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- फिर खतरे में लोकतंत्र
नवभारत टाइम्स; असाधारण आर्थिक चुनौतियों से गुजर रहे पाकिस्तान में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ चुनाव आयोग के हालिया आदेश ने देश का राजनीतिक माहौल और गरमा दिया है। बीते सप्ताह चुनाव आयोग की पांच सदस्यीय समिति ने इमरान खान पर भ्रष्ट आचरण का आरोप लगाते हुए एक संक्षिप्त आदेश में उन्हें किसी सार्वजनिक पद पर बैठने के अयोग्य करार दिया। चूंकि आयोग ने विस्तृत आदेश जारी नहीं किया था, इसलिए इसे लेकर असमंजस की स्थिति बन गई कि इमरान खान पर यह रोक कितने समय के लिए लगी है और क्या उनके चुनाव लड़ने पर भी रोक है। स्वाभाविक ही इमरान ने आदेश को अदालत में चुनौती दी।
इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने आदेश को तत्काल खारिज करने या स्थगित करने का उनका अनुरोध तो मंजूर नहीं किया, लेकिन इतना जरूर स्पष्ट किया कि उन्हें चुनाव लड़ने के अयोग्य नहीं करार दिया गया है। कोर्ट के मुताबिक, चुनाव आयोग का आदेश संसद के मौजूदा कार्यकाल भर के लिए है। इमरान खान और उनकी पार्टी पीटीआई को इससे राहत की सांस लेने का एक मौका भले मिल गया हो, वहां सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जारी रस्साकशी इस घटना से और तेज हो गई है।
इमरान खान को चुनावी लड़ाई से बाहर करने की यह जानी अनजानी कोशिश विपक्ष की आक्रामकता को बढ़ा सकती है। जहां तक इमरान पर लगे आरोपों का सवाल है तो पीएम के रूप में मिले तोहफों को बेचने और इससे मिले पैसों का हिसाब न देने की बात पहली नजर में गंभीर है। हालांकि इन तोहफों को बेचना पाकिस्तान में गैरकानूनी नहीं है, उसे छुपाना जरूर है। मगर किसी भी सूरत में इस कथित अपराध की आड़ में उन्हें चुनाव लड़ने के अयोग्य करार देने के प्रयासों का बचाव नहीं किया जा सकता। खासकर इसलिए भी कि सत्ता में रहते हुए इमरान चाहे जितने भी अलोकप्रिय और विवादित रहे हों, पद से हटाए जाने के बाद से उनकी लोकप्रियता का ग्राफ लगातार चढ़ते हुए पाया गया है।
इसके सबूत इस बीच हुए उपचुनावों में भी मिलते रहे हैं। इसी महीने हुए उपचुनावों में आठ में से छह सीटों पर उनकी पार्टी ने जीत दर्ज की है। ऐसे में किसी भी आरोप के सहारे अगर इमरान खान को चुनावी प्रक्रिया से बाहर किया जाता है तो संदेश यही जाएगा कि सत्तारूढ़ पक्ष ने उनकी लोकप्रियता के डर से यह काम करवाया। इससे जहां इमरान के पक्ष में चल रही सहानुभूति की लहर मजबूत हो सकती है, वहीं जन असंतोष के अलोकतांत्रिक राह पकड़ने का खतरा भी बढ़ सकता है। इतिहास के इस नाजुक मोड़ पर लोकतंत्र के साथ किसी भी तरह का खिलवाड़ पाकिस्तान की समस्याओं को कई गुना बढ़ा देगा। बेहतर होगा कि पाकिस्तान जनाकांक्षाओं की अहिंसात्मक और लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति को बाधित किए बगैर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का प्रयास जारी रखे।