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Vijay Garg : क्या अब चपरासी तय करेंगे भविष्य की दिशा ? क्या बेरोजगारी का नया नामकरण ही सरकार की अंतिम नीति बनकर रह गई है? या फिर देश में शिक्षा व्यवस्था का उद्देश्य केवल प्रमाणपत्र बांटना भर रह गया है? सवालों की सूची लंबी है, पर जवाब की कहीं कोई आहट नहीं । जब विश्वविद्यालयों में उत्तर पुस्तिकाएं चपरासी जांचने लगें, तब यह मान लेना चाहिए कि शिक्षा के मंदिरों में अज्ञानता का उत्सव मनाया जा रहा है। क्या यह किसी एक विश्वविद्यालय का दुर्भाग्य है। या पूरे तंत्र की विफलता का प्रतिबिंब ? सरकारें आती हैं, नारे देती हैं- हर हाथ को काम, "युवा शक्ति, राष्ट्र शक्ति", न्यू इंडिया, परंतु जब वही युवा डिग्रियां लेकर बेरोजगारी की कतार में खड़ा नजर आता है, तब यह कथित नारे खोखले ढोल जैसे गूंजते हैं। सेंटर फार मानिटरिंग इंडियन इकोनमी के ताजा आंकड़े गवाही दे रहे हैं। कि मार्च, 2025 तक भारत में बेरोजगारी दर 8.1 प्रतिशत पहुंच चुकी है। शहरी युवाओं में यह दर 12 प्रतिशत है।
वहीं आजादी के 75 वर्षों बाद भी भारत के विश्वविद्यालय विश्व रैंकिंग में निचले पायदान पर अटके हुए हैं। पढ़ाने वालों की योग्यता, शोध की गुणवत्ता और पाठ्यक्रम की प्रासंगिकता पर सवाल उठ रहे हैं। यूजीसी की रिपोर्ट बताती है कि भारत में प्रति एक लाख जनसंख्या पर केवल 28 पीएचडी धारक हैं, जबकि वैश्विक औसत लगभग 300 है। ऐसे में जब शिक्षा का उद्देश्य केवल डिग्री वितरण बन जाए और गुणवत्ता से समझौता हो, तब यही होगा- कक्षाओं में शिक्षक नहीं मिलते और मूल्यांकन चपरासी करेंगे। जैसाकि हाल ही में मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम जिले में हाल ही में एक चपरासी द्वारा कापी जांचने का समाचार सामने आया है।
आज कौशल विकास के नाम पर युवाओं को प्रमाण पत्र तो बांटे जा रहे हैं, परंतु उद्योग जगत में उनकी मांग नगण्य है। नेशनल स्किल डेवलपमेंट कारपोरेशन की रिपोर्ट के अनुसार, प्रशिक्षित युवाओं में से केवल 35 प्रतिशत को ही पुख्ता रोजगार मिल पाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नीति निर्माण की दिशा में इच्छाशक्ति का अभाव है? जब शिक्षित युवाओं के हाथ में किताबों की जगह बेरोजगारी का तमगा थमा दिया जाए, तब वह समाज अपने ही सपनों का गला घोंट रहा होता है। सरकार स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया का शोर मचा रही है। पर स्टार्टअप्स भी तब तक कैसे फलेंगे-फूलेंगे, जब तक नीतिगत अवरोध और पूंजी की कमी उन्हें जकड़े रहेगी ? कृषि से जुड़े युवा पलायन कर रहे हैं, औद्योगिक क्षेत्रों में आटोमेशन के चलते रोजगार घट रहे हैं, और सरकारी भर्तियां साल दर साल सिकुड़ रही हैं। वर्ष 2014 से अब तक केंद्र सरकार में रिक्त पड़े पदों की संख्या आठ लाख से भी अधिक है। सरकार इन पदों पर नियुक्ति करने के बारे में यदि विचार करे तो बड़ी संख्या में युवाओं को रोजगार मिल सकता है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब
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Gulabi Jagat
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