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- पूरे ग्रीन नहीं हैं...
आज जब दुनिया भर में भारी कार्बन उत्सर्जन के चलते पर्यावरणीय प्रदूषण एवं ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ता जा रहा है, इलैक्ट्रिक वाहनों को उसके एक समाधान के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। भारत में भी सरकार जल्द से जल्द पेट्रोल, डीजल से चलने वाले परंपरागत वाहनों को खारिज कर उनके स्थान पर इलैक्ट्रिक वाहन लाने की नीति बना चुकी है। लेकिन प्रश्न यह है कि पूरे देश और दुनिया में परंपरागत वाहनों को पूरी तरह से इलैक्ट्रिक वाहन में बदल देने से क्या पर्यावरणीय प्रदूषण की समस्या का समाधान होगा? इसके लिए हमें मामले की पूरी तह तक जाना होगा। यह सही है कि आज ईंधन के जलाने से प्रत्यक्ष कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन में परिवहन क्षेत्र का हिस्सा 25 प्रतिशत है और उसमें से 45 प्रतिशत यात्री कारों से होता है। ऐसे प्रत्येक वाहन में 20 हजार से 30 हजार कलपुर्जे लगते हैं, जिसमें भारी मात्रा में एल्युमिनियम, स्टील समेत कई तरह का साजो सामान इस्तेमाल होता है जिनके उत्पादन में भारी मात्रा में प्रदूषण फैलता है। यह सही है कि इलैक्ट्रिक वाहनों से ज्वलनशील ईंधन से होने वाला प्रदूषण तो समाप्त हो जाएगा, लेकिन जानकारों का मानना है कि वाहन बनाने में इस्तेमाल होने वाले कलपुर्जों आदि से होने वाला प्रदूषण जो अभी 18 प्रतिशत है, 2040 तक बढ़कर 60 प्रतिशत हो सकता है। इलैक्ट्रिक कारों में लगने वाली बैटरी के कारण कार के वजन में काफी वृद्धि होती है, क्योंकि उसमें बड़ी बैटरी लगानी पड़ती है। बैटरी के वजन को कम करने के लिए कार निर्माता ज्यादा एल्युमिनियम का इस्तेमाल कर रहे हैं जिसके कारण प्रदूषण और ज्यादा बढ़ता है क्योंकि एल्युमिनियम का खनन और उत्पादन ऊर्जा की खपत को बढ़ाता है। बैटरी को बनाने में इस्तेमाल होने वाले कलपुर्जों के बनाने में ज्यादा कार्बन का उत्सर्जन होता है, इसलिए माना जा रहा है कि परंपरागत वाहनों की तुलना में इलैक्ट्रिक कारों को बनाने में ज्यादा प्रदूषण होने वाला है
सोर्स- divyahimachal