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भारतीय अर्थव्यवस्था अब कोरोना की चपेट से उभर रही है
भारतीय अर्थव्यवस्था अब कोरोना की चपेट से उभर रही है। पिछली तिमाही में जीडीपी की विकास दर में 8.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। अगली तिमाही की ओर उसकी नजरे हैं और रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया का कहना है कि भारत की विकास दर 2021-22 में बढ़कर 9.5 प्रतिशत हो जाएगी। यह काफी आशाजनक तस्वीर है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं और एजेंसियां ऐसा नहीं सोच रही हैं। अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी फिच ने भारत की विकास दर के आंकड़ों के अनुमान में थोड़ी कटौती की है। उसका कहना है कि भारत की विकास दर 8.7 प्रतिशत के बजाय 8.4 प्रतिशत होगी। लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण बयान आया, वह था नोबल विजेता अभिजीत बनर्जी का। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था अभी गहरी खाई में है और लोगों की अपेक्षाएं काफी घट चुकी हैं।
अभिजीत बनर्जी के इस बयान से कोई हंगामा या विवाद नहीं खड़ा हुआ, क्योंकि उन्होंने इस परिस्थिति के लिए किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया। वजह साफ है कि कोरोना काल ने भारत की अर्थव्यवस्था को भारी चोट पहुंचाई और उसे ऐसे मुकाम पर ला खड़ा किया, जहां सरकार को भी समझ में नहीं आ रहा था कि इसका इलाज क्या है। इस दौरान लाखों उद्योग बंद हो गए, छोटे कारोबारी सड़क पर आ गए और कई सेक्टरों में तो ताला लग गया, जिसका बहुत बुरा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ा। करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए और लोगों की क्रय क्षमता काफी कम हो गई। यहीं पर ही पेच फंस गया। यह ध्यान देने वाली बात है कि भारतीय अर्थव्यवस्था उपभोग पर आधारित है और इसके पहिये देश में सामान की खपत से ही घूमते हैं। ऐसी विकट आर्थिक स्थिति में उपभोग का कम होना तार्किक है।
सरकार को उद्योगों और कारोबारियों को भी इस बात के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए कि वे उन लोगों को वापस लें, जिन्हें उन्होंने कोरोना काल में बाहर कर दिया था। सरकार को और नई परियोजनाएं शुरू करनी चाहिए। हालांकि इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में वह काफी खर्च कर रही है, फिर भी वह शिक्षा या स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में बड़ा खर्च करेगी, तो ही पैसा सिस्टम में आएगा। सरकारों को वोट की राजनीति से हटकर आगे के बारे में भी सोचना होगा। लेकिन एक समस्या जो अब साफ दिख रही है, वह है देश में धन का असमान वितरण। ताजा आंकड़ों के अनुसार, देश में इतनी विषमता आ गई है कि शीर्ष 10 प्रतिशत लोगों के पास देश का 57 प्रतिशत धन है। इसके समान वितरण के लिए सरकार को सोचना पड़ेगा।
सच कहूं
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