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हिमाचल प्रदेश शिक्षा विभाग ने अपने पूर्व में रहे खिलाड़ी शिक्षकों व अन्य कर्मचारियों के लिए एक पत्र निकाला था। उस पत्र में शिक्षा निदेशालय ने शौकिया प्रशिक्षण करवाने वाले इच्छुक शिक्षकों व कर्मचारियों के नाम मांगे थे ताकि उन्हें प्रशिक्षण सुविधाओं वाली जगहों पर नियुक्त किया जा सके। कुछ शिक्षकों ने आगे होकर अपने नाम निदेशालय को भिजवाए भी हैं, मगर कई महीने बीत जाने के बाद भी उन पर कोई अमल नहीं हुआ है। हिमाचल प्रदेश की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए यहां अधिक प्रशिक्षकों की जरूरत है और हिमाचल प्रदेश में खेल प्रशिक्षकों का टोटा सबके सामने है। हिमाचल प्रदेश में सैकड़ों खिलाड़ी खेल आरक्षण के अंतर्गत विभिन्न विभागों में नौकरी कर रहे हैं। दर्जन भर खिलाडि़यों को छोड़ कर न तो कोई खेल कर रहा है और न ही प्रशिक्षण व अन्य खेल प्रबंधन से जुड़ा है, जो राज्य में खेलों के लिए शुभ संकेत नहीं है। वैसे तो देश के केंद्रीय व राज्यों के विभिन्न विभागों में खेल आरक्षण से नौकरी प्राप्त खिलाड़ी कर्मचारी को नौकरी के पहले पांच वर्षों तक खेल करना अनिवार्य होता है, मगर हिमाचल में इक्का-दुक्का खिलाड़ी कर्मचारियों ने ही खेल किया है। खेल से नियमित रोजी-रोटी मिलने वालों को चाहिए कि वे नमक का कुछ तो हक अदा करें। अगर खिलाड़ी के रूप में नहीं हो सकता है तो प्रशिक्षण व प्रबंधन तो आसानी से हो ही सकता है। हिमाचल प्रदेश सरकार राज्य के विभिन्न विभागों में खेल आरक्षण के अंतर्गत तीन प्रतिशत पदों पर भर्ती करती है। शिक्षा विभाग में अब तक सैकड़ों प्रवक्ता, प्रशिक्षित स्नातक व अन्य पदों पर खेल आरक्षण से शिक्षक नियुक्त हैं। हिमाचल प्रदेश का हर बच्चा विद्यालय जा रहा है। वैसे तो विद्यालय में विद्यार्थियों की फिटनेस व खेलों के लिए शारीरिक शिक्षा का शिक्षक नियुक्त होता है, मगर वह हर खेल के लिए प्रशिक्षण नहीं दे सकता है।