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दिल्ली पुलिस (Delhi Police) और स्थानीय प्रशासन के द्वारा एकतरफा कार्रवाई के बाद एक मस्जिद के इमाम ने मुसलमानों से ईद (Eid) नहीं मनाने का आह्वान किया. यह भारत के दूसरे सबसे बड़े धार्मिक समुदाय के बीच व्याप्त चिंता और संकट की निराशाजनक तस्वीर पेश करता है
बॉबी नकवी
दिल्ली पुलिस (Delhi Police) और स्थानीय प्रशासन के द्वारा एकतरफा कार्रवाई के बाद एक मस्जिद के इमाम ने मुसलमानों से ईद (Eid) नहीं मनाने का आह्वान किया. यह भारत के दूसरे सबसे बड़े धार्मिक समुदाय के बीच व्याप्त चिंता और संकट की निराशाजनक तस्वीर पेश करता है. फतेहपुरी मस्जिद के इमाम मुफ्ती मोहम्मद मुकर्रम अहमद (Mufti Mohammad Mukarram Ahmed) एक वीडियो संदेश में मुसलमानों से पूछते हुए दिखाई देते हैं- "हम ईद कैसे मना सकते हैं, जब हमारे समुदाय के लोग संकट में हैं. हम ईद नहीं मनाएंगे." इमाम ने जहांगीरपुरी में सांप्रदायिक हिंसा के तुरंत बाद इस इलाके की एक मस्जिद के एक हिस्से को तोड़े जाने का जिक्र किया, जहां 16 अप्रैल को हिंदू धार्मिक जुलूसों के बाद हिंदू और मुसलमान आपस में भिड़ गए.
वहीं हिंसा के बाद दिल्ली पुलिस ने कई लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें ज्यादातर मुस्लिम हैं. इतना ही नहीं नगर निगम की टीमों ने सार्वजनिक भूमि पर अवैध रूप से बनाए गए मकानों को ध्वस्त कर दिया. नगर निगम के बुलडोजरों ने यहां फिर से मुस्लिम नागरिक और व्यापारियों के कब्जे वाले निर्माण कार्यों को निशाना बनाया. पुलिस और नगर निगम के अधिकारियों की तरफ से की गई कार्रवाई का जिक्र करते हुए मुफ्ती ने आरोप लगाया कि मुसलमानों और उनकी संपत्तियों को चुनिंदा तरीके से निशाना बनाया. सोशल मीडिया और निजी चर्चाओं में मुस्लिम समुदाय इसी तरह के अनुभव साझा कर रहे हैं.
इमाम मुफ्ती मोहम्मद मुकर्रम अहमद ने इस्लाम पर लिखी हैं कई किताबें
अहमद कोई साधारण इमाम नहीं हैं, उन्होंने अरबी साहित्य में डॉक्टरेट की उपाधि ली है. पांच भाषाएं बोलते हैं और इस्लाम पर कई किताबें लिखी हैं. कोरोना महामारी के दौरान अहमद ने मुसलमानों से घर पर रहकर ईद-उल-फितर और ईद-उल-जुहा मनाने का आग्रह करने के लिए अपने ऑफिस का इस्तेमाल किया. उन्होंने मुस्लिम समुदाय से सार्वजनिक स्थानों पर भीड़-भाड़ से बचने के अलावा हेल्थ और सेफ्टी गाइडलाइन का पालन करने का आग्रह किया. मस्जिद की वेबसाइट के अनुसार, अहमद का परिवार मुगल काल से ही फतेहपुरी मस्जिद में प्रार्थना सभाओं का नेतृत्व कर रहा है.
फतेहपुरी मस्जिद, जिसे शाही फतेहपुरी मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है. इसका निर्माण मुगल सम्राट शाहजहां की पत्नी फतेहपुरी बेगम ने 1650 में करवाया था. पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक के पश्चिमी छोर पर स्थित यह मस्जिद लाल किले के सामने है और इसका दिलचस्प इतिहास है. 1857 के विद्रोह के तुरंत बाद जब भारतीय सिपाही इस मस्जिद में थे, तब अंग्रेजों ने मस्जिद और आसपास की संपत्ति को पंजाबी-खत्री व्यवसायी लाला चन्ना मल को नीलाम कर दिया था. लगभग दो दशक बाद अंग्रेजों ने इसे फिर से हासिल कर यहां मुसलमानों को बहाल कर दिया. इससे पहले, ब्रिटिश सैनिकों ने मस्जिद पर कब्जा किया और बलुआ पत्थर पर अपने नाम उकेरे.
