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धर्मकीर्ति जोशी।
वैश्विक महामारी कोविड के बाद रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के समक्ष जो चुनौतियां बढ़ाई हैं, उनसे भारत भी अछूता नहीं है। महामारी के बाद आर्थिक मोर्चे पर हो रहे सुधार की रफ्तार पर इस युद्ध ने एक तरह से ब्रेक लगाने का काम किया है। आर्थिक वृद्धि को प्रभावित करने से अधिक इसने महंगाई की आग को भड़काने का काम किया है। केवल खाने-पीने की वस्तुओं से लेकर ईंधन के दाम ही नहीं, बल्कि कोर इनफ्लेशन यानी समग्र्र मुद्रास्फीति में तेजी का रुझान दिख रहा है। कच्चे माल की लागत बढऩे से तमाम कंपनियों को उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी के लिए मजबूर होना पड़ा है, जिसका बोझ अंतत: उपभोक्ताओं पर ही पड़ेगा। युद्ध के कारण कोयले और गैस की आपूर्ति प्रभावित होने का असर देश के तमाम इलाकों में बिजली संकट के रूप में देखने को मिल रहा है। तपती गर्मी के दौर में बिजली की किल्लत से लोग परेशान हैं। इस युद्ध ने आर्थिक मोर्चे पर समस्याएं बढ़ाने से लेकर आम जनजीवन पर भी प्रतिकूल असर डाला है।