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भाजपा ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाकर न केवल देश के जनजाति समुदाय को एक बड़ा संदेश दिया
सोर्स- जागरण
भाजपा ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाकर न केवल देश के जनजाति समुदाय को एक बड़ा संदेश दिया, बल्कि विपक्ष को हारी हुई लड़ाई लड़ने को भी बाध्य कर दिया। विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति चुनाव के जरिये सत्तापक्ष को चुनौती देने की कोशिश अवश्य की, लेकिन वह तभी नाकाम हो गई थी, जब ममता बनर्जी की ओर से बुलाई गई बैठक से कई विपक्षी दलों ने दूरी बना ली थी। इसके बाद पहले शरद पवार को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाने की पहल की गई, लेकिन उन्होंने इन्कार कर दिया। फिर फारूक अब्दुल्ला और गोपाल कृष्ण गांधी के नाम सामने आए, लेकिन उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए। इसके बाद एक तरह से मजबूरी में यशवंत सिन्हा का चयन किया गया।
भले ही यशवंत सिन्हा को विपक्ष के साझा प्रत्याशी के रूप में प्रचारित किया जा रहा हो, लेकिन यह साफ है कि उन्हें सभी विपक्षी दलों का समर्थन प्राप्त नहीं। माकपा के कई नेताओं ने तो उनके नाम पर आपत्ति भी जता दी है। भारतीय प्रशासनिक सेवा से राजनीति में आए यशवंत सिन्हा अनुभवी नेता अवश्य हैं, लेकिन पिछले कुछ समय से उनकी पहचान केवल मोदी सरकार के निंदक भर की है।
भाजपा छोड़ने के बाद यशवंत सिन्हा ने खुद को स्थापित करने की तमाम कोशिश की, लेकिन नाकाम ही रहे। राष्ट्रपति चुनाव में भी उन्हें नाकामी ही मिलने वाली है, क्योंकि भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का पलड़ा पहले से ही भारी है। जो कसर दिख रही थी, उसे ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने की घोषणा करके पूरी कर दी। उन्होंने तो अपने राज्य के सभी विधायकों और सांसदों से यह अपील भी कर दी कि वे दलगत राजनीति से ऊपर उठकर ओडिशा की बेटी को देश के सर्वोच्च पद पर आसीन करने के लिए वोट दें।
यह भी उल्लेखनीय है कि भाजपा से तनातनी के बीच जदयू ने भी द्रौपदी मुर्मू के नाम पर मुहर लगा दी। चूंकि द्रौपदी मुर्मू जनजाति समुदाय से हैं और झारखंड की राज्यपाल भी रह चुकी हैं, इसलिए झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए भी उनका विरोध करना कठिन होगा। वस्तुत: ऐसी ही कठिनाई से अन्य दल भी दो-चार होंगे, क्योंकि कोई भी और विशेष रूप से जनजाति बहुल वाले राज्यों के दलों के लिए द्रौपदी मुर्मू का विरोध करने का मतलब होगा इस समुदाय को नाराज करना। इसी कारण उनका राष्ट्रपति बनना तय माना जा रहा है।
वह इस पद पर पहुंचने वाली दूसरी महिला होंगी। उनका इस पद पर आसीन होना न केवल जनजाति समुदाय के लिए गौरव का क्षण होगा, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के लिए भी। यह भी तय है कि जनजाति समुदाय के साथ महिलाओं के बीच भाजपा की पकड़ और मजबूत होगी।
Rani Sahu
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