सम्पादकीय

दीवारी चित्रों का समाज पर प्रभाव

Rani Sahu
17 July 2022 7:07 PM GMT
दीवारी चित्रों का समाज पर प्रभाव
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दीवारी चित्रों की परंपरा प्राचीन काल से ही अपना बड़ा महत्त्व रखती आई है

दीवारी चित्रों की परंपरा प्राचीन काल से ही अपना बड़ा महत्त्व रखती आई है। अजंता की गुफाओं में दीवारों पर अंकित चित्रों की श्रृंखलाएं भारतीय संस्कृति और समाज की जीती जागती तस्वीर है जिसकी विविधता का प्रकाश पूरे संसार में फैला। इसी प्रकार पहाड़ी शैली में भी कुछ दीवारी चित्रकारी हुई जो हमारी लोक संस्कृति पर प्रकाश डालती है। दीवारी चित्रों से भवन की सुंदरता में तो निखार आता ही है, साथ ही साथ समाज पर भी इसका काफी प्रभाव पड़ता है। यह सब देखते हुए आज के युग में कोई भी सार्वजनिक भवन तब तक अधूरा लगता है जब तक इसी दीवारों पर कुछ लिखा न जाए या कोई चित्रकारी न की जाए। गर्व की बात है कि आज दीवारों पर चित्र बनाने का प्रचलन धीरे-धीरे बढ़ रहा है। लेकिन इसकी तकनीक ने आधुनिक रूप ले लिया है। पहले दीवारों को खुरच कर धरातल को मजबूत बनाया जाता था और प्राकृतिक रंगों का प्रयोग होता था, जबकि आजकल अधिकतर बने बनाए धरातल पर पूर्वनिर्मित रंगों से चित्रांकन किया जाता है। यह समय का प्रभाव है। फिर भी चित्रों का प्रभाव तो समानांतर ही है। सार्वजनिक भवनों में धार्मिक, ऐतिहासिक व सांस्कृतिक चित्रों का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। मंदिरों की दीवारों पर बनाए गए चित्र हमारी धार्मिक भावना को जगाने में सहायक हैं। दीवारों पर लिखे मंत्र और सद्वाक्य समाज को सद्मार्ग की ओर प्रेरित करते हैं। बुरे से बुरा व्यक्ति भी मंदिर के पास आकर झुक जाता है। चित्र-चित्रण देखकर तो उसका मन परिवर्तित होने की भी संभावना बढ़ जाती है। सार्वजनिक भवनों की दीवारों पर की गई चित्रकारी ऐसे लोगों पर अपना प्रभाव छोडऩे में सहायक हो सकती है जो उन्हें प्रकाश दिखा सके। मंदिरों, विद्यालयों या किसी सामाजिक और ऐतिहासिक भवनों की दीवारों पर चित्रांकन जितना आवश्यक समझा जाता है, आजकल साधारण से साधारण व्यक्ति भी अपने घरों में चित्रों, आलेखनों को छाप कर अपने कला प्रेम को दर्शाने के प्रयास में है।

सामान्य लोगों में कला प्रेमी अपने घरों में स्वयं बेल-बूटे बनाने का प्रयास करते हैं और घरों को सजाते हैं, या कला के विद्यार्थियों को प्रोत्साहन देने के लिए उन्हें दीवारों पर चित्र बनाने का अवसर प्रदान करते हैं। यदि इसी कार्य को परिपक्वता दी जाए तो आज के विद्यार्थी भविष्य में निपुण चित्रकार बन सकते हैं और बढ़ती हुई बेरोज़गारी के दौर में भी इसे अपने रोज़गार का साधन बना सकते हैं। विद्यालयों की दीवारों पर चित्रकारी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। महापुरुषों के चित्रों, नक्शों, आलेखनों और सद्वाक्यों का साक्षात प्रभाव बच्चों के मन पर पड़ता है। विद्यार्थी रुचिपूर्वक जब इन दीवारी चित्रों को देखते हैं तो उनके बारे में जानने के लिए उत्सुक होते हैं और ज्ञान की खोज का प्रयास करते हैं। पाठ्यक्रम पर आधारित दीवारी चित्र बच्चों की पुनरावृत्ति में सहायक सिद्ध होते हैं। विद्यालय के प्रवेश द्वार के पास यदि सरस्वती मां का चित्र बना हो तो प्रवेश करते ही विद्यार्थी श्रद्धा से झुक जाते हैं। सरस्वती मंदिर का ध्यान करके वहां नमन करते हैं, जिससे उनके मस्तिष्क में पनपे अनेक कुविचार धुल जाते हैं तथा सद्मार्ग की ओर परिवर्तित होते हैं। भौगोलिक चित्र विद्यार्थी का बौद्धिक विकास करते हैं जोकि दीवार पर बनाए जा सकते हैं। यहां तक कि ऐसे चित्रों से अध्यापक व अभिभावक भी बहुत कुछ ग्रहण कर सकते हैं। जिस प्रकार मंदिरों में गणेश, लक्ष्मी या किसी अन्य धार्मिक कथा चित्रण तथा दीवारों पर लिखे सद्वाक्यों से श्रद्धालुओं की धार्मिक भावना प्रबल हो जाती है, उसी प्रकार विद्यालयों की दीवारों पर लिखे गए सद्वाक्यों, सचित्र राष्ट्रीय गान और प्रतिज्ञा से विद्यार्थियों में देशभक्ति की भावना जागृत होती है। इसके साथ ही उच्चारण में भी सुधार होता है। सम्मान पट्ट पर सुंदर अक्षरों से लिखे गए पूर्व छात्रों के नाम पढ़ कर छात्रों में प्रतियोगिता की भावना उत्पन्न होती है।
इस प्रकार आज के समाज में बढ़ रही अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार को कम करने में दीवारी चित्रकला का महत्त्वपूर्ण योगदान हो सकता है। सामाजिक भवनों, मंदिरों, विद्यालयों की दीवारों पर इस तरह के शिक्षाप्रद सद्वाक्यों, आलेखनों और चित्र के माध्यम से समाज के हर वर्ग को बुराई से अच्छाई की ओर प्रेरित किया जा सकता है। दीवारी चित्रकारी के तहत आजकल सडक़ों के किनारे भवनों पर कंपनियों के विज्ञापन भी महत्त्वपूर्ण हिस्सा हो गए हैं। इन विज्ञापनों में शैक्षणिक संस्थाओं, स्वास्थ्य संस्थानों, राजनीतिक दलों तथा कई अन्य गतिविधियों का प्रचार किया जाता है। दीवारी चित्रकारी एक संपूर्ण रोजगार के रूप में भी उभरी है। जो लोग इस कला के प्रति गहन रुचि रखते हैं, वे विभिन्न सरकारी व निजी संस्थानों से प्रशिक्षण लेकर रोजगार के रूप में कमाई भी कर सकते हैं। स्कूलों में कला अध्यापक के पद भी सरकार सृजित करती है। कलात्मक कार्य में रुचि रखने वाले लोगों के लिए यह भी रोजगार का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। जरूरत इस बात की है कि कला में आ रहे आधुनिक बदलावों पर कड़ी नजर होनी चाहिए।
कमल चंद
कला अध्यापक

By: divyahimachal


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