सम्पादकीय

शैक्षिक क्रांति: शिक्षा के क्षेत्र में सपने जगाने का वक्त, पर चुनौतियां अब भी बड़ी हैं

Neha Dani
7 Sep 2022 2:06 AM GMT
शैक्षिक क्रांति: शिक्षा के क्षेत्र में सपने जगाने का वक्त, पर चुनौतियां अब भी बड़ी हैं
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आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष का शिक्षक दिवस, शिक्षा के क्षेत्र में सपने जगा गया। यह महज संयोग है कि इस साल झारखंड की बेटी और खुद शिक्षिका का सफर तय कर महामहिम की कुर्सी तक पहुंचीं द्रौपदी मुर्मू ने देश के चुनिंदा 46 शिक्षकों को सम्मानित किया।



इन सम्मानित शिक्षकों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मंत्र था- विद्यार्थियों में सपने जगाएं, उन्हें सिद्धि तक पहुंचाएं। शिक्षक का विद्यार्थियों से नाता सिर्फ क्लास रूम तक सिमट कर न रह जाए, बल्कि उनके जीवन को रोशन करे।


महामहिम और प्रधानमंत्री मोदी खुद आजाद भारत में जन्मे हैं और आजादी के शताब्दी वर्ष 2047 तक शिक्षा के क्षेत्र के लिए अलख जगा रहे हैं। यह इसलिए अहम है क्योंकि अभी नई शिक्षा नीति की बुनियाद पड़ी है, वहीं दूसरी तरफ पिछले दो वर्षों से सदी की सबसे बड़ी महामारी ने पूरी शिक्षा व्यवस्था को खोखला कर रखा है।

प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक चरमरा चुकी है। समूची शिक्षा व्यवस्था संक्रमित है। शिक्षा बोर्डों से संस्थानों तक के नतीजे जैसे-तैसे घोषित हो पाए। सीयूईटी की परीक्षाओं पर बार-बार संकट के बादल मंडरा रहे हैं। ऐसे में सियासी संकट से उपजा संक्रमण, चिंता की बड़ी वजह है।

सियासी संकट चिंताजनक
महामारी से उबर कर जब पढ़ाई-लिखाई धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही है, तो ऐसे में इस पर सियासी संकट चिंताजनक है। यह संकट कहीं दूर नहीं बल्कि दिल्ली से ही शुरू हुई है। दिल्ली में मधुशाला बनाम पाठशाला की सियासी जंग छिड़ी है। यह सियासी संकट तब गहराया है, जब शिक्षा के क्षेत्र में मशाल और मिसाल की उम्मीद की जा रही है। इसमें दो राय नहीं कि सरकारी स्कूलों के नतीजे धीरे-धीरे सुधरे हैं लेकिन महामारी की घड़ी के 'एजुकेशन फ्रॉम होम' से उबरे ज्यादातर स्कूल अब भी संसाधनों के मामले में पिछड़े हैं।

दिल्ली में आबकारी घोटाले को शिक्षा से जोड़ा जाना गलत है, चाहे वह सत्ता पक्ष की कोशिश हो या विपक्ष की। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया न्यूयार्क टाइम्स का हवाला देकर शैक्षिक क्रांति का राग अलाप रहे हैं, तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अपने ताजा गुजरात दौरे में गुजरात मॉडल की शिक्षा के सपने जगा रहे हैं। शिक्षा पर ऐसी ओछी सियासत के बजाए होना तो यह चाहिए था कि केंद्र और राज्य दोनों मिलकर बेहतर भविष्य बुनते।
कोरोना के दौरान शिक्षण संस्थान बंद रहें। अब जब शिक्षण संस्थान खुले हैं तो कई स्कूल जुआघर में तब्दील नजर आएं।
कोरोना के दौरान शिक्षण संस्थान बंद रहें। अब जब शिक्षण संस्थान खुले हैं तो कई स्कूल जुआघर में तब्दील नजर आएं। - फोटो : Istock
शैक्षिक चुनौतियों का संकट
कोरोना के दौरान शिक्षण संस्थान बंद रहे। अब जब शिक्षण संस्थान खुले हैं तो कई स्कूल जुआघर में तब्दील नजर आए। विद्यार्थियों में करियर को लेकर कुंठा बढ़ी है। मिड डे मील की व्यवस्था में खामियां मिलीं। विद्यार्थियों के सपने तार-तार हुए।

आर्थिक व व्यक्तिगत संकट के चलते कई विद्यार्थियों ने बीच में पढ़ाई छोड़ दी तो कई ने दूसरी राह पकड़ ली। कौशल (स्किल्ड) और संपन्न विद्यार्थी ही दौड़ में टिक पाए। विद्यार्थियों में सवाल पूछने की ललक कम पड़ गई। कॉपी घर रह गई जैसे बहाने बढ़ गए हैं। सपने के दबाव में चेहरे की रंगत उड़ गई, मुस्कान फीकी पड़ गई।
सामूहिक जवाबदेही से सपने साकार हों
ऐसे में अमृत महोत्सव वर्ष के शिक्षक दिवस पर मोदी ने पीएम श्री के तहत 14,500 स्कूलों को मॉडल बनाने का जो बीड़ा उठाया है, वह निश्चित तौर पर सराहनीय है। 2014 के केंद्रीय बजट में शिक्षा के क्षेत्र में 38,600 करोड़ का प्रावधान था जो इस साल बढ़कर 1 लाख 4 हजार 277 करोड़ तक पहुंच चुका है। हालांकि, संसाधन से लेकर संकल्प तक शिक्षा के क्षेत्र में निरंतर वृद्धि के बावजूद अभी भी यह बजट नाकाफी है।

नई शिक्षा नीति की बुनियाद पड़ चुकी है और खेल-खेल में, खिलौने के माध्यम से विद्यार्थियों को खिलने का अवसर प्रदान करने की बात चल रही है। नई शिक्षा नीति के लिहाज से स्कूल अब भी संसाधनों से लैस नहीं हैं।

केंद्र सरकार का पीएम श्री योजना के तहत 14,500 स्कूलों को विकसित करआसपास के शैक्षिक माहौल को सुधारने का संकल्प है। सरकारी स्कूलों के नतीजे भले सुधरे हैं लेकिन निजी बनाम सरकारी स्कूलों की गलाकाट प्रतिस्पर्धा में प्रतिभाएं अब भी कुंठित हैं।
महंगाई की मार पढ़ाई पर भी पड़ी है। संस्थानों के फीस की भरपाई करने में बच्चे और अभिभावक परेशान हैं। ऐसे में आजादी के शताब्दी वर्ष (2047) तक शैक्षिक क्रांति के सपने साकार करने के लिए शिक्षकों, विद्यार्थियों, अभिभावकों के साथ-साथ केंद्र व राज्य सरकारों को भी सपने जगाने होंगे।

हर हाल में शिक्षा पर सियासत का दौर खत्म करना होगा और मिलकर सपने साकार करने होंगे, तभी आजादी के शताब्दी वर्ष (2047) तक शैक्षिक क्रांति के भविष्य बुन पाएंगे। मिलकर उम्मीद करें, सपने साकार हों, विजयी भवः का मंत्र गुंजायमान हो।
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सोर्स: अमर उजाला

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