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सवाल यह है कि 20 साल से आधुनिक जीवन के लिए प्रोत्साहित करने वाला अमेरिका (America) अचानक क्यों अफगानिस्तान (Afghanistan) से भाग खड़ा हुआ
ज्योतिर्मय रॉय। सवाल यह है कि 20 साल से आधुनिक जीवन के लिए प्रोत्साहित करने वाला अमेरिका (America) अचानक क्यों अफगानिस्तान (Afghanistan) से भाग खड़ा हुआ? 31 अगस्त के समझौते पर हस्ताक्षर करने से पहले व्हाइट हाउस को क्या इस तबाही का अंदेशा नहीं था? अमेरिका को अफगानिस्तान छोड़ने की इतनी हड़बड़ाहट क्यों थी? क्या अमेरिका को ये नहीं पता था कि उनके द्वारा छोड़े गए 100 अरब डॉलर मूल्य के बेशकीमती अत्याधुनिक युद्ध उपकरण का गलत इस्तेमाल दूसरे देशों के लिए तबाही का कारण बन सकता है?
क्या कारण है की दुनिया की सबसे अच्छी खुफिया एजेंसी कही जाने वाली सीआईए (CIA) को इसका अंदाज़ा तक नहीं था? क्या यह अमेरिका और तालिबान (Taliban) द्वारा किए गए समझौते की किसी रणनीति का हिस्सा था? क्या सीआईए एजेंट और उनके स्थानीय स्रोतों ने पर्दे के पीछे से आतंकवादियों के रूप में काम किया है? कारण चाहे कुछ भी हो, वियतनाम युद्ध के बाद से अमेरिकी प्रशासन को इतनी बड़ी कूटनीतिक और विदेश नीति की विफलता का सामना नहीं करना पड़ा है.
आपको बता दें की तालिबान ने अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों के हथियारों की भारी खेप लूटी है. इन हथियारों में पांच लाख M-16, M-4, मशीनगन, 50 कैलिबर हथियार और अन्य अत्याधुनिक हथियार शामिल हैं. यही नहीं तालिबान के पास अब भारी मात्रा में स्नाइपर रायफल, बुलेट, बुलेट प्रूफ जैकेट्स, नाइट विजन जैसे अत्याधुनिक युद्ध उपकरण भी मौजूद है. इसके साथ-साथ सीआईए के सुरक्षा बलों की बख्तरबंद गाड़ियों को भी तालिबान ने अपने कब्जे में कर लिया है.
1990 से अब तक की हिंसा और शक्ति दोनों में बढ़ोतरी हुई है
102 साल पहले अफगानिस्तान को ब्रिटिश शासन से आज़ादी मिली, और उसी साल ब्रिटिश हुकूमत ने भारत में जलियांवाला बाग हत्याकांड किया गया था. अफगानिस्तान का इतिहास खून से नहाया हुआ है, बार-बार अफगानिस्तान के शासक बदले गए और हर बार अफगानिस्तान का राष्ट्रीय ध्वज बदला गया है. 1979 से 1989 के बीच अफगानिस्तान लगभग दस वर्षों तक रूसी कब्जे में रहा. तब अमेरिका ने अफगान आतंकवादियों की सहायता की थी, जैसे आज चीन और रूस ने उग्रवादियों का समर्थन किया है. 1990 के बाद से आज तक तालिबान की हिंसा और शक्ति दोनों ही बढ़ती गई हैं. अमेरिका और सोवियत संघ के विश्व महाशक्ति बने रहने की लड़ाई के कारण विश्व के बहुत से राष्ट्र जाने अनजाने इनके राजनीतिक शिकार होते गए, अफगानिस्तान भी उसी राष्ट्र में से एक है.
सोवियत संघ को परास्त करने के लिए अमेरिका ने तालिबान को खड़ा किया
द्वितीय विश्वयुद्ध ने अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों पर व्यापक प्रभाव डाले. इसने समस्त विश्व का दो गुटों में विभाजन करके विश्व में संघर्ष की प्रवृति को बढ़ावा दिया और शक्ति संतुलन के स्थान पर आतंक का संतुलन कायम किया. विश्व राजनीति में परोक्ष युद्धों की दौड़ शुरू हुई. भू-राजनीतिक स्थिति के कारण अमेरिका और सोवियत संघ के बीच में चल रहे शीतयुद्ध का मोहरा बना अफगानिस्तान.
