सम्पादकीय

मान्यताओं का अर्थशास्त्र

Kunti Dhruw
13 Oct 2021 6:31 PM GMT
मान्यताओं का अर्थशास्त्र
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इस साल इकनॉमिक्स में दिया गया नोबेल पुरस्कार जितना महत्वपूर्ण अर्थशास्त्रीय विमर्शों के लिहाज से है.

इस साल इकनॉमिक्स में दिया गया नोबेल पुरस्कार जितना महत्वपूर्ण अर्थशास्त्रीय विमर्शों के लिहाज से है, उतना ही उपयोगी आम लोगों की सामान्य दिनचर्या में आसानी से पैठ बनाती मान्यताओं, यहां तक कि पूर्वाग्रहों की सत्यता खंगालने की दृष्टि से भी है। यह समझना जरूरी है कि समय के साथ जनजीवन का हिस्सा बन जाने वाली मान्यताएं या पूर्वाग्रह भी सत्य से पूरी तरह वंचित नहीं होते। अगर समाज के किसी हिस्से में यह मान्यता जड़ जमा चुकी है कि घर से निकलते समय जिंदा मछली या नीलकंठ पक्षी दिख जाए तो दिन अच्छा होता है तो बहुत संभव है कि इसके पीछे कुछ ऐसे संयोग होंगे जिनमें मछली या नीलकंठ पर नजर पड़ने के बाद कुछ लोगों के काम सधते हुए देखे गए होंगे। दिक्कत यह है कि आम लोगों के पास इस तरह के संयोगों की वैज्ञानिक पड़ताल करने या कथित कारण और उसके बताए जा रहे परिणाम के बीच अनिवार्य रिश्ते को देखने, पहचानने, समझने और उसकी वैज्ञानिक तौर पर पुष्टि या खंडन करने लायक समझ, फुरसत और क्षमता नहीं होती। मगर वैज्ञानिकों के लिए यह हमेशा से एक चुनौती रही है।

अर्थशास्त्र के अकादमिक हलकों में लंबे समय से मौजूद ऐसी ही एक चुनौती से जूझने और बेहतरीन ढंग से निपटने के लिए इस साल अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार तीन अर्थशास्त्रियों को संयुक्त रूप से प्रदान किया गया है। इन तीनों अर्थशास्त्रियों - कैलिफोर्नियां यूनिवर्सिटी, बर्कले के डेविड कार्ड, मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नलॉजी (एमआईटी) के जोशुआ एंग्रिस्ट और स्टैनफोर्ड युनिवर्सिटी के गुइडो इंबेंस- ने अपने रिसर्च और प्रयोगों के जरिए महत्वपूर्ण मान्यताओं को परखने और गलत साबित करने की दिशा में बड़ा काम किया है। डेविड कार्ड ने काफी समय से लगभग स्वयंसिद्ध मान ली गई इस मान्यता को लिया जिसके मुताबिक माना जाता था कि अगर किसी क्षेत्र में न्यूनतम वेतन बढ़ाया जाता है तो उसका अनिवार्य परिणाम होता है श्रमिकों की छंटनी। उन्होंने अमेरिका के, आसपास बसे और लगभग एक जैसे हालात वाले, दो अलग राज्यों- न्यू जर्सी और पेन्सिलवेनिया- में स्थित दो शहरों को अपने अध्ययन का आधार बनाया। इनमें से एक में न्यूनतम वेतन बढ़ाया गया था और दूसरे में नहीं। इस अध्ययन ने दिखाया कि न्यूनतम वेतन बढ़ाने-घटाने का इन राज्यों में मजदूरों के रोजगार की स्थिति पर शायद ही कोई नेगेटिव असर पड़ा। इस एक अध्ययन ने ऐसे कई अध्ययनों की राह खोली। इस तरह के रिसर्चों में एक बड़ी दिक्कत इसकी मेथडॉलजी से जुड़ी होती है क्योंकि विज्ञान की अन्य शाखाओं की तरह अर्थशास्त्र में अमूमन कोई प्रयोग लैब की नियंत्रित परिस्थितियों में नहीं किया जाता। मगर जोशुआ एंग्रिस्ट और गुइडो इंबेंस ने नब्बे के दशक के दौरान किए गए अपने शोधों के जरिए मेथडॉलजी से जुड़े संदेहों का पूरी प्रामाणिकता से खंडन किया। इससे पहले भी नोबेल पुरस्कारों ने अर्थशास्त्र में शोध के तरीकों को नए सिरे से परिभाषित करने वाले प्रयासों को मान्यता दी है। यह पुरस्कार भी लंबे समय तक याद रखा जाएगा।


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