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- फर्जी डिग्री की सोहबत...
जेेसीसी बैठक के बाद कर्मचारियों के हित जिस उफान पर हैं, उनसे कहीं हट कर फर्जी डिग्रियों का गुब्बारा फूटा है। शिक्षा विभाग की जांच ने पंद्रह भाषा अध्यापकों का बोरिया-बिस्तर गोल किया है। ये एलटी टीचर्ज 2006 से पीटीए के तहत नियुक्ति पाकर प्रदेश की व्यवस्था में पसरे हुए थे और इनके विभागीय लाभांश में परत-दर-परत सरकारी खजाने की आहुतियां चढ़ती रही होंगी। आश्चर्य यह नहीं कि फर्जी डिग्री चलती रही, बल्कि यह है कि अप्रत्यक्ष सरकारी नियुक्तियों में अनैतिक धंधों को भी शरण मिलती रही है। हिमाचल में सरकारी नौकरी पाना वास्तव में एक ऐसे समुदाय में शामिल होना है, जो राजनीतिक गठजोड़ में सरकारी कार्यसंस्कृति में दल बना रहा है और इस तरह पूरी व्यवस्था का दलदल जाहिर है। इसी दलदल में पंद्रह भाषा अध्यापक दिखाई देते हैं, तो हम शिक्षा विभाग के ऋणी हैं कि कार्रवाई अंजाम तक पहुंची वरना सरकारी क्षेत्र की सीढि़यां एक-दूसरे का हाथ पकड़ते-पकड़ते इतनी मजबूत हो चुकी हैं कि हाथ लगाते ही, कहर की बरसात होने लगती है। ऐसे में माफिया का चंगुल सिर्फ रेत-बजरी बेचकर या शराब की भट्ठी सजा कर नहीं पैदा होता, बल्कि सरकारी क्षेत्र की परतों में कब आबाद हो गया, पता ही नहीं चलता। भाषा अध्यापकों का रुखसत होना अपने पीछे कितनी कालिख छोड़ गया, यह छात्रों के ललाट पर खड़ी अनिश्चय की स्थिति बता रही होगी। आश्चर्य यह कि शिक्षा और अध्यापक का चरित्र, उसकी क्षमता और अध्यापन का स्तर इतना गिर चुका है कि हमारी व्यवस्था को यह भी मालूम नहीं हो रहा कि क्लासरूम में पढ़ा कौन रहा। कुछ समय पहले निजी विश्वविद्यालयों के कुलपति इसलिए हटा दिए कि वे योग्यता की शर्तों में कहीं नीचे थे।
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