सोवियत संघ को परास्त करने के लिए अमेरिका ने अपने बेहतरीन खुफिया एजेंसी सीआईए के द्वारा अफगानिस्तान में 'ऑपरेशन साइक्लोन' नामक एक गुप्त कार्यक्रम चलाया, जिसके अन्तर्गत अमेरिका ने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की सेवाओं के माध्यम से सोवियत विरोधी मुजाहिदीन विद्रोहियों की सहायता की. 'ऑपरेशन साइक्लोन', अब तक किए गए सबसे लंबे, गुप्त और सबसे महंगे सीआईए ऑपरेशनों में से एक था. 1980 में प्रति वर्ष 20–30 डॉलर मिलियन के साथ फंडिंग शुरू हुई और 1987 में यह बढ़कर 630 मिलियन डॉलर प्रति वर्ष हो गई. 1989 के बाद भी फंडिंग जारी रही, क्योंकि मुजाहिदीनों ने अफगानिस्तान में गृह युद्ध (1989-1992) के दौरान मोहम्मद नजीबुल्लाह की पीडीपीए की ताकतों से लड़ाई लड़ी थी.
सीआईए का 'ऑपरेशन साइक्लोन'
• अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर का ध्यान अफगानिस्तान पर सोवियत आक्रमण से पहले ईरान पर अधिक था, उन्होंने जुलाई 1979 में अफगान विद्रोहियों मुजाहिदीनों को आर्थिक रूप से समर्थन देने के लिए सीआईए के माध्यम से एक गुप्त कार्यक्रम शुरू किया.
• दिसंबर 1979 में सोवियत आक्रमण के बाद, जो कार्टर के निर्देश से सीआईए ने एक कार्यक्रम तैयार किया, जिसका कोड नेम 'ऑपरेशन साइक्लोन' रखा गया था और पाकिस्तानी खुफिया सेवाओं के माध्यम से मुजाहिदीन को पैसे के साथ हथियार उपलब्ध कराना शुरू किया.
• 'ऑपरेशन साइक्लोन' अब तक किए गए सबसे लंबे और सबसे महंगे गुप्त सीआईए ऑपरेशनों में से एक था. अफगान प्रतिरोध समूहों को प्रशिक्षित करने और उन्हें हथियार देने के लिए 20 बिलियन यूएस डॉलर से अधिक फंड का निवेश किया गया था.
• इसके अंतर्गत 1986 में मुजाहिदीनों को बहुत बड़ी संख्या में यू.एस.-निर्मित स्टिंगर एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइलों की आपूर्ति की गई थी.
• द स्टिंगर्स इतने प्रसिद्ध और घातक थे कि 1990 के दशक में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने अप्रयुक्त मिसाइलों को अमेरिकी विरोधी आतंकवादियों के हाथों में पड़ने से रोकने के लिए "बाय-बैक" कार्यक्रम आयोजित करना पड़ा. "बाय-बैक" एक ऐसा प्रयास था जिसे 2000 के दशक की शुरुआत में गुप्त रूप से नवीनीकृत किया गया था.
• कहा जाता है कि ओसामा बिन लादेन और अल कायदा सीआईए सहायता के लाभार्थी थे.
सीआईए को डबल क्रॉस
कहा जाता है कि अफगानिस्तान में तालिबान की बढ़ती ताकत और योजनाओं को लेकर सीआईए एजेंट और उनके मुखबिरों ने सीआईए को डबल क्रॉस किया और तालिबान से मिल गए. तालिबान सत्ता के नजदीक थे, इस बात का अंदेशा अमेरिकी सरकार को जब लगा, तबतक बहुत देर हो गई थी और वह जल्दबाजी में अफगान छोड़कर जाने के लिए मजबूर हुए.
अमेरिका तालिबान के संपर्क में पहले से ही थे, लेकिन तालिबान अमेरिकी सरकार तथा सीआईए को भ्रम में रखने में सफल हुआ, और यह तभी संभव हो सकता है जब किसी देश के खुफिया एजेंट डबल क्रॉस करने लगे.
अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता हासिल करने के साथ ही अफगानिस्तान में अमेरिका के प्रभुत्व के अंत के रूप में देखा जा रहा है, और इससे अमेरिका के सुपरपावर छवि को नुकसान भी पहुंचा है. अब अमेरिका के जो बाइडेन सरकार को सोचना है कि अमेरिकी सुपरपावर छवि को किस प्रकार से पुन: स्थापन और उनके सहयोगी राष्ट्रों के विश्वास को पुन: हासिल कैसे किया जाए.
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