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‘हम हालात देखकर साथ नहीं देंगे। हम तो साथ देेंगे
पं. विजयशंकर मेहता। 'हम हालात देखकर साथ नहीं देंगे। हम तो साथ देेंगे, हालात चाहे जैसे भी हों।' ऐसा अधिकांश लोग अपने अपनों से कहते हैं। लेकिन, थोड़ा-सा पीछे मुड़कर देखें तो इस बीमारी ने ऐसे हालात बना दिए कि चाहकर भी लोग साथ नहीं दे पाए। यह सही है कि नजरों को नजारों की तमन्ना रहती है, लेकिन उसे दृश्य पढ़ना भी आना चाहिए। अब धीरे-धीरे हमारे जीवन में कुछ ऐसे दृश्य आ रहे हैं जिनसे गुजरने की बड़ी तीव्र इच्छा होती है।
शादी-ब्याह, मेले, अन्य आयोजन तथा और भी ऐसे बहुत-से अवसर हैं जो अब जिंदगी में तेजी से उतर रहे हैं। इनमें शामिल होना हमारा धर्म भी है। हमारे शास्त्रों में कई जगह लिखा है कि शास्त्र पढ़ने से ज्ञान मिले, न मिले, दृष्टि अवश्य मिलती है। तो समझें कि एक होता है धर्म, दूसरा अधर्म, तीसरा अस्वस्थ धर्म, लेकिन एक चौथा होता है स्वधर्म। यह बड़ा महत्वपूर्ण है। हम स्वधर्म पर टिककर ऐसे आयोजनों से गुजरें और बचें भी।
हमारा स्वधर्म है स्वयं सुरक्षित रहते हुए अपने लोगों की सुरक्षा। गीता में जिस स्वधर्म की चर्चा आई है, वह लगभग यही है। अब, जब बीमारी नाम और रूप बदलकर फिर से कदम बढ़ाने लगी है, ध्यान रखें भीड़ कहीं मौका न बन जाए हमारी बर्बादी का। अच्छे अवसरों का, आयोजनों का आनंद उठाएं, लेकिन पूरी सावधानी और सुरक्षा के साथ।
Rani Sahu
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