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ऐसा लगता है कि छोटे और मझोले बैंक कजऱ् की रकम को राईट आफ करने के लिए और कारपोरेट जगत के हजारों करोड़ के कर्ज को राईट आफ करने के लिए शायद दोहरा मापदंड अपनाया जाता होगा
ऐसा लगता है कि छोटे और मझोले बैंक कजऱ् की रकम को राईट आफ करने के लिए और कारपोरेट जगत के हजारों करोड़ के कर्ज को राईट आफ करने के लिए शायद दोहरा मापदंड अपनाया जाता होगा। किसी भी कर्ज की रकम को राईट आफ करने से पहले बैंक को यह सुनिश्चित करना होता है कि कजऱ्दार एवं गारंटर के पास कोई भी टेंनजीएबल असेट नही है, जिनकी नीलामी कर कर्ज की रकम की वसूली की जा सके, और यह भी सुनिश्चित करना होता है कि कर्जदार से कर्ज वसूली संभव नही होगी। कारपोरेट्स के मामलों में यह देखा जाता है कि हजारों क्या, लाखों करोड़ की ऋण रकम को राईट आफ किया जाता है, जबकि यह माना जा सकता है कि कारपोरेट्स के पास लाखों करोड़ का असेट भी होता है। उनके पास धन का भी प्रावधान होता है और रिसोर्स भी होता है।
-रूप सिंह नेगी, सोलन
By: divyahimachal
Rani Sahu
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