दिल्ली और उसके बाहर ईद समारोह पर अहमद की अपील के प्रभाव का तुरंत आकलन करना मुश्किल है. हालांकि मुसलमानों में खासकर उन शहरों में जहां हाल के हफ्तों में सांप्रदायिक अशांति हुई है. ऐसी धारणा बढ़ रही है कि केंद्र और राज्यों में बीजेपी सरकारें मुस्लिम समुदाय, उनकी आजीविका और संपत्तियों को निशाना बना रही हैं. कई राज्यों में सांप्रदायिक अशांति के नवीनतम दौर से पहले, हिंदू संगठनों द्वारा गुरुग्राम में शुक्रवार की नमाज में व्यवधान, कर्नाटक में एजुकेशनल इंस्टीटूट्स में हिजाब पर प्रतिबंध और इन घटनाओं पर राज्य पुलिस, प्रशासन और न्यायपालिका की प्रतिक्रिया ने मुस्लिम समुदाय के लोगों के बीच इस धारणा को मजबूत किया है कि वे राज्य के विभिन्न अंगों और यहां तक कि न्यायपालिका से भी कम ही राहत या सुरक्षा की उम्मीद कर सकते हैं.
सोशल मीडिया पर ईद सेलिब्रेशन के दौरान काली पट्टी बांधने की हो रही बातें
हाल के दिनों में सोशल मीडिया पर ईद सेलिब्रेशन के दौरान काली पट्टी बांधने की बातें हो रही हैं. इन बातों से ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि मुसलमानों के बीच आम सहमति बढ़ती जा रही है कि बीजेपी शासित राज्यों में सरकारी एजेंसियों पर सांप्रदायिक अशांति के समय भरोसा नहीं किया जा सकता है. मुसलमानों को लगता है कि सांप्रदायिक घटनाओं पर पक्षपातपूर्ण प्रतिक्रिया पुलिस की पक्षपातपूर्ण भूमिका से आगे की बात है और अब यहां तक कि नगर निगम के अधिकारियों और जिलाधिकारियों को भी संदेह की नजर से देखा जाता है. साथ ही बीजेपी के हाई-रैंकिंग मंत्रियों और पार्टी पदाधिकारियों के भड़काऊ बयानों ने इस अविश्वास को और पुख़्ता किया है.
मध्य प्रदेश और नई दिल्ली में हाल की सांप्रदायिक घटनाओं और कानून-व्यवस्था लागू कराने वाले तंत्र की प्रतिक्रिया और राजनीतिक हस्तियों द्वारा सेलेक्टिव ब्लेम गेम के संदर्भ में अहमद के बयान का असर इस समुदाय के बड़े हिस्सों में नहीं तो कम से कम राष्ट्रीय राजधानी के कुछ हिस्सों में दिखाई दे सकता है. मुसलमानों के सबसे बड़े त्योहार पर काली पट्टी बांधने का दृश्य, वाइब्रेंट डेमोक्रेसी, विविधता और सहिष्णुता की भूमि के रूप में प्रसिद्ध भारत की छवि को संभावित तौर पर धूमिल कर सकता है. इससे भारत में कथित असहिष्णुता (intolerance) को लेकर पश्चिम एशियाई देशों में जोरदार आलोचना हो सकती है, जहां लाखों भारतीय रहते हैं और काम करते हैं. इसलिए, जैसा कि मुसलमान रमज़ान के पवित्र महीने के अंत यानि ईद की तैयारी में लगे हैं, सरकार क इस समुदाय तक पहुंचना चाहिए और उन्हें आश्वस्त करना चाहिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सबका साथ, सबका विकास महज एक राजनीतिक नारा नहीं है.
'सांप्रदायिक घटनाओं पर पीएम मोदी की है चुप्पी'
हाल के सालों में प्रधानमंत्री ने पैगंबर मोहम्मद का जिक्र किया है और मुसलमानों को उनके त्योहारों और अन्य अवसरों पर बधाई दी है. हालांकि, सांप्रदायिक घटनाओं पर उनकी चुप्पी और मुसलमानों के डर और चिंता को पहचानने में उनकी विफलता उन हिंदूवादी तत्वों को प्रोत्साहित करती हैं जो मुसलमानों पर मौखिक और शारीरिक हमलों का नेतृत्व कर रहे हैं. इससे भी बड़ी बात यह है कि मोदी की चुप्पी को बीजेपी शासित राज्यों में मुसलमानों को अलग-थलग करने की खुलेआम नीति को जारी रखने के अलावा उन्हें उपद्रवी और कानून तोड़ने वाले समुदाय के रूप में पेश करने के संकेत के तौर पर भी देखा जाता है. दुनियाभर के मुसलमानों के लिए ईद-उल-फितर महीने भर का रोजा या उपवास के अंत का प्रतीक है जब मुसलमान अल्लाह से उनके धर्मार्थ कार्यों और इबादत को स्वीकार करने की दुआ करते हैं. हालांकि, भारत में मुसलमानों का मानना है कि इस साल रमज़ान के महीने के दौरान देश के कुछ हिस्सों में उनकी पहचान, आजीविका और सुरक्षा पर हमले हुए और वे बस एक ऐसे ईद की उम्मीद कर रहे हैं जो बिना किसी अप्रिय घटना के गुजर जाए.
Rani Sahu
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