सम्पादकीय

मर रही धर्मशाला स्मार्ट सिटी परियोजना

Rani Sahu
20 Sep 2022 7:03 PM GMT
मर रही धर्मशाला स्मार्ट सिटी परियोजना
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धर्मशाला शहर में बनने से पहले स्मार्ट सिटी का रुतबा टूट रहा है और इसके लिए बाकायदा ऐसी लचर व्यवस्था बनाई गई है जो इसे हर तरह से पूरी परियोजना को मृत्यु शैया पर रखना चाहती है। आश्चर्य यह कि जो शहर स्मार्ट सिटी चयन प्रक्रिया की 33वीं पायदान पर चंडीगढ़ से भी पहले घोषित हो गया था, उसकी शिशु हत्या करने की आरंभ से ही कोशिश हुई है। बाकायदा इसका विरोध करते हुए शिमला के कुछ नेता अदालत पहुंच गए थे और आज भी लगातार इसके वित्तीय पोषण में मूल भावना व निर्देशों का उल्लंघन हो रहा है। धर्मशाला के योजना प्रारूप के कारण ही इसे 33वें स्थान पर अंकित किया गया था। यह दीगर है कि केंद्र सरकार ने इसकी फंडिंग में नब्बे फीसदी के बजाय फिफ्टी-फिफ्टी बोझ उठाना ही मुनासिब समझा, लेकिन राज्य सरकार ने उलटी चरखी घुमाते हुए अपनी हिस्सेदारी को कुल लागत का ही 10 फीसदी कर दिया है, यानी अगर केंद्र 500 करोड़ लगाता है, तो प्रदेश मात्र 50 करोड़ ही व्यय करेगा। इस तरह सारी परियोजना ही सिकुड़ कर अर्थहीन हो जाएगी। वैसे अगर अब तक के कार्यों की समीक्षा की जाए, तो स्मार्ट सिटी की जेब से पैसा निकाल कर सरकार अपनी विभागीय गतिविधियों को अंजाम दे रही है। यानी पूरे प्रदेश में सरकार इलेक्ट्रिक बसें चलाएगी, लेकिन धर्मशाला स्मार्ट सिटी के पैसे से परिवहन डिपो अपने रूट चलाएगा। इतना ही नहीं, स्मार्ट सिटी से एचआरटीसी की वर्कशाप पर ग्यारह करोड़ खर्च हो रहे हैं।
इसी ताक में कई अन्य विभाग व अस्पताल तक को पैसे मिल रहे हैं। नागरिक समाज से पूछे बिना स्मार्ट सिटी ने जिस तरह मकलोडगंज, हनुमान मंदिर टॉयलट व सिटी मीडिया सेंटर बनाने के लिए जमीन खोदी है, उसका लगातार विरोध हो रहा है। आश्चर्य यह कि जिस शहर में वर्तमान सरकार इन्वेस्टर मीट करवाती है, उसके पक्ष में निजी निवेश की थाली खाली रहती है। पिछली सरकार के समय में एडीबी की मदद से बना प्रदेश का पहला ट्यूलिप गार्डन खंडहर में तबदील हो गया, लेकिन इसके ताले नहीं खुले। भागसूनाग व अघंजर महादेव मंदिर परियोजनाएं ठंडे बस्ते में चली गईं। लगातार पांच वर्षों में धर्मशाला विधानसभा क्षेत्र की अनदेखी हो रही है। नई परियोजना तो आने से रही, लेकिन स्मार्ट सिटी का खाका भी कब्रिस्तान पहुंचाया जा रहा है। हिमुडा कालोनी की आठ सौ कनाल जमीन बंजर हो गई, तो प्रदेश की शीतकालीन राजधानी का दर्जा बर्फ में जम गया। आश्चर्य यह कि स्थानीय विधायक को यह पता नहीं कि स्मार्ट सिटी का महत्त्व क्या होता है। शहर में रचे-बसे सांसद को स्मार्ट सिटी की वास्तविक परियोजना व नियम-निर्देश देखने की फुर्सत नहीं। नगर निगम व नगर नियोजन विभाग को अपने-अपने दायित्व और जिम्मेदारी का एहसास ही नहीं, नतीजतन आज भी एक पुराना शहर मर रहा है और नगर निगम में आए नए क्षेत्र चीख रहे हैं। स्मार्ट सिटी की अब तक की परियोजनाओं में निर्माण नियमों के स्पष्ट उल्लंघन, दूरदृष्टि की कमी व जवाबदेही का अभाव परिलक्षित होता है।
आश्चर्य तो यह कि यही सरकार करीब ढाई सौ करोड़ की पर्यटन इकाइयां बनाकर लीज पर दे चुकी है, मंडी में साढ़े तीन सौ करोड़ के शिवधाम का वित्त पोषण कर रही है, लेकिन धर्मशाला स्मार्ट सिटी के स्वीकृत धन को मुहैया न करवा कर इसे मौत के मुंह में धकेल रही है। स्मार्ट सिटी का नाम आते ही चंडीगढ़ जैसी सिटी का चित्र मन में आना स्वाभाविक है। अच्छी सुंदर सडक़ें, जल निकास, नालियां, बिजली की सुचारू व्यवस्था, योजनाबद्ध ढंग से मकान निर्माण, परिवहन व्यवस्था, पार्किंग, हरियाली, खुला वातावरण, अंडरग्राउंड बिजली की तारें, लोकल टैक्सी व्यवस्था, सुचारू स्टाफ, शिक्षा व स्वास्थ्य की बेहतर व्यवस्था, रैन बसेरों व सरायं इत्यादि का प्रबंध, स्थानीय लोगों को रोजगार तथा अवैध कब्जों को दृढ़ता के साथ हटाना, ये किसी सुंदर शहर की विशेषताएं हैं। ऐसी ही व्यवस्था धर्मशाला शहर में होनी चाहिए। इलेक्ट्रिक बसें स्मार्ट सिटी की हैं तो स्मार्ट सिटी ही चलाए व इसी के दायरे में मुद्रिका बसों की तरह घूमनी चाहिए। जो निगम के क्षेत्र स्मार्ट सिटी में शामिल नहीं हैं, उन्हें शामिल किया जाए। प्रत्येक वार्ड में डाकघर में बैंकिंग सुविधा हो। स्थानीय टैक्सी सुविधा बसों के किराए के अनुसार हो। बिजली, पानी व मकान के नक्शों का सरलीकरण हो। ट्रैफिक की सुचारू व्यवस्था, कानून एवं व्यवस्था का बेहतर प्रबंधन, सौर ऊर्जा, पार्क, जिम, वरिष्ठ नागरिकों के लिए सैर के स्थल, सब्जी व अन्य खोखे वाले व उनके दामों का न्यायसंगत निर्धारण, उचित मूल्य की दुकानें, स्वच्छता, आवारा पशुओं का प्रबंध, पुस्तकालयों की व्यवस्था, बच्चों के लिए अकादमियां तथा प्रदूषण रहित मनोरंजन स्थलों की व्यवस्था भी होनी चाहिए। शहर का योजनाबद्ध ढंग से विकास होना चाहिए। जनसंख्या के अनुरूप सुविधाओं का सृजन किया जाना चाहिए। अधिक जनसंख्या शहर पर बोझ के समान होती है।
हरिमित्र भागी
लेखक सकोह से हैं
By: divyahimachal
Rani Sahu

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