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वर्ष 2014 के बाद भारत में कई बदलाव आए, जिनमें दो उल्लेखनीय रहे हैं
सोर्स- Jagran
रमेश कुमार दुबे : वर्ष 2014 के बाद भारत में कई बदलाव आए, जिनमें दो उल्लेखनीय रहे हैं- वंशवादी राजनीति का अवसान और बिचौलिया विहीन नकदी हस्तांतरण योजना (DBT)। ये दोनों बदलाव आपस में जुड़े हुए हैं। मोदी सरकार ने देश में जिस ढंग से विकास की राजनीति शुरू की है उससे परिवार, जाति, मजहब, क्षेत्र जैसे संकीर्ण आधारों पर की जाने वाली वोट बैंक की राजनीति को जोर का झटका लगा है। वंशवादी राजनीति का सूत्रपात कांग्रेस से हुआ।
आजादी के बाद जब देश की सबसे पुरानी पार्टी परिवार केंद्रित पार्टी में बदल गई तो उसका असर समूचे देश पर पड़ा। कांग्रेस के परिवारवाद की प्रतिक्रिया में क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ। इन दलों ने कई राज्यों में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया। दुर्भाग्यवश कांग्रेस पार्टी को पटखनी देने वाले क्षेत्रीय-दल अपने को कांग्रेसी संस्कृति से बचा नहीं पाए और परिवारवाद की भेंट चढ़ गए। इतना ही नहीं, दबे-कुचले वर्गों की आवाज उठाने का दावा करने वाली पार्टियां भी वंशवादी राजनीति का शिकार बन गईं। इसका नतीजा यह हुआ कि समाज और राष्ट्र के बजाय परिवार का विकास होने लगा।
वंशवादी क्षत्रपों ने अपने को दाता के रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन जनाकांक्षाओं को पूरा करने में वे भी असफल रहे। वंशवादी और जातिवादी नेताओं के चुनावी वादे अगले चुनावों तक भुला दिए जाते थे। इसका नतीजा यह हुआ कि जहां क्षत्रपों की कोठियां गुलजार हुईं, वहीं आम जनता को बिजली, पानी, आवास, रसोई गैस, शौचालय, अस्पताल, सड़क, बैंक-बीमा जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित होना पड़ा। इसी को देखते हुए 2014 में सत्ता में आते ही प्रधानमंत्री मोदी ने जनता को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने का समयबद्ध कार्यक्रम तय किया। बिना किसी भेदभाव के सभी गरीबों तक बिजली, पानी, रसोई गैस, शौचालय, अस्पताल, सड़क, बैंक-बीमा जैसी मूलभूत सुविधाएं पहुंचाई गईं। इसका परिणाम यह हुआ कि देश के सभी वर्गों में प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा की लोकप्रियता बढ़ी। क्षेत्रीय क्षत्रपों और वंशवादी दलों के राजनीतिक समर्थन में तेजी से गिरावट आई।
दशकों तक राजनीतिक दल चुनावों में जिन सुविधाओं का सपना दिखाकर सत्ता हासिल कर रहे थे, उन सुविधाओं को मोदी सरकार ने मात्र आठ वर्षों में सभी तक पहुंचा दिया। अब ऐसे क्षत्रपों-दलों के लिए चुनावी वादे बचे ही नहीं हैं। इसीलिए अब ये दल मुफ्तखोरी की राजनीति पर उतर आए हैं, लेकिन जनता सच समझ चुकी है। यही कारण है कि चुनावों में पानी की तरह पैसा बहाने और जाति, मजहब की दुहाई देने के बावजूद वंशवादी राजनीति ढलान पर है।
मोदी सरकार और भाजपा को मिल रही लगातार सफलता का एक बड़ा श्रेय बिचौलिया विहीन वितरण व्यवस्था को जाता है। पहले दिल्ली से चला एक रुपया लाभार्थियों तक पहुंचते-पहुंचते 15 पैसा रह जाता था, लेकिन अब पूरे के पूरे सौ पैसे पहुंच रहे हैं और वह भी सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में। प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण (डीबीटी) के माध्यम से पिछले आठ वर्षों में मोदी सरकार ने 23 लाख करोड़ रुपये से अधिक धनराशि सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में भेजी है। आज केंद्र सरकार के 53 मंत्रालयों की 313 योजनाओं का पैसा सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में जा रहा है। अकेले वित्त वर्ष 2021-22 में 6.30 लाख करोड़ रुपये सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में हस्तांतरित किए गए।
यह मोदी सरकार की डिजिटल इंडिया (Digital India) मुहिम का कमाल है कि देश के करोड़ों किसानों, महिलाओं, मजदूरों के बैंक खातों में एक क्लिक पर हजारों करोड़ रुपये पहुंच रहे हैं। इसे प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के माध्यम से समझा जा सकता है। अब तक 11.30 करोड़ किसानों को दो लाख करोड़ रुपये से अधिक की राशि सीधे उनके बैंक खातों में पूरी पारदर्शिता के साथ भेजी जा चुकी है।
किसानों को प्रतिवर्ष 6,000 रुपये की राशि 2,000 रुपये की तीन किस्तों में भेजी जाती है। भारत जैसे देश में जहां आपदा में अवसर तलाशने वालों की कमी न हो, वहां करोड़ों लोगों के बैंक खातों में बिना किसी बिचौलिए के लाखों करोड़ रुपये का हस्तांतरण एक बड़ी उपलब्धि है। डीबीटी को मिली सफलता को देखते हुए अब केंद्र सरकार अपनी सभी कल्याणकारी योजनाओं को आधार नंबर आधारित प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण से जोडऩे की दिशा में काम कर रही है। इससे आंकड़ों के दोहराव और फर्जी लाभार्थियों को रोकने में सफलता मिलेगी।
हाल में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि समय के साथ जो देश आधुनिक तकनीक नहीं अपनाता, समय उसे पीछे छोड़कर चला जाता है। तकनीक का इस्तेमाल पूरी मानवता के लिए कितना क्रांतिकारी है, इसका सटीक उदाहरण है-डिजिटल इंडिया अभियान। पहले जन्म प्रमाण पत्र, बिल जमा करने, राशन कार्ड बनवाने जैसे सैकड़ों कामों के लिए लाइन लगानी पड़ती थी, लेकिन अब सब कुछ आनलाइन हो गया है। डिजिटल इंडिया का सबसे बड़ा लाभ कोरोना महामारी के दौरान राहत सामग्री पहुंचाने और टीकाकरण में मिला। उस समय मोदी सरकार ने जनधन बैंक खातों और राशन कार्डों को आधार संख्या से जोड़ने की मुहिम शुरू की थी, तब निजता के हनन के नाम पर इसका भारी विरोध किया गया, लेकिन आज वही मुहिम करोड़ों गरीबों के लिए बुढ़ापे की लाठी बनी हुई है।
कुल मिलाकर मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई विकास की इस राजनीति से एक ओर देश का चहुंमुखी विकास हो रहा है तो दूसरी ओर लोकतंत्र की सबसे बड़ी दुश्मन वंशवाद की राजनीति कमजोर पड़ती जा रही है। यह भारतीय लोकतंत्र के लिए यह शुभ संकेत है।
Rani Sahu
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