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- अखंड भारत का स्वप्न
आदित्य चोपड़ा; अखंड भारत की परिकल्पना कोई नई नहीं है। हर देशभक्त अखंड भारत का स्वप्न संजोये हुए है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख श्री मोहन भागवत के 15 वर्षों में अखंड भारत का स्वप्न साकार होने और रास्ते में बाधाएं खड़ी करने वालों के हट जाने संबंधी बयान पर सियासत गर्म हो गई है लेकिन संघ प्रमुख ने ऐसा बयान कोई पहली बार नहीं दिया है। अखंड भारत की चर्चा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना के साथ ही शुरू हो गई थी। संघ के भगवा झंडे के साथ-साथ भारत महाद्वीपीय क्षेत्र का एक भगवा मानचित्र भी प्रस्तुत किया जाता है। अखंड भारत का इतिहास बहुत पुराना है। आर्यों के देश में आक्रमण होते गए और अखंड भारत को कौन नहीं जानता कि अखंड भारत की सीमाएं कहां-कहां तक थीं। कभी अफगानिस्तान, भूटान, पाकिस्तान, फिलीपींस, ईरान, बंगलादेश, कम्बोडिया, म्यांमार (वर्मा) और इंडोनेशिया इसका हिस्सा थे। आज न जम्बूद्वीप है, न आर्यावर्त। आज केवल भारत है। अखंड भारत पर अरब और तुर्क के मुसलमानों ने 7वीं सदी के बाद से ही आक्रमण शुरू कर िदए थे। मुस्लिम आक्रांताओं ने अखंड भारत को जमकर लूटा। फिर यहां अंग्रेजों का शासन रहा। धीरे-धीरे अफगानिस्तान और अन्य देश टूटते गए। भारत वर्ष के खंड-खंड होने का इतिहास बहुत लम्बा है और मैं इतिहास में नहीं जाना चाहता। अखंड भारत के स्वप्न दृष्टा थे वीर सावरकर। वीरसावरकर दूरदर्शी राजनीतिज्ञों में थे, जो समय से पहले ही समय के प्रवाह को अच्छी तरह समझ जाते थे। हिन्दू महासभा के नेता के रूप में उन्होंने अपने भाषणों और अपनी लेखनी के माध्यम से देश को सावधान किया कि भारत विभाजन का परिणाम किस रूप में देश को भुगतना पड़ेगा। वीर सावरकर ने भारत-पाकिस्तान विभाजन का खुलकर विरोध किया था। स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरविन्द भी अखंड भारत की परिकल्पना के प्रबल समर्थक रहे। इन सभी ने 700 वर्षों तक गुलामी में रहे हिन्दू समाज में चेतना उत्पन्न की। संघ प्रमुख पहले भी कई बार स्पष्ट कर चुके हैं कि दुनिया के कल्याण के लिए गौरवशाली अखंड भारत की जरूरत है। अखंड भारत का स्वप्न बल से नहीं बल्कि हिन्दू धर्म से ही सम्भव है। भारत से अलग हुए सभी हिस्सों, जो स्वयं को अब भारत का हिस्सा नहीं मानते, उन्हें भारत से जुड़ने की आवश्यकता है। मेरे पूजनीय पिताश्री अश्विनी कुमार ने अखंड भारत की परिकल्पना को लेकर अनेक चर्चित सम्पादकीय लिखे थे। जितना मैं उनसे सीख पाया उसका निष्कर्ष यही है--अखंड भारत महज एक सपना नहीं निष्ठा हैसंपादकीय :अश्विनी मिन्ना अवार्डराजनाथ सिंह का 'रक्षा कौशल'भारत की शरण में श्रीलंकाजयशंकर की जय-जयघाटी : षड्यंत्र अभी जारी हैअम्बेडकर और दलित राजनीति-यह राष्ट्र के प्रति श्रद्धा है-हमने आजादी के लिए स्वतंत्रता संग्राम लड़ा। राजनीतिक स्वतंत्रता तो मिली लेकिन यह स्वतंत्रता सांस्कृतिक अस्मिता पर हावी हो गई।-इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत आज शक्तिशाली देश है और उसके पास सैन्य सामर्थ्य है। हमारा लक्ष्य किसी देश पर हमला करके उसे अपने साथ मिलाना नहीं है।-जब लोगों का मिलन होता है, तभी राष्ट्र बनता है। अखंडता का मार्ग सांस्कृतिक है न कि सैन्य कार्रवाई।-अखंड भारत करोड़ों देशवासियों की भावना है और भारत की अखंडता का आधार भूगोल से ज्यादा सांस्कृतिक और धार्मिक है।अखंड भारत केवल शब्द नहीं बल्कि यह हमारी देशभक्ति और संकल्पों की भावना है। ऐसी भावना रखना गलत कैसे हो सकता है। संघ प्रमुख के वक्तव्य का अर्थ यह नहीं कि भारत अलग हुए देशों पर आक्रमण करेगा और उनकी सीमाओं को मिलाकर उन पर शासन करेगा। वैश्विक परिस्थितियों के चलते ऐसा सम्भव ही नहीं है लेकिन मैं उनके वक्तव्य को जितना समझ सका हूं, उसके अनुसार उसका अर्थ यही है कि भारत आर्थिक, व्यापारिक, सांस्कृतिक और धार्मिक तौर पर इतना विकास करेगा कि अखंड भारत के टुकड़ों-टुकड़ों में बंटे अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार सहित अन्य देशों को भारत की जरूरत पड़ेगी। वर्तमान में ऐसा हो भी रहा है। संकट की घड़ी में भारत ने अफगानिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार और भूटान की हमेशा उदार हृदय से सहायता की है। जहां तक पाकिस्तान का संबंध है, देश का विभाजन धार्मिक आधार पर हुआ था। सीमाएं वहां के हुकमरानों ने खड़ी की। आतंकवाद और भारत विरोध की सियासत वहां के हुकमरानों ने खड़ी की है। पाकिस्तान का क्या हाल है, यह सारी दुनिया जानती है। दीवारें सरकारों ने खड़ी की हैं। उम्मीद है कि यह स्थिति भी बदल जाएगी। इसलिए हम सबको सशक्त भारत, तेजस्वी भारत के लिए संकल्पबद्ध होकर प्रयास करने होंगे। जब खंड-खंड हुए देश भारत से मधुर संबंध कायम कर लेंगे, एक सूत्र में पिरो दिए जाएंगे, उसी दिन भारत अखंड बन जाएगा।