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Written by जनसत्ता: भारत सरकार ने अग्निपथ योजना के माध्यम से सेना में जवानों को भर्ती करने की योजना बनाई है, जिसमें जवानों को पेंशन की सुविधा नहीं होगी, जबकि ये हर वक्त देश की सुरक्षा के लिए अपनी जान की बाजी लगाएंगे। इनके परिवारों को पेंशन रूपी आर्थिक सुरक्षा का हक मिलना चाहिए। दूसरी ओर, एक अप्रैल 2004 से पेंशन बंद हो चुकी है। नई पेंशन प्रणाली में बीमा प्रीमियम की तरह सरकारी कर्मचारियों को खुद अंशदान करना पड़ता है। जितना ज्यादा अंशदान, सेवानिवृत्ति पर उतनी ज्यादा पेंशन। एक तरफ, हमारे देश में विधायक, सांसद एवं मंत्री महोदय लोग हैं, जिनके पेंशन पर कोई आंच नहीं आ रही। दोनों सदनों के पूर्व सांसदों को हर माह लगभग 70 करोड़ रुपए पेंशन मिलती है। देश में 4,000 से अधिक पूर्व सांसद हैं।
रेलवे ने पैसे का रोना रोते हुए सीनियर नागरिकों की सबसिडी रोक दी है, जबकि नेताओं को रेलवे एवं जहाजों में मुफ्त की सेवा मिलती रहेगी। कोई एक दिन भी सांसद, विधायक बन गया तो उसको पेंशन मिलती रहेगी। अगर वह पहले विधायक और फिर सांसद बन गया तो उसे दोनों की पेंशन मिलेगी। नेताजी की मृत्यु के बाद उनके परिवार को आधी पेंशन मिलती रहेगी। हालांकि गुजरात सरकार ने पूर्व विधायकों के पेंशन पर रोक लगा रखी है। हाल ही में पंजाब सरकार ने पूर्व विधायकों के के सिर्फ एक पेंशन की घोषणा की है, जो 75,000 रुपए होगी। अगर राजनीति जनसेवा है तो इतनी मोटी तनख्वाह और पेंशन क्यों?
नशे के खिलाफ अब तक के अभियान का कितना हासिल हो पाया, यह तो नहीं पता, लेकिन आज भी अगर यह अपने जटिल स्वरूप में मौजूद है, तो हकीकत को समझना मुश्किल नहीं है। दरअसल, सरकारों के अभियान तभी कामयाब होते हैं, जब लोग इनमें अपनी भागीदारी सुनिश्चित करना अपनी जिम्मेदारी समझते हैं।
सच यह है कि नशीली दवाओं का सेवन व्यक्ति के स्वास्थ्य पर ही दुष्प्रभाव नहीं डालता, बल्कि मानसिक तौर पर भी प्रभावित करता है। हमारे देश में भी मादक पदार्थों का मकड़जाल फैला हुआ है। फिल्म जगत की कुछ जानी-मानी हस्तियों के भी नशीले पदार्थों के दलदल में धंसे होेने की खबरें आ चुकी हैं। जबकि एक फिल्म के एक गीत के बोल हैं- 'न नशा कर, न वार कर, करना है तो प्यार कर, मुश्किल से मिलता है यह जीवन, इसे यों न बर्बाद कर…!'
नशा इंसान को किस तरह दानव बना देता है, किस तरह यह दानव इंसान के होश खा लेता है, इसका पता हमें नशे के शिकार किसी व्यक्ति द्वारा किए गए जघन्य और दिल दहलाने वाली आपराधिक घटनाओं की खबरों से अक्सर मिलता रहता है। दरअसल, नशा नासूर बन गया है। देश के विकास में युवा वर्ग का सबसे बड़ा योगदान होता है। स्वस्थ और तंदरुस्त युवा देश को विकास को रफ्तार दे सकते है।
लेकिन अफसोस की बात है कि आज भारत के कुछ युवा नशे के आदी होकर अपनी जिंदगी को नरक बना रहे हैं। नशा नाश का दूसरा नाम है। जिसने भी नशे का दामन एक बार पकड़ लिया, उसे नशा मौत के मुह तक ले जाता है। साथ ही उसके घर-परिवार का भी नाश कर देता है। फिर भी कुछ लोग नशे के दानव को गले लगाने से बाज नहीं आ रहे। याद रखना चाहिए कि नशा न तो कोई फैशन है और न ही किसी दुख की दवा। आज हमारे देश में जो अपराध और अनैतिक काम बढ़ रहे, उनका मुख्य कारण नशा भी है। नशा इंसान की बुद्धि भ्रष्ट कर देता है। नशे पर लगाम कसने के लिए समाज को एकजुट होना पड़ेगा, समाजसेवी संस्थाओं को आगे आना पडेÞगा और सरकार को विशेष और सख्त कदम उठाने होंगे।