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- दीवारी चित्रों का समाज...
दीवारी चित्रों की परंपरा प्राचीन काल से ही अपना बड़ा महत्त्व रखती आई है। अजंता की गुफाओं में दीवारों पर अंकित चित्रों की श्रृंखलाएं भारतीय संस्कृति और समाज की जीती जागती तस्वीर है जिसकी विविधता का प्रकाश पूरे संसार में फैला। इसी प्रकार पहाड़ी शैली में भी कुछ दीवारी चित्रकारी हुई जो हमारी लोक संस्कृति पर प्रकाश डालती है। दीवारी चित्रों से भवन की सुंदरता में तो निखार आता ही है, साथ ही साथ समाज पर भी इसका काफी प्रभाव पड़ता है। यह सब देखते हुए आज के युग में कोई भी सार्वजनिक भवन तब तक अधूरा लगता है जब तक इसी दीवारों पर कुछ लिखा न जाए या कोई चित्रकारी न की जाए। गर्व की बात है कि आज दीवारों पर चित्र बनाने का प्रचलन धीरे-धीरे बढ़ रहा है। लेकिन इसकी तकनीक ने आधुनिक रूप ले लिया है। पहले दीवारों को खुरच कर धरातल को मजबूत बनाया जाता था और प्राकृतिक रंगों का प्रयोग होता था, जबकि आजकल अधिकतर बने बनाए धरातल पर पूर्वनिर्मित रंगों से चित्रांकन किया जाता है। यह समय का प्रभाव है। फिर भी चित्रों का प्रभाव तो समानांतर ही है। सार्वजनिक भवनों में धार्मिक, ऐतिहासिक व सांस्कृतिक चित्रों का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। मंदिरों की दीवारों पर बनाए गए चित्र हमारी धार्मिक भावना को जगाने में सहायक हैं। दीवारों पर लिखे मंत्र और सद्वाक्य समाज को सद्मार्ग की ओर प्रेरित करते हैं। बुरे से बुरा व्यक्ति भी मंदिर के पास आकर झुक जाता है। चित्र-चित्रण देखकर तो उसका मन परिवर्तित होने की भी संभावना बढ़ जाती है। सार्वजनिक भवनों की दीवारों पर की गई चित्रकारी ऐसे लोगों पर अपना प्रभाव छोडऩे में सहायक हो सकती है जो उन्हें प्रकाश दिखा सके। मंदिरों, विद्यालयों या किसी सामाजिक और ऐतिहासिक भवनों की दीवारों पर चित्रांकन जितना आवश्यक समझा जाता है, आजकल साधारण से साधारण व्यक्ति भी अपने घरों में चित्रों, आलेखनों को छाप कर अपने कला प्रेम को दर्शाने के प्रयास में है।
By: divyahimachal