सम्पादकीय

आतंक का 'डीजी' आरक्षण

Rani Sahu
5 Oct 2022 6:40 PM GMT
आतंक का डीजी आरक्षण
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By: divyahimachal
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राजौरी की जनसभा में ऐलान किया है कि राज्य के गूर्जर, बक्करवाल और पहाड़ी समुदायों को आरक्षण दिया जाएगा। उन्हें अनुसूचित जनजाति का आरक्षण मिलेगा। जम्मू-कश्मीर में गूर्जर और बक्करवाल को 1991 से ही 10 फीसदी आरक्षण हासिल है, लेकिन पहाड़ी देश का पहला भाषायी समुदाय होगा, जिसे 'जनजाति' का दर्जा और आरक्षण मिलेगा। आरक्षण का आधार भाषा नहीं, जाति माना जाता रहा है, लिहाजा पहाड़ी समुदाय अभी तक आरक्षण से वंचित रहा है। पहाड़ी समुदाय में हिंदू-मुसलमान, ब्राह्मण, राजपूत आदि कई वर्ग आते हैं। तीनों समुदायों का विशेष उल्लेख इसलिए किया गया है, क्योंकि किसी का आरक्षण दूसरे समुदाय के आरक्षण को प्रभावित नहीं करेगा। प्रत्येक वंचित, हाशिए के समुदाय को उसके हिस्से की धूप जरूर मिलेगी, यह सार्वजनिक आश्वासन देश के गृहमंत्री ने दिया है। प्रशासनिक और कानूनी प्रक्रियाओं के बाद आरक्षण लागू हो जाएगा, जिससे सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में इन समुदायों को भी लाभ मिल सकेगा। परिसीमन के जस्टिस शर्मा आयोग ने भी अनुशंसा की थी कि गूर्जर, बक्करवाल, पहाड़ी समुदायों को 'जनजातीय आरक्षण' की जरूरत है। तीनों की आबादी 11-11 फीसदी के करीब है।
राज्य के पीर पंजाल, राजौरी, पुंछ, उत्तरी कश्मीर के बारामूला, कुपवाड़ा आदि इलाकों में इन समुदायों का काफी प्रभाव है, जो चुनावी संभावनाओं को निश्चित तौर पर तय करता है। सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक विषमताओं को दूर कर समानता स्थापित करने की दिशा में यह ऐलान और आरक्षण, यकीनन, एक सुखद और सकारात्मक ख़बर है। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35-ए को समाप्त करने के बाद दलित आरक्षण को भी नए सिरे से लागू किया गया था, लेकिन गृहमंत्री के महत्त्वपूर्ण प्रवास से एक दिन पहले ही पुलिस महानिदेशक (डीजी), जेल हेमंत लोहिया की हत्या ने हमें लगभग स्तब्ध कर दिया। राज्य में डीजी स्तर के अधिकारी को 'ज़ेड' सुरक्षा मुहैया कराई जाती है। वह 24 घंटे सुरक्षा घेरे में रहता है। उसके पीएसओ भी साथ में रहते हैं। ऐसे अधिकारी को बंद कमरे में, उनका ही नौकर, गला घोंट कर और रेत कर हत्या कर दे और फिर जलाने की भी कोशिश करे, यह वारदात हम पचा नहीं पा रहे हैं, क्योंकि यह सामान्य हत्या का मामला नहीं है। यदि जम्मू-कश्मीर में डीजी स्तर के अधिकारी का इस तरह कत्ल किया जा सकता है, तो हम राज्य को 'आतंक-मुक्त' करार नहीं दे सकते। बेशक पुलिस महानिदेशक दिलबाग सिंह ने 'आतंकी कोण' को खारिज कर दिया है, लेकिन एक ही रात में इस निष्कर्ष तक पहुंचना कैसे संभव है? यदि सम्यक जांच के बाद आतंकियों की भूमिका सामने आती है, तो चौंकने की ज़रूरत नहीं है।
संभव है कि 'आतंकी कोण' को गृहमंत्री के दौरे के मद्देनजर खारिज कर दिया गया हो, अलबत्ता 'पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट' (पीएएफएफ) ने डीजी की हत्या की जिम्मेदारी ली है। संभव है कि यह दावेदारी भी फर्जी साबित हो, लेकिन अनुच्छेद 370 के बाद इस आतंकी गुट का नाम बार-बार उभरता रहा है। यह पाकिस्तान के 'जैश-ए-मुहम्मद' आतंकी संगठन का सहायक गुट ही है। इसका सरगना भी मौलाना मसूद अज़हर ही है। आतंकियों का दावा बताया जा रहा है कि राज्य में हाई प्रोफाइल लोगों के खिलाफ विशेष ऑपरेशन की यह शुरुआत भी है। जिस तरह आतंकी कश्मीरी हिंदुओं और पंडितों को निशाना बनाकर मारते रहे हैं, उसी तर्ज पर यह ऑपरेशन चलाया जाएगा। इसे भी घुडक़ी माना जा सकता है, लेकिन डीजी की हत्या करने से पहले रणनीति का अभ्यास कितनी बार किया गया होगा, इसकी कल्पना ही कर सकते हैं। कश्मीर के इन हालात पर गहन चिंतन करने के बाद ही निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है।
Rani Sahu

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