सम्पादकीय

रोजगार सबसे अहम

Subhi
16 March 2022 3:56 AM GMT
रोजगार सबसे अहम
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नैशनल स्टैटिस्टिक ऑफिस (एनएसओ) की ओर से पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस) की ताजा रिपोर्ट इस लिहाज से भी अहम है कि यह देश में कुछ समय के अंतर पर पैदा हुए दो असामान्य हालात के नतीजों को करीब से देखने और समझने का मौका मुहैया कराती है।

नवभारत टाइम्स: नैशनल स्टैटिस्टिक ऑफिस (एनएसओ) की ओर से पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस) की ताजा रिपोर्ट इस लिहाज से भी अहम है कि यह देश में कुछ समय के अंतर पर पैदा हुए दो असामान्य हालात के नतीजों को करीब से देखने और समझने का मौका मुहैया कराती है। सोमवार को जारी हुई इस रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल से जून 2021 की तिमाही में शहरी इलाकों में 15 साल और उससे ऊपर की आबादी में बेरोजगारी की दर 12.6 फीसदी पाई गई। अगर एक साल पहले की उसी अवधि के आंकड़े देखें तो यह दर 20.8 फीसदी थी, मगर अप्रैल-जून से ठीक पहले की तिमाही यानी जनवरी से मार्च 2021 की अवधि में यह दर 9.3 फीसदी पर आ गई थी। आंकड़ों का ग्राफ ऊपर से नीचे आने और फिर दोबारा चढ़ने का यह ट्रेंड रिपोर्ट के अन्य हिस्सों में भी दिखता है। उदाहरण के लिए, शहरी महिलाओं की स्थिति देखें तो 15 साल और उससे ऊपर की आबादी में बेरोजगारी की जो दर अप्रैल से जून 2020 में 21.1 फीसदी थी, वह जनवरी-मार्च 2021 में घटकर 11.8 फीसदी पर आई और अप्रैल-जून 2021 की अवधि में फिर बढ़कर 14.3 फीसदी पर चली गई।

ध्यान देने की बात यह है कि अप्रैल-जून 2020 ही वह अवधि थी, जब कोरोना के वैश्विक प्रकोप से जुड़ी आशंकाओं के मद्देनजर केंद्र सरकार ने सबसे लंबे देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी। स्वाभाविक ही उसके कारण बेरोजगारी दर में अप्रत्याशित इजाफा हुआ। इसके ठीक एक साल बाद यानी अप्रैल-जून 2021 की अवधि में देश कोरोना की दूसरी लहर के कहर से जूझ रहा था। इसका भी असर जीवन के सभी क्षेत्रों पर पड़ा और खासतौर पर बेरोजगारी में जबर्दस्त बढ़ोतरी देखी गई। मगर ये आंकड़े भारतीय समाज की जिजीविषा का भी संकेत करते हैं। जैसा कि उस अवधि के इससे पहले आए अन्य आंकड़े दर्शाते रहे हैं, ये आंकड़े भी इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि देश ने बीच में मिली जरा सी मोहलत का फायदा उठाते हुए हालात काफी हद तक दुरुस्त कर लिए थे। दूसरी लहर ने उसे फिर से बिगाड़ा। लेकिन इस दूसरी लहर के बाद फिर से स्थितियां सामान्य होने लगीं और जैसे-जैसे कोरोना से जुड़े प्रतिबंध हटते गए, आर्थिक गतिविधियां भी तेज हुईं। इसका असर आगे आने वाले आंकड़ों पर दिखेगा। मगर इसी बीच रूस और यूक्रेन युद्ध के रूप में एक नई असाधारण चुनौती अर्थव्यवस्था के सामने आ गई है। बहरहाल, चुनौतियां तो रूप बदल-बदल कर आती ही रहेंगी, लेकिन फिलहाल सरकार के सामने महंगाई दर को यथासंभव काबू में रखते हुए रोजगार के अधिक से अधिक मौके मुहैया कराने की कठिन चुनौती बनी हुई है। मौजूदा हालात में इसका जवाब जहां तक हो सके सरकारी खर्च के जरिए अर्थव्यवस्था को गति देने का प्रयास ही हो सकता है। इसीलिए बजट में सरकार ने कैपिटल एक्सपेंडिचर में भारी बढ़ोतरी का प्रस्ताव रखा था।


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