सम्पादकीय

रोजगार का मोर्चा

Subhi
22 Oct 2022 5:30 AM GMT
रोजगार का मोर्चा
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इन युवाओं का अड़तीस सरकारी विभागों के विभिन्न पदों पर चयन किया गया है। इस पहल से सरकार पर बढ़ रहा रोजगार सृजन का दबाव कुछ कम होगा। हालांकि पिछले कुछ सालों में भी खाली पदों को भरने की प्रक्रिया चलती रही, फिर भी केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में कुल स्वीकृत पदों में से करीब तेईस फीसद पद खाली थे।

Written by जनसत्ता: इन युवाओं का अड़तीस सरकारी विभागों के विभिन्न पदों पर चयन किया गया है। इस पहल से सरकार पर बढ़ रहा रोजगार सृजन का दबाव कुछ कम होगा। हालांकि पिछले कुछ सालों में भी खाली पदों को भरने की प्रक्रिया चलती रही, फिर भी केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में कुल स्वीकृत पदों में से करीब तेईस फीसद पद खाली थे।

नई भर्तियां शुरू होने से उन विभागों में काम का दबाव भी कुछ कम होगा। खाली पदों को भरने का आदेश जून में ही दे दिया गया था और सभी विभागों से कहा गया था कि वे मिशन के तौर पर खाली पदों को भरने का काम करें। अब अगले डेढ़ साल में रिक्त पदों को भरने का काम पूरा हो सकेगा। मगर इस बीच जो पद खाली होंगे, उन पर भर्तियों के लिए अलग से प्रक्रिया शुरू करनी होगी। उम्मीद की जाती है कि केंद्र सरकार की इस पहल से राज्य सरकारों को भी प्रेरणा मिलेगी और रोजगार के मोर्चे पर वे कुछ आगे बढ़ सकेंगी।

पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपने घोषणापत्र में वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह हर साल दो करोड़ नए रोजगार का सृजन करेगी, मगर इस मामले में वह नाकाम ही साबित हुई। लगातार युवाओं की मांग बनी हुई थी कि खाली पड़े सरकारी पदों पर भर्तियां शुरू की जाएं, मगर उसकी प्रक्रिया सुस्त पड़ी रही। यही वजह है कि लाखों सरकारी पद लंबे समय से रिक्त पड़े हुए हैं। उम्मीद तो यह की जाती है कि सरकारें काम के बढ़ते बोझ के मद्देनजर समय-समय पर पदों की संख्या में बढ़ोतरी करेंगी, मगर जब स्वीकृत पदों पर ही भर्तियां नहीं हो पा रहीं, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन विभागों के कामकाज पर क्या असर पड़ता रहा होगा।

तदर्थ सेवा के आधार पर कुछ नियुक्तियां करने का चलन भी इसी वजह से शुरू हुआ। मगर रोजगार में स्थायित्व न होने से लोगों की सामाजिक सुरक्षा बाधित होती है। इसलिए देर से ही सही, केंद्र सरकार ने खाली पड़े पदों में से दस लाख पर भर्तियों का सिलसिला शुरू किया है, तो युवाओं में रोजगार को लेकर कुछ आश्वस्ति पैदा हुई है।

जून में जब दस लाख पदों पर भर्ती प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा की गई थी, तब विपक्ष ने कहना शुरू किया था कि सरकार को यह काम ऐन उसी वक्त पूरा करने की याद क्यों आई, जब अगले आम चुनाव की सरगर्मी तेज होगी। फिर यह भी कि कहां हर साल दो करोड़ नौकरियां देने का वादा किया गया था, अब दस सालों में केवल दस लाख नौकरियां देने की बात की जा रही हैं।

हालांकि विपक्ष इस तर्क में यह भूल गया कि बीते सालों में भी खाली पदों को भरने की प्रक्रिया चलती रही है। पर यह सवाल अपनी जगह बना हुआ है कि देश में पढ़े-लिखे युवाओं की बढ़ती आबादी के अनुपात में दस लाख नौकरियां कहां तक सामाजिक सुरक्षा का भाव पैदा कर पाएंगी। उसमें भी अग्निवीर जैसी योजना को लेकर सवाल उठते रहे हैं। इसलिए सरकार अगर दस लाख पदों को भरने की बात को उत्सव की तरह पेश कर रही है, तो उस पर विपक्ष की प्रतिक्रिया स्वाभाविक है।


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