सम्पादकीय

समीकरण में हार

Subhi
23 Feb 2021 2:45 AM GMT
समीकरण में हार
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हालांकि विधानसभा में विधायकों की संख्या और बहुमत के आंकड़ों को देखते हुए इस बात की आशंका रविवार को ही

हालांकि विधानसभा में विधायकों की संख्या और बहुमत के आंकड़ों को देखते हुए इस बात की आशंका रविवार को ही सामने आ गई थी, जब कांग्रेस के दो विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था।

फिर भी राज्य में कांग्रेस को यह उम्मीद थी कि विधानसभा में विश्वासमत के लिए विधायकों के वोट के मद्देनजर जो समीकरण बन रहे हैं, उसमें वह किसी तरह सरकार बचा ले सकती है। हालांकि इस उम्मीद का आधार कमजोर इसलिए भी था कि द्रमुक और निर्दलीय विधायक के समर्थन से चलने वाली कांग्रेस की सरकार बहुमत साबित करने के लिए पर्याप्त आंकड़े तक नहीं पहुंच पा रही थी। शायद इसका अंदाजा मुख्यमंत्री वी नारायणसामी को हो गया था, इसलिए विधानसभा में विश्वासमत परीक्षण मतदान के पहले उन्होंने संक्षिप्त संबोधन के बाद वे और सत्ताधारी खेमे के बाकी विधायक बहिर्गमन कर गए और उपराज्यपाल को अपने इस्तीफे सौंप दिए।
जाहिर है, इसके बाद अब राज्य में आने वाली मई महीने में होने वाले चुनाव के दौरान अब कांग्रेस की मौजूदा सरकार नहीं रहेगी। ऐसी स्थिति में फिलहाल राजनीतिक प्रेक्षकों की नजर इस बात पर है कि अगर विपक्ष अपने चौदह सदस्यों और बहुमत के आंकड़े के साथ सरकार बनाने का दावा पेश करता है तो ऐसे में अगले दो-ढाई महीने के लिए क्या उसे सरकार बनाने का मौका मिलेगा, राष्ट्रपति शासन का विकल्प लागू होगा या फिर कार्यवाहक सरकार के तहत चुनाव कराए जाएंगे!
इस्तीफा देने के क्रम में मुख्यमंत्री वी नारायणसामी ने आरोप लगाया कि पिछले कई सालों से उनकी सरकार को गिराने की कोशिश की जा रही थी, लेकिन इसके बावजूद उन्हें अपने काम के बूते जनता का विश्वास हासिल था और वे राज्य में बाकी मोर्चों पर और यहां तक कि उपचुनावों में बेहतर प्रदर्शन कर रहे थे। उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि भाजपा के तीन मनोनीत विधायकों को मतदान का अधिकार देकर सरकार को गिराया गया और यह लोकतंत्र की हत्या है। इसके अलावा, सत्ता की खींचतान के बीच केंद्र सरकार पर राज्य के विकास के लिए धन मुहैया करने में आनाकानी के आरोपों का अगर थोड़ा भी आधार है तो यह विकास की राजनीति पर सवालिया निशान है।

दरअसल, राजनीति समीकरणों के आधार पर चलती है। विधानसभा में कई विधायकों के इस्तीफे के बाद आंकड़ों का गणित कुछ ऐसा हो गया था, जिसमें उनकी सरकार के कायम रहने की उम्मीद धुंधला गई थी। पुदुचेरी की राजनीति में छाया मौजूदा धुंधलका आने वाले कुछ दिनों में शायद साफ हो जाए, लेकिन इस बीच सरकार बचाने और गिराने को लेकर जिस तरह के दांवपेच खेले गए, उससे एक बार फिर यही पता चलता है कि राजनीति में सैद्धांतिक प्रतिबद्धता और पार्टी के लिए निष्ठा के मुकाबले अब विधायकों के लिए तात्कालिक परिस्थितियां ज्यादा महत्त्व रखने लगी हैं।
मगर सवाल यह भी है कि कोई पार्टी अपनी गतिविधियों और कार्यप्रणाली में राजनीतिक सिद्धांतों और उसके प्रति निष्ठा के पक्ष को कितनी अहमियत देती है और अपने कार्यकर्ताओं से लेकर वरिष्ठ सदस्यों और विधायकों तक की प्रतिबद्धता को कितना सुनिश्चित कर पाती है! यों देश के लोकतांत्रिक ढांचे में चलने वाली राजनीति में किसी विधायक या सांसद को कुछ कसौटियों के साथ अपना पक्ष तय करने की आजादी मिली हुई है। लेकिन कई बार कमजोर आग्रहों के कारण पक्ष बदलने से पैदा हुई अस्थिरता न केवल विकास की दिशा पर असर डालती है, बल्कि सैद्धांतिक राजनीति की बुनियाद को कमजोर करती है।


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