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पिछले दिनों सीएसआर यानी कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबलिटी के हिसाब से उत्तर प्रदेश को फिसड्डी पाया गया था. पाया गया कि इस मामले में यूपी टॉप टेन की सूची से बाहर है
डॉ. प्रभात ओझा
पिछले दिनों सीएसआर यानी कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबलिटी के हिसाब से उत्तर प्रदेश को फिसड्डी पाया गया था. पाया गया कि इस मामले में यूपी टॉप टेन की सूची से बाहर है. गजब है कि यह रिपोर्ट पिछले साल अक्टूबर में आई और इसके बावजूद चार महीने बाद ही योगी आदित्यनाथ दोबारा चुनाव जीतकर प्रदेश की सत्ता में वापस आ चुके हैं. सवाल है कि योगी क्या कर रहे हैं कि उत्तर प्रदेश की जनता का उनपर भरोसा बढ़ा है.
लोक कल्याण अथवा विकास के लिए जिन मानकों को हम खोजते हैं, योगी के विकास मॉडल में वह दिखता है. योगी आदित्यनाथ की सरकार ने कोरोना के दौर और उसके बाद भी सभी को भोजन की गारंटी दी है. फिर भी सिर्फ भोजन की गारंटी ही विकास का मानक नहीं हो सकता. विकास तो अन्य क्षेत्रों के आंकड़ों के आधार पर मापा जाता है. फिर बात वहीं सीएसआर पर आकर अटकती है. जब हर तरह के काम होंगे तो उद्योगपति सीएसआर पर भी खर्च करेंगे. योगी आदित्यनाथ को इसका अहसास बहुत पहले हो चुका था.
प्रदेश में सीएसआर औद्योगिक निवेश के जरिए ही बढ़ेगा. यह पहले भी हुआ है, पर निवेशकों के भरोसे को अभी धरातल पर लाने में वक्त लगेगा. वे उद्योग लगाएंगे, तभी रोजगार पैदा होंगे. इन कॉरपोर्ट्स की सोशल रिस्पांसिबलिटी भी तभी बढ़ेगी. इस बात को ध्यान में रखते हुए योगी सरकार ने इस मामले में 'ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी' आयोजित करने का फैसला किया है. संभावना है कि यह आयोजन जुलाई में होगा और इससे कई प्रमुख औद्योगिक घरानों के प्रमुखों से 10 लाख करोड़ रुपये तक के निवेश हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है. निश्चित ही इस निवेश के साथ उत्पादन और सीएसआर, दोनों ही हासिल होगा.
दरअसल, यूपी में निवेश का सिलसिला पिछले तीन साल में तेजी से शुरू हुआ है. एक्सप्रेस वे ढांचा, एयरवेज और फिल्म सिटी की महत्वाकांक्षी योजना इसी दिशा के कदम कहे जा सकते हैं. तीन लाख करोड़ रुपये की निवेश परियोजनाएं शुरू हो चुकी हैं. कोरोना काल में जब औद्योगिक जगत सहम कर खर्च कर रहा था, उस समय भी उत्तर प्रदेश में 56 हजार करोड़ का तो विदेशी निवेश भी आया. निवेशक समागम में 4 लाख 68 हजार करोड़ रुपये के एमओयू साइन हुए.
योगी के विकास मॉडल में ग्रोथ की अनदेखी नहीं की गई है. वैश्वीकरण और मुक्त अर्थव्यवस्था के एक दशक बीतने के बाद से ही विश्व बैंक परेशान हो उठा कि विकास केवल तेज ही नहीं, समावेशी भी होना चाहिए. यह सिर्फ उद्योगों के भरोसे मुमकिन नहीं है. ऐसे में पांच साल तक चली योगी सरकार ने देश के आधार समझे जाने वाले किसानों को ध्यान में रखा. परिणाम आज धान, गेहूं, दलहन और तिलहन का रिकॉर्ड उत्पादन है. पिछली सरकारों के मुकाबले इन फसलों की सरकारी खरीद भी ढाई गुना अधिक हुई. पिछले पांच साल में नीम कोटेड यूरिया जैसे ऊर्वरक बाजार में लाने की केंद्र की योजना को यूपी में कर आदि कम कर किसानों की पहुंच में लाया गया. कृषि क्षेत्र में योगी सरकार का अपना योगदान बाढ़ प्रभावी क्षेत्र में कमी लाना भी है.
इन पांच वर्षों में नदियों की रेजिंग कर उनकी धारा को चैनलाइज करने से बाढ़ की आशंका कम हुई. पहले बाढ़ रोकने के उपायों पर खर्च के लिए अप्रैल में बजट जारी हुआ करता था. योगी सरकार ने जनवरी में ही बजट देना शुरू किया तो बाढ़ नियंत्रण के काम समय से शुरू होने लगे. फिर नहरों से पहली बार अंतिम छोर तक सिल्ट हटाई गई. इससे सिंचाई और अधिक सुगम हुई. करीब डेढ़ दर्जन नई सिंचाई परियोजनाओं के पूरा होने से 22 लाख हेक्टेयर से भी अधिक नई जमीन सिंचन क्षेत्र का हिस्सा बन गई. निश्चित ही सक्षम किसान खेती से कमाएगा तो दूसरी जरूरतों पर खर्च भी करेगा. विकास का यह मजबूत आधार होता है कि खरीदार वर्ग बढञता रहे. तमाम दिक्कतों के बावजूद योगी के विकास मॉडल से यह संभव हुआ है.
कृषि हो अथवा उद्योग, हर क्षेत्र का व्यक्ति स्वस्थ रहे तभी विकास के पहिए आगे बढ़ेंगे. लखनऊ में चिकित्सा के बढ़े संथान के बाद गोरखपुर और रायबरेली में एम्स शुरू हुए हैं, तो 56 जिलों में कम से कम एक मेडिकल कॉलेज खुला है. केंद्र की आयुष्मान भारत योजना को उत्तर प्रदेश में गति मिली तो मुख्यमंत्री जन आरोग्य योजना ने भी रिकॉर्ड कायम किया है. उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री जन आरोग्य योजन में भी 42 लाख, 19 हजार लोग कवर किए गये हैं. सरकार की नीति है कि स्वस्थ प्रदेश विकास का संवाहक बनेगा.
जब तक उद्योग धंधे बढ़ते हैं, ग्रामीण रोजगार का ध्यान रखना भी आवश्यक है. कोरोना की विपरीत परिस्थितियों में मनरेगा का दायरा बढ़ाकर राज्य में डेढ़ करोड़ दिवस के काम दिए गये. इससे ग्रामीण क्षेत्रों में दी जा रही मदद के अलावा नगद राशि भी पहुंची. यह सिलसिला आगे बढ़ रहा है. आज सीधी भर्तियों पर नजर होने से रोजगार सृजन के दूसरे स्रोत पर ध्यान ही नहीं जाता. योगी आदित्यनाथ की विकास दृष्टि में स्टार्ट अप, स्वयं सहायता समूह आदि भी हैं. इनके जरिए एक करोड़ महिलाओं को काम मिलने का दावा किया गया है.
उद्योग कृषि और स्टार्ट अप-स्वयं सहायता समूह के अलावा स्वास्थ्य, शिक्षा आदि भी विकास के सोपान बना करते हैं. स्वास्थ्य का जिक्र पहले ही किया है. जहां तक शिक्षा की बात है कि लड़कियों के स्नातक तक की पढाई का खर्च सरकार वहन करने जा रही है. गरीबों के लिए 42 लाख आवास बने हैं, तो उन तक स्वच्छ पेयजल पहुंचाने की योजना पर तेजी से काम हो रहा.
सच यह है कि विकास सुरक्षित समाज में ही संभव होता है. मार्च 2017 के बाद से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में सुरक्षा के जो मानक तैयार किए, उससे शुरू में कुछ लोग नाराज भी हो उठे. जल्द ही इसका फायदा मिलने लगा तो लोगों को संतोष हुआ. ग्राउंड रिपोर्ट का यह आलम है कि जल्द ही वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट (ओडीओपी) के तहत जिलों में वहां के स्थानीय उत्पाद को आधार बनाकर बने सामान बाहर जाने लगेंगे. यहीं नहीं, इस योजना में व्यवसायी भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओडीओपी परियोजना को अन्य राज्यों के लिए भी रोल मॉडल बताया है.
Rani Sahu
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