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By लोकमत समाचार सम्पादकीय
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने गत दिनों पकड़े गए नार्को टेरर नेटवर्क से जुड़े दो अफगानी मूल के ड्रग्स तस्करों की निशानदेही पर मुंबई के बंदरगाह से 345 किलो हेरोइन बरामद की है। यह बड़ी खेप है। यह भी जानकारी सामने आई है कि ड्रग्स बेचकर जुटाए गए पैसों का इस्तेमाल देश में आतंकी गतिविधियों के लिए किया जाता है। बरामद हेरोइन की कीमत 1725 करोड़ रुपए बताई जा रही है। हेरोइन की यह खेप तस्करों ने अफगानिस्तान से मुंबई मंगवाई थी जिसे अन्य जगहों पर भेजा जाना था। यह जगजाहिर है कि अंतरराष्ट्रीय मादक पदार्थों का व्यापार विभिन्न देशों से भारत में किया जा रहा है। यह सिंडिकेट अफगानिस्तान से मेथामफेटामाइन और हेरोइन समेत कई तरह के ड्रग्स की तस्करी करता है।
हेरोइन को छिपाने के लिए तस्कर अलग-अलग तरीका अपनाते हैं। हेरोइन को पिघला कर मुलेठी की जड़ों पर लेप चढ़ाकर, सिलिका जेल, तालक पत्थर, जिप्सम पाउडर, तुलसी के बीज और पैकेजिंग सामग्री जैसे बोरी, कार्टन आदि में लाते हैं जिससे कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए पता लगाना बहुत कठिन होता है। पड़ोसी देशों से प्रतिबंधित पदार्थ को कंटेनरों में छिपाकर भारत के विभिन्न बंदरगाहों पर लाया जाता है। भारत युवाओं का देश है। कहा जा रहा है कि युवाओं के दम पर अगले कुछ सालों में भारत दुनिया की आर्थिक महाशक्ति बन सकता है, लेकिन जिस युवा पीढ़ी के बल पर भारत विकास के पथ पर दौड़ने का विचार कर रहा है, वह दुर्भाग्य से दिन पर दिन नशे की गिरफ्त में आ रही है। और इसके लिए जिम्मेदार हैं ड्रग्स के तस्कर। ड्रग्स तस्करी पर काबू पाने वाली सरकारी एजेंसियां नशीले पदार्थों की धरपकड़ के साथ-साथ इनमें लगे देशी-विदेशी लोगों को हिरासत में लेती रही हैं, लेकिन देखने में आया है कि तमाम सख्तियों के बावजूद नशे का कारोबार और साम्राज्य पहले से कई गुना ज्यादा बड़ा हो गया है। यह देखना होगा कि आखिर क्यों बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, म्यांमार और नेपाल से होने वाली मादक द्रव्यों की सप्लाई रुक नहीं रही है और यहां नशे के कारोबारियों का नेटवर्क खत्म होने का नाम क्यों नहीं ले रहा है।
नशे की समस्या से जुड़ी चुनौतियों का दायरा निरंतर बढ़ता जा रहा है। ड्रग्स के कारोबार में आतंकी समूह शामिल हैं, यह तथ्य बार-बार उजागर होता है। ये हमारे युवाओं की जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं, दूसरी ओर हथियारों के लिए पैसा भी बना रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय सहयोग के साथ मिलकर इन समूहों के विरुद्ध कार्रवाई करने का समय आ गया है। अब भी अगर हमने ध्यान नहीं दिया तो आने वाला समय बर्बादी की खतरनाक कहानी लिखेगा। यदि देश को बचाना है तो नशा और नशे के अवैध व्यापार के प्रति हमारी जीरो टॉलरेंस नीति होनी चाहिए। यह समस्या केवल फिल्म इंडस्ट्री तक ही सीमित नहीं रह गई है। यह असल में एक सामाजिक समस्या भी है जो परंपरागत पारिवारिक ढांचों के बिखराव, स्वच्छंद जीवनशैली, सामाजिक अलगाव आदि के हावी होने और नैतिक मूल्यों के पतन के साथ और बढ़ती जा रही है। सरकार और समाज, दोनों को इस समस्या से निपटने के लिए तत्काल उपाय करने की आवश्यकता है।
Rani Sahu
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