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सम्पादकीय
विकास और समाज : ग्रामीणों तक कैसे पहुंचे स्वास्थ्य सेवाएं, घोर अभाव से जूझती आबादी
Gulabi Jagat
14 April 2022 7:15 AM GMT
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विकास और समाज
शैलेंद्र सिन्हा।
विकास और स्वास्थ्य एक दूसरे के पूरक हैं। ऐसे में एक स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए उसके नागरिकों को सेहतमंद होना जरूरी है, लेकिन आदिवासी बहुल झारखंड के अधिकतर गांवों में अब तक स्वास्थ्य सेवा पूरी तरह से नहीं पहुंच सकी है। दरअसल किसी भी क्षेत्र के बेहतर स्वास्थ्य के लिए कई आयाम होते हैं। केवल उन्नत अस्पताल ही बेहतर स्वास्थ्य सुविधा की निशानी नहीं होता है, बल्कि अच्छी सड़क, गांव से मुख्य सड़क तक संपर्क, अस्पताल तक पहुंचने के लिए एंबुलेंस वाहन और गांव से अस्पताल की दूरी भी महत्वपूर्ण कारक होते हैं।
झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में इन्हीं मुख्य बिंदुओं का अभाव देखा जाता है, जहां अच्छी सड़कें या फिर कनेक्टिविटी की कमी के कारण आज भी मरीज को खाट पर बांधकर सैकड़ों किलोमीटर दूर अस्पताल लाया जाता है। ऐसे में सबसे अधिक कठिनाई प्रसव पीड़िता को होती है, जिसे समय पर आपातकालीन चिकित्सा नहीं मिलने के कारण उसकी मौत तक हो जाती है। झारखंड में दलितों और आदिवासियों की बहुत बड़ी आबादी निवास करती है।
राज्य के दुमका जिला स्थित शिकारीपाडा प्रखंड के सीमानीजोर पंचायत, गांव चायपानी, नवपहाड़, हरिनसिंहा, मोहुलबना समेत कई गांव में स्वास्थ्य सेवा की स्थिति बेहद कमजोर है, जहां सरकारी स्तर पर स्वास्थ्य सुविधा नहीं पहुंची है। इन गांव में जेसुइट सोसाइटी ऑफ इंडिया स्वास्थ्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य कर रही है। सामाजिक कार्यकर्ता हाबील मुर्मू ने बताया कि इन गांवों में पीने का शुद्ध पानी भी नहीं मिल रहा है, जो अमूमन आधारभूत सुविधा से वंचित हैं।
कोरोना काल में भी राज्य की स्वास्थ्य सेवा इस क्षेत्र के ग्रामीणों को आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने में नाकाम रही है। ऐसे में संस्था द्वारा ग्रामीणों को मास्क, विटामिन सी का टैबलेट, पैरासिटामॉल और हैंड वाश उपलब्ध कराए गए थे। राज्य में स्वास्थ्य क्षेत्र में व्यापक सुधार की जरूरत है। झारखंड में 28 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति और 12 प्रतिशत दलित समुदाय रहते हैं। यहां की 78 प्रतिशत जनसंख्या लगभग 32 हजार गांवों में निवास करती है, जहां स्वास्थ्य सुविधाओं का घोर अभाव है।
राज्य में 33 जनजातियां निवास करती है, जिनमें संथाल, उरांव बहुलता में हैं। दलितों की आबादी चतरा, पलामू, गढ़वा और लातेहार जिले में अधिक है। इसके अलावा हजारीबाग, गिरिडीह, धनबाद, बोकारो और देवघर जिले में भी उनकी संख्या अधिक है। झारखंड में कुपोषण सरकार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती रही है। राज्य में बच्चों में प्रतिरक्षा की स्थिति बहुत चिंताजनक है। ग्रामीण क्षेत्रों के आदिवासी बच्चे अधिकतर कुपोषण के शिकार होते हैं, जिनका उपचार कुपोषण केंद्र में होता है।
राज्य में कुपोषण से ग्रसित बच्चों में विकास, बुद्धि तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी पाई जाती है। गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों में खसरा, निमोनिया और श्वास लेने में परेशानी पाई जाती है। आंगनबाड़ी केंद्रों में सरकार की ओर से व्यवस्था की गई है, जहां उन्हें समुचित आहार दिया जाता है। गरीबी और आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर होने के कारण गर्भवती महिलाएं न तो उचित पौष्टिक आहार ले पाती हैं और न ही वे समय-समय पर प्रसव पूर्व जांच कराने में सक्षम होती हैं।
घर में दो वक्त की रोटी की खातिर वे नवें महीने में भी खेतों या मजदूरी जैसे काम करती हैं और बासी भात खाकर अपना काम चलाती हैं। उनके पति दिहाड़ी मजदूरी करते हैं, ऐसे में वे उन्हें पोषणयुक्त भोजन कहां से उपलब्ध करा पाएंगे? आंकड़ों के अनुसार झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में तीन चौथाई से अधिक प्रसव असुरक्षित होते हैं। यहां महिलाओं का विवाह कम उम्र में होने से और जल्द मां बन जाने से भी उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। राज्य में उच्च शिशु एवं बाल मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर का एक मुख्य कारण यह भी है। झारखंड जैसे आदिवासी बहुल राज्य में स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारना और उसे ग्रामीण क्षेत्रों तक सुगम बनाना एक बड़ी चुनौती है, जिसके लिए हर स्तर पर प्रयास किए जाने की ज़रूरत है। (चरखा फीचर)
Gulabi Jagat
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