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- आतंक को ढाल न दें
नवभारत टाइम्स; पाकिस्तानी जमीन से आतंकी गतिविधियों को अंजाम दे रहे आतंकवादियों को अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई से बचाने की अपनी नीति जारी रखते हुए चीन ने एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र में भारत और अमेरिका के प्रस्ताव को वीटो कर दिया। इस बार उसने लश्कर-ए-तैयबा प्रमुख हाफिज सईद के बेटे हाफिज तलाह सईद को काली सूची में डाले जाने से रोका है। यह चार महीने में इस तरह की पांचवीं घटना है। दो दिन पहले भी उसने लश्कर के ही एक और आतंकवादी शाहिद महमूद को ग्लोबल टेररिस्ट के रूप में चिह्नित करने का प्रस्ताव अटकाया था। इस बार तो चीन की यह हरकत ऐसे समय सामने आई है, जब संयुक्त राष्ट्र महासचिव भारत में थे और वह मुंबई में 23/11 के टेररिस्ट अटैक में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दे रहे थे। इस आतंकी हमले के पीछे भी लश्कर-ए-तैयबा का ही हाथ था। इस आतंकी वारदात में भारतीय और अमेरिकी सहित 160 से ज्यादा लोग मारे गए थे। पाकिस्तान तो शुरू से सब कुछ देखते, जानते और समझते हुए भी आंखें बंद किए हुए है। इस पर उसे पूरी दुनिया की लानत-मलामत भी झेलनी पड़ रही है। लेकिन यहां सवाल चीन का है। आतंकवाद जैसे मसले पर उसका लगातार ऐसा रवैया सवाल खड़े करता है।
जाहिर है, भारत इससे पीड़ित रहा है, लेकिन यह मसला केवल भारत का नहीं है। पिछले करीब चार महीनों में जिन पांच आतंकियों को चीन ने संयुक्त राष्ट्र के मंच पर ढाल देने का काम किया है, वे दुनिया के अलग-अलग देशों में आतंकी वारदात को अंजाम देते रहे हैं। उदाहरण के लिए, लश्कर का आतंकी साजिद मीर 2008 के मुंबई हमले की साजिश में शामिल रहा है तो डेनमार्क के अखबार सहित कई देशों में ऐसी घटनाएं करवाने का भी वह दोषी है। यही वजह है कि अमेरिका उसके सिर पर 50 लाख डॉलर का इनाम घोषित कर चुका है। पाकिस्तान की अदालत भी उसे आठ साल कैद की सजा सुना चुकी है। दिलचस्प बात यह कि जो पाकिस्तान सरकार उसे मृत घोषित कर चुकी थी, वह अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते उसे गिरफ्तार करने को मजबूर हुई। आजकल वह पाकिस्तान की जेल में सजा काट रहा है। इससे पहले चीन ने जैश-ए-मोहम्मद के चीफ मसूद अजहर के भाई अब्दुल रऊफ अजहर और लश्कर चीफ हाफिज सईद के साले अब्दुल रहमान मक्की को भी ब्लैकलिस्ट होने से बचाया है। ये सब आतंकवाद के प्रचार-प्रसार में लिप्त ऐसे नाम हैं, जिनकी कारस्तानियों के सबूत दुनिया भर में बिखरे पड़े हैं। इसके बावजूद जब चीन जैसा देश पाकिस्तान को अपनी दोस्ती का यकीन दिलाने के लिए या किसी भी अन्य वजह से इन आतंकवादियों के बचाव में खड़ा नजर आता है तो एक जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में उसकी साख पर सवाल उठता है और ग्लोबल लीडरशिप का उसका दावा संदिग्ध होता है।