकादमिक शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण के बीच के अंतर को खत्म करती है। तीसरी बात, इसमें कई छोटे-छोटे मसले शामिल किए गए हैं। जैसे, इसमें यह ख्याल रखा गया है कि सभी बच्चे व्यावसायिक शिक्षा हासिल करें, जो निश्चित तौर पर 'करने' और 'सोचने' के बीच के पदानुक्रम को तोड़ने में मददगार साबित होगी। इसमें यह भी सुनिश्चित किया गया है कि व्यावसायिक शिक्षा व कौशल प्रशिक्षण को सबसे प्रतिष्ठित उच्च शिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए। आसपास की दुनिया में सीखी जा रही तमाम विषयों की सामग्रियों को आपस में जोड़ने संबंधी शैक्षणिक नजरिये का भी छात्र पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा भी कई अन्य अच्छी बातें नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का हिस्सा हैं।
तंत्र की कमियों को दूर करने से ऐसे लोग आगे आएंगे, जिनके पास स्कूल में ही बच्चों को काम के अनुरूप ढालने और तेजी से बदलते श्रम बाजारों के अनुकूल तैयार करने की क्षमता है। हालांकि, यह इस पूरे मसले का एक पहलू है। इसका दूसरा बड़ा हिस्सा तो यह सुनिश्चित करता है कि हमारी अर्थव्यवस्था पर्याप्त संख्या में अच्छी नौकरियां पैदा करे। निस्संदेह, इसके लिए अच्छे रोजगार के सृजन को प्राथमिकता देने की जरूरत है, क्योंकि एक बेहतर शिक्षा तंत्र (जिसमें 'कैसे जानें' और 'क्या जानें' को हमराह बनाया गया हो) सिर्फ अपने दम पर नौजवानों को दीर्घकालिक आर्थिक लाभ नहीं दिला सकता।
जाहिर है, रोजगार सृजन के लिए एक राष्ट्रीय रणनीति की तत्काल आवश्यकता है, जिसमें न सिर्फ हमारे देश की हकीकत का ख्याल रखा जाए, बल्कि वैश्विक आर्थिक एवं तकनीकी बदलावों को भी महत्व दिया जाए। आर्थिक तरक्की (अच्छी और प्रगतिशील नौकरियां) के लिए भले ही अच्छी शिक्षा एक अनिवार्य शर्त है, लेकिन यही एकमात्र शर्त नहीं है।
Rani Sahu
Next